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Showing posts from 2021

शीत लहर का कहर

चूरू तो ठंडा भया चाले ठण्डी बाय खाओ बाजर की रोटियां लहसुन चटनी लगाय। जल्दी सिमटो बिस्तरां दिन में ही सब निपटाय जाना‌ अगर खुले में हाथ-पैर बार-२ तपाय। उगत में कोई दम नहीं छिपते डगमगाय चले है ' डांफर' निर्दयी कलेजे चुभ- चुभ जाय राखो दिन दस संभाल के ये हाड़ फिर सरसाय।।

नौकरी की तीसवीं वर्षगांठ

 अपेक्षित पद बढा, ना कद बढा सुकून बस इतना है, ना कोई मर्ज बढा दो हमदम छिन गये, दो नये मिल गये ऐ वक्त ना तेरा अब तक कोई कर्ज चढा तलाश रोटी की तब भी थी, आज भी है ये सिलसिला अब तक नहीं सिरे चढ़ा गमो का सिलसिला ना हो यदि शामिल किसने है यहां जिंदगी को ठीक से पढ़ा ला रख नया कोई सवाल आज पुराने सवालों का अब वो रूतबा‌‌ कहां।।

The opsis feeling

The opsis feeling

What I write doesn't give me the opsis feeling Also get published in books too doesn't do that But why I think like this  gives me the opsis feeling.

आश्विन की बारिश

ये आश्विन‌ की बारिस जैसे सोतेला‌ वारिस गड़ गड़ाये ज्यादा लाभ पहुचाये आधा बस इतना जरूर है सावधान करे ज्यादा।।

श्री भीमनाथजी सिद्ध‌ एक संस्था थे

श्री भीम नाथ सिद्ध एक कलम और बात के ही‌ धनी नहीं थे बल्कि एक संस्था थे ।आपका जन्म ग्राम बादड़िया तहसील सरदारशहर में हुआ। आपकी स्नातक तक की शिक्षा सरदारशहर कस्बे में ही हुई। उसके बाद आपने एलएलबी श्री डूंगर महाविद्यालय बीकानेर से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। एलएलबी के बाद आपने चूरू जिला मुख्यालय पर 1972 में वकाल के पेशे को अपनाया और लगभग 49 वर्ष इस पेशे में रहे और 2020 से लगातार बार एसोसिएशन सरदारशहर के अध्यक्ष पद पर आसीन थे।वकालत को‌‌ आपने सिर्फ पेशा ही नहीं सामाजिक दायित्व के तौर पर‌‌ लिया और हर समाज ,हर वर्ग के कार्य को पूरी निष्ठा से किया और जन-जन के हृदय में जगह बनाई। आप एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे, जो वकालत के साथ-साथ राजनीति में भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमेशा सक्रिय रहे। आप 1985 से 1990 तक मालसर ग्राम पंचायत के सरपंच और पंचायत समिति सरदारशहर के उपप्रधान रहे और इसके माध्यम से जन सामान्य की हर संभव मदद की।आप क्षेत्र के बड़े राजनीतिज्ञों के हमेशा से विश्वास पात्रों में रहे। चाहे वह पूर्व विधायक श्री हजारीमल जी सारण( जो उनके राजनीतिक गुरु भी थे) हों, या फ

हिंदी है माथे की बिंदी

राजभाषा है हिंदी राजकाज इसमें होता है कम राष्ट्रभाषा है हिंदी पूरे राष्ट्र में‌ बोली यह जाती नहीं सांस्कृतिक सूत्र है हिंदी  पर आर्थिक आधारित हो गई संस्कृति पूरे देश‌‌ में‌ फिर भी जीवित है हिंदी क्योंकि हमारी आत्मा है यह एक दिन का उत्सव‌ नहीं है हिंदी हिंदुस्तान की प्रतीक है यह पढ लो कितने ही शास्त्र पर विश्व बंधुत्व केवल पढाती है हिंदी हिमालय सी‌ ऊंची तो गंगा सी‌ मधुर और रेगिस्तान ‌जैसी सहनशील है हिंदी लिखते होंगे अंग्रेजी बोलते ‌होंगे आंचलिक फिर भी हिंदुस्तान के माथे की‌ बिंदी है हिंदी।।

सच्चा शिक्षक

जिंदगी एक सफर है जिसमें राहें हैं अनेक कुछ जाती मंजिल को तो कुछ छीनें‌ विवेक सच्चा शिक्षक जो मिले तो बदले भाग्य‌ रेख।

पीछा (Backspaced)

आगे बढ़ना जिंदगी है पीछा वह जो जीया है कामना के भंवर जाल में पीछा अनुभव का दीया है। सूरज हो या चंदा सब जगह आवृत्ति का धंधा थोड़ा पीछा भी याद रखें तो जीवन‌ ना‌ लगे फंदा।।

3 years of Young Boys Club

The group young boys club, initially it was called Rational RECK 84, has completed 3 years today. Hope all have enjoyed well the group activities. The best thing of this group is that everybody shares something. During the last one year one new feature was started by Anil Negi , the Zoom Meet has opened the new dimension of virtual meet. This is really a praiseworthy work by Anil bhai. Vishu" Ghazal man with fine liquor taste" is the major contributor to the group with so much geographic, history,tourism and music knowledge . His quiz regarding recognizing heroines/ models from back has been most entertaining in the sad times of covid. I want to share his memories of posts here regarding his Afganistan days: " 18th Oct.20- Ghazal tab bhi chalti thi! Roshan Ahmadzai, younger brother of the then President Najibullah used to be a great companion for ghazal sessions and drinks.I came back to India, he fled to Poland and then Germany"

हरियाली तीज

यह तीज ना‌ होती तो तीजणियां‌ ना सजती तीजणियां ना‌ सजती तो सावन‌ में बहार तो होती परन्तु रंग व‌ उमंग ना‌‌ होती तीज में‌ रंग तीजणियां हैं भरती दोनों मिलकर श्रृंगार उत्सव‌ रचती।।

भारतीय महिला हॉकी कांस्य मुकाबला

आज लड़कियां हारी नहीं हैं बल्कि दब गई इनमें चिंगारी है।      अगले ओलंपिक बनके शोला दहक उठेगीं      तब पड़ने वाली दुनिया पर ये भारी हैं। जितना तपता सोना है उतना निखार आता है।      आज नहीं तो क्या हुआ      कल हमें जीतना आता है। पहुंच सेमीफाइनल मान तो देश का बढा ही दिया बस पदक जीतना बचा है ऐसे ही जज्बा बरकरार रहे अगले ओलंपिक स्वर्ण तमगा पक्का है।      विजेता की तरह आपका       स्वागत वापसी पर पक्का है      पलकों पर बिठाएगा यह देश आपको       इसमें जरा भी नहीं शंका है।।

मित्रता

भूल गया मैं अपने आप को दुनिया की कसौटी पर खरा  उतरने की कोशिश करते-करते ये दोस्त ही हैं जो बात-बात पर मेरी लंगोटी हैं खींचते और मेरी स्मृतियों की चोटी‌  पकड़ते-पकड़ते मुझ तक  अब भी हैं पहुंचते।।

चानू ने चांदी दिलाई

चानू ने चांदी दिलाई पुरानी‌‌ कहावत जुबां पर आई "आज चांदी हो गई।" अब सोने पर नजरें टिक गई टोक्यो में हमारे "तमगों की पेट्टी खुल गई" तीर , तलवार , भाला,शूटिंग सबकी धार तेज हो‌ गई आगाज की ही बात होती है वरना‌ हर‌ दिन के बाद रात होती है।

शायरों की महफिल

कभी शायरों की महफिल में आकर तो देखो रंजो गम के दरिया में भावनाओं की नाव को दरिया के उस पार बैठी दुल्हन के घूंघट को नजरों को नजाकत से उठाते हुए तो देखो।।

सौदागर

अब मैं उन हवाओं का सौदागर हूं जो बीते मौसम साथ लाती हैं घर ,खेत, बाग-बगीचे तो क्या अब बाजारों की रौनकें भी रास नहीं आती हैं तुझसे बिछड़ कर ही यह जाना नजदीकियां कितना दुख पहुंचाती हैं दिन की रोशनी अब तेरा अक्स नहीं रातें भी डायन बन‌ कर बहुत डराती‌ हैं भूल गए दुनिया वाले तेरी जो बातें  मुझे वो ही बातें हर पल याद आती हैं।।

दास्तान-ए-शायरी

लिखना तो एक सफर है जिसमें पब्लीशर हमराही हैं मिलकर चलते- चलते जिस मोड़ पर शब्द लिपटते सुनहरी स्याही हैं तब जाकर दास्तान कोई बनती सुन्दर व स्थाई है।

समय के संकेत

देर से सोना देर से उठना रात में खटपट करते रहना है इशारा अब समय निकला अपना। स्वाद से ज्यादा पाचन का रोना सुबह दूध छोड़ छाछ का पीना सब्जियों में लौकी को तरजीह देना है इशारा अब समय निकला अपना। बेड(खाट) छोड़ तख्त अपनाना व्यायाम से इतर प्राणायाम को सराहना सिर के बालों का कम होना है इशारा अब समय निकला अपना। बच्चों का मन आपकी बातों में कम लगना चाल में गति से इतर सावधानी का शामिल होना मिलने वाले का तबीयत पर ही जोर देना है इशारा अब समय निकला अपना। दांतो के बीच अब जगह का होना घर में लौंग तेल का स्थाई ठिकाना एक आध दांत का साल में बिछुड़ जाना है इशारा अब समय निकला अपना। प्रकृति से डोर बांधना छोटी छोटी चीजों का मनन करना साथी बिछुड़े‌ अक्सर याद आना अतीत जब लगने लगे सुहाना विरोधियों का भी सहानुभूति जताना है इशारा अब समय निकला अपना। हिसाब किताब जब कोई पूछे अपना पाठ नैतिकता का ही उसको पढ़ाना अपनों के गले यह बात ना उतरना है इशारा अब समय निकला अपना।।

कुत्ते की खुजली,अंधे की लाठी

एक तरफ कुत्ते की खुजली राम ही जाने कितनी गहरी दूसरी तरफ अंधे की‌ लाठी जो चिल्लाये उस पर भारी बहस‌ चले बस मूत्र ‌चिकित्सा और बचे हुए गाएं राग दरबारी हाय‌! राम ये कैसी दुश्वारी।।

धै तेरे की

कभी होती थी सांत्वना थेरेपी सहारा बन के देते थे प्रेरणा थेरेपी अब आई है झापड़ थेरेपी उस पर रोना थेरेपी धै तेरे की।।

यह चाय है

कब पकड़ी यह पता नहीं क्यों पकड़ी यह भी पता नहीं यह चाय है बिना इसके दिन फिर भी जंचता नहीं शुरू में गुड़ की पीते थे पत्ती भी काफी डालते थे बड़ी गिलास में छक-छक कर साथ-साथ बैठकर पीते थे काली डेकची इसकी कोई पकड़ता नहीं यह चाय है बिना इसके दिन फिर भी जंचता नहीं फिर चीनी में बनने लगी पत्ती भी कई प्रकार की आने लगी भगोने में उबलने लगी नाप की ही मिलने लगी साथ बैठने का आनंद कोई जानता नहीं यह चाय है बिना इसके दिन फिर भी जंचता‌ नहीं आगे चलकर गरम पानी ही मिलने लगा पत्ती का पाउच धागे से बंधा अलग रखने लगे चीनी के क्यूब और दूध का पाउडर ट्रे में अलग से सजने लगे अब पास बैठने की जरूरत कोई समझता नहीं यह चाय है बिना इसके दिन फिर भी जंचता नहीं आजकल ग्रीन टी लेने लगे दूध अब रहा ही नहीं चीनी की अब चाह नहीं दूसरा इसको कोई देखे ही नहीं अब स्वाद व मिठास का जिक्र कोई करता नहीं यह चाय है बिना इसके दिन फिर भी जंचता नहीं।।

Our steps & destiny

The story goes to 1978 when I had passed my 8th standard exam and had to decide my optional subject in class 9th. In those days subjects were chosen in class ninth. Being a meritorious student I decided to opt for science with biology as optional and I applied at government Bagla higher secondary school churu and I got the seat and I came back to my village for arranging fee and discussing stay problems at churu with my family members. But the very next day two boys of our village fought with each other and one named Prabhu (name changed) striked with an axe on the head of Ramu( name changed) and there was a huge blood stream coming out from Ramu's head, smearing him totally in blood.A local compounder was called and he cleaned the head with clean pieces of clothes and done some bandage and referred to churu. That flow of blood and the rough first aid by compounder with bare hands shook me to the core in such a way that I decided to change my school and optional subject. Next da

खेला होबे

खेला तो कई बार होबे परंतु एक टांग पर प्लास्टर चढ़े और रणचंडी बन आगे बढ़े ऐसा मंजर पहली बार होबे कई टैगोर के लिबास में डूबे फिर‌ भी चौबे से बन गए दुबे हाय! ऐसी पिटाई फिर ना होबे।।

कोरोना से जंग

कोरोना की जंग में ना करो हृदय तंग अफवाहें छोड़कर टीके लगवाओ मन में भरकर त्योंहार जैसी उमंग कोरोना का नाम तो मिट ही जाए दुनिया भी देख- देख रह जाये दंग।।

देह

यह हमारी मिट्टी की देह व्यर्थ है इससे स्नेह है। कभी सुख का प्रकाश इसमें कभी दुख का तिमिर छाया प्राणों की वीणा से सजता यह घर किसी का बसाया। करुणा हमें शीतल करती मोह विवेक हर लेता प्यार जीवन में है वह सोता जब यौवन अंगड़ाई भरता। पीड़ाओं की आंधी से जीवन में उठते राग बिछोह यह हमारी मिट्टी की देह व्यर्थ है इससे स्नेह। स्वार्थ की वल्लरियां अनायास आंखों पर चढ़कर सोचने नहीं देती कभी अपनो से आगे बढ़कर बालपन उषा समान जिसकी किरणें ऊर्जावान श्रमित जरा संध्या समान लेकर आती तिमिर का भान कोमल पुष्प सी कठोर कुलिश सी सत्य का है कहां अवगाह यह हमारी मिट्टी की देह व्यर्थ है इससे स्नेह ।

लाइलाज आपदा

लड़खड़ा रही है जिंदगी ऐसे एक मुकाम पर कहने को डॉक्टर तो बहुत हैं पर लगाम नहीं है मात्र एक आयातित जुकाम पर।। # On loss of my batchmate Vijay Shiwhare to the pandemic. Keval bachav hi upay ha.

निमझर की छोंक वाला रायता

कल मैंने नीम पुष्प (निमझर) के बारे में एक पोस्ट डाली थी ।आज मैंने निमझर से रायता बनाया है जिसका संक्षिप्त विवरण‌ नीचे दिया जा रहा है। राजस्थान में रायता गर्मी में विशेष रुप से पसंद किया जाता है और इसमें रोटी चूर कर खाई जाती है। रायते के अवयवों को पकाया नहीं जाता और मूल स्वरूप में ही रखा जाता है यानी कि खाद्य पदार्थों जैसे दही और प्याज की मूल स्थिति बरकरार रखी जाती है। निमझर का रायता निम्न प्रकार बनाया जाता है:- एक आदमी के लिए: सबसे पहले एक बड़े प्याले में २५० ग्राम दही और एक कप पानी‌ और नमक( स्वादानुसार) लेकर इसको फेंट लेते हैं । फिर इसमें‌ एक मध्यम आकार का बारीक कटा हुआ प्याज और स्वादानुसार लाल मिर्ची पाउडर मिला लेते हैं। अब एक नॉन स्टिक कढ़ाई में एक बड़ा चम्मच देशी घी लेकर उसे मीडियम आंच पर गर्म करते हैं और गर्म होने पर इसमें थोड़ी सी हींग, थोड़ी सी हल्दी और आधा छोटा चम्मच निमझर डालकर गर्म करते हैं जब निमझर का रंग भूरा हो जाए तब जो प्याले में‌ दही का मिश्रण बनाया था उसको इस नॉन स्टिक कड़ाई में डाल कर छोंक में घुमा कर गैस तुरन्त बंद कर दी जाती है। इस छोंक‌ की खुशबू से पूरी रसोई

Nimjhar( Nimb/Neem flowers)

Prepared and stored "Nimjhar( Nimb/ neem flowers) for the year 2021-22 for consuming in "raita" . This is the natural antibiotic easily available everywhere in India . Those who have enough time to collect, dry and pluck the nimb flowers , it is a best natural antibiotic and a best use of time for them also. This is second saturday and I have done a good use of it. About Neem I can say that :- यत्तदग्रे विषमिव परिणामेअमृतोपमम् तत्निम्बपुष्पं प्रोक्तंकिटाणु नाशनमं ।।

मरुस्थल में अंगूर

बन बादली तू आई स्नेह और उल्लास लेकर       जब तूने मेरे मार्ग को अख्तियार किया       तब मैं उपकृत हुआ       अब ओनर्स से मास्टर डिग्री लेने पर       मैं सचमुच तर गया सच में तुमने लिख दिया फिर मेरा इतिहास नया        मैं कभी नींद से अभिसार करता       कल्पनाओं में खो कर     ‌ लोग मुझे अज्ञान कहते      मरुस्थल में अंगूर उगाने का नाम लेकर मिट गई कुछ तो पीर मेरी जब तूने लिखा मेरा इतिहास नया ।। # On getting M.Tech. with Honours in Power System Engineering by my daughter. ‌ ‌

कोष मूलो दण्ड:

तीन शब्दों का यह वाक्य जिसने पिछले तीन‌ दिन से उड़ा दी थी मेरी नींद आया है जो कौटिल्य अर्थशास्त्र से सदियों से होकर प्रवीण आज भरी जब आय विवरणी तो पाया नहीं‌‌ कोई‌ कागज इससे विहीन बातें की‌ और गूगल किया तो पाया कुछ ऐसा सार साझा कर रहा हूं सबसे आप करना इस पर विचार कोष तो है राजस्व मूल से मतलब आधार दण्ड प्रतीक है राज्य प्रशासन का जिससे विकास बनता साकार इस तरह इस वाक्य का मतलब है "राजस्व राज्य प्रशासन‌ का आधार " इसलिए बिना डर करें इसका सत्कार और बनें देश के विकास में भागीदार।

रंगों का महत्व

रंगों‌‌ पर यह पानी‌ की‌ बोछार फिर भीनी- भीनी सुगन्ध और गलबहियों के हार ज्यों- ज्यों सीने‌ लगे अपनों से त्यों- त्यों स्वच्छ भये मन विकार।।

होली का जाम

होली पर चारों ओर चंग हैं गीतों में जवानी की तरंग है बुढा या जवान हर कोई नवरंग है मौसम में भरी अद्भुत उमंग है            यह तो जाम है जो आज भी अपने ही आयाम है चांद भी पूरा है तारों की चमक में तारिकायें लग रही स्वर्ण घट की सुरा‌ हैं ऐसे में होली तो बस बहाना है यह योवन की कुश्ती नूरा है             यह तो जाम है जो आज भी देता सही पयाम है कई हृदय तंग हैं बाहर उमंग, भीतर एक जंग है जीवन बदरंग है सिर्फ सपनों में ही रंग है            यह तो होली का जाम है जहां आशा कायम है

फोग

बसंत की आभा है न्यारी जहां फलती वनस्पति बिन तोय 'फोग' जैसा मरूधर योगी भी इस मौसम फलित होय।।

संगीत सुनहरे

कविता वक्त का रोचक बखान है कविता हर भाषा की जान है कविता कल्पना की उड़ान है तो कवि हृदय का आख्यान है            कविता कभी हरित क्रांति           तो कभी श्वेत क्रांति है           कभी बूटों की दुखान्तिका          कभी कोरोना से आतंकिता है समय चाहे कैसा भी हो यह उससे आगे रहती है क्योंकि दुनिया की हकीकत कल्पना से ही प्रेरित होती है           कविता में बड़ी भाषाएं सागर हैं           बड़े कवि ज्ञान का पारावार हैं          तो छोटी भाषाएं नदियां हैं         और छोटे कवि उनकी लहरें हैं         जिन के संगीत सुनहरे हैं।।

A new broom sweeps well

This was the subject Manjula sharma madam gave me in a tutorial class which I remember till date. She knew well that the broom will sweep well only when the sweeper is well skilled. Only new broom does not do that and so she used to go to every seat to check the assignments and to understand our tight handness in english( matlab vo jan ne ki koshik karti thi ki ham kitne paani me hain aur sudhar ki kya gunjayas ha). There I remember two professors of English in RECK one Mr KB Singh, who was a perspiring( matlab mere pasine nikalte the samane jane se) personality for me to face . He used to teach the phonetics and talked about the dictionary of "Oxford advanced learners" that never came to my head and I used to stare at him like a goat sees towards falling leaves from a tree in hope of satisfying the hunger but which never fruition. [ ] Another was Prof Manjula sharma who was an inspiring personality to the students who basically belonged to hindi medium and she knew our thi

खीप और खीपोली की सब्जी

खीप‌ और खीपोली की सब्जी खीप - बिना खीप किसड़ो झूंप खीप एक रेगिस्तान में पाया जाने वाला 3- 4 फीट ऊंचा पौधा होता है। आज से 40- 50 साल पहले तक रेगिस्तान के ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक घर में खीप से छाया हुआ‌ झोंपड़ा अवश्य होता था। इस पौधे में मिट्टी को बांधने की क्षमता होती है। रेगिस्तान के ऊंचे से ऊंचे टीले पर खीप जरूर उगी होती थी। खीप से ही रस्सी (जिसे गुंछला कहते थे) बनाकर झोंपड़ों की छावनी की जाती थी। हरी खीप को ऊंट बड़ी चाव से खाता है इसलिए जब खेती का काम नहीं होता था तो ऊंटों को पैरों में बेड़ी लगाकर खीप चरने के लिए छोड़ देते थे और शाम को वापस ले आते थे।वक्त के साथ जैसे झोंपड़े गायब हुए वैसे ही खीप भी गायब होती जा रही है। हमारे खेत में हजारों खीप के पौधे हुआ करते थे लेकिन परसों देखा तो सिर्फ खेत की मेड़ पर ही 4-5 पौधे बचे हैं , वह भी मुरझाए हुए से क्योंकि ट्रैक्टर की जुताई से खीप जड़ सहित निकल जाती है और खत्म होती जा रही है। मार्च के महीने में खीप के पौधे में फलियां लगती हैं जिन्हे खीपोली कहते हैं। खीपोली की सब्जी बहुत ही स्वादिष्ट और‌ वात रोगों व घुटनों में दर्द में लाभकारी ह

शब्दों का जादूगर

शब्दों का जादूगर बोली में सम्मोहन           चेहरा खुश मिजाज सीखने में विद्यार्थी हाजिर जवाबी में महारथी           लेखन में ऊंची परवाज़ राजनीति में मिसाल छवि में विशाल           ‌‌ प्रभावी आवाज वक्त से आगे चाहे तकनीकी या हो ऐसेशरी           वर्ताव में सहज जन्मतिथि नौ मार्च महिना बसंत सा सुरूर इसीलिये नाम थरूर           जिस पर मुझे है गुरूर

जाल

मकड़ी बुनती है जाल उसी में फंसकर रह जाती निरीह सी तड़पती फिर भी मुक्त ना हो पाती मैं बुनता शब्दों का जाल जिससे ऐसा होता कमाल प्रेम जाल में बंधकर रहते फिर घृणा की कहां मजाल ?

मील का पत्थर

आज पैरों में घुंघरू बंधे हैं और सांसों में है सरगम मन मयूर यूं नाच रहा है जैसे लहरा दिया हो परचम राज बस इतना है कागज पर लिखते-लिखते अब पहुंच गया मैं किताब तक आसमानी कहानियों के संग पाया अपना मील का पत्थर अब पहुंच गया मैं बाजार सोशल मीडिया से निकल कर।।

मेरी बात

एक बार देखा था मैंने उसे झेंपकर कहा था उसने क्या देखते हो इधर ? घबराहट में मैं भी भूल गया था अपना कवित्व झुका लिया था सिर लानत है मेरा कविता लिखना मैं नहीं शब्दों में पिरो सका जिस रूप को उसने आज हेयरकट को नया अंदाज देकर मेरी कविता पूरी कर दी देखकर तस्वीर लोगों ने ही मेरे मन की बात कह दी।।

गुलदस्ता

लगन को कांटो की परवाह नहीं होती बनाना लोगों के दिलों में जगह फिर भी आसान नहीं होती बन जाये गर एक बार दिलों में जगह उनकी दुआयें फलीभूत अवश्य होती प्रजातंत्र के इस खूबसूरत तंत्र में पालिका जीत ही सबसे मौलिक होती अपने ही लोगों के बीच अपने ही कस्बे में उनकी मूलभूत समस्याओं के निराकरण का एक सुनहरा अवसर प्रदान करती सरदार शहर के वार्ड नंबर 24 से आपकी उल्लेखनीय जीत हमें इस चुनौती पर आपके खरा उतरने के‌ लिए बहुत आश्वस्त करती ।।

बापू को नमन

बापू आज आपके देश में सत्य , अहिंसा ‌ शरणार्थी है और अहम् के हाथ में लाठी है इसलिए मारे शर्म के अब आपकी मूर्ति के सामने आने की मेरी हिम्मत नहीं जुट पाती है ।।

मोगरी - टमाटर की सब्जी

वैसे तो सर्दियों में कई तरह की सब्जियां आती हैं, लेकिन बहुत सी सब्जियां इस मौसम में बहुत आसानी से और सस्ती मिलती हैं। उन्हीं में से एक है मोगरी(Radish Pods) यानी मूली की फली । कभी रविवार के दिन जब फुर्सत हो तो मोगरी को साफ करके बारीक काटकर इसकी सब्जी बनाई जा सकती है जो बहुत स्वादिष्ट होती है। कल बाजार गया था तो पाव भर मोगरी लाया था। जिसकी आज दोपहर में सब्जी बनाई और बाजरे की रोटी के साथ खाई जो बहुत ही स्वादिष्ट लगी। यहां उसकी रेसिपी पेश है ,आशा है आप लोगों को पसंद आएगी। सामग्री (एक आदमी के लिए) 1-सौ‌ ग्राम मोगरी (छोटे टुकड़ों में कटी हुई) 2- दो छोटे खट्टे टमाटर (बारीक कटे हुए) 3-मूंगफली का तेल एक बड़ा चम्मच 4-लहसुन की 4 कलियां ( पेस्ट बनायें) 5-जीरा आधा छोटा चम्मच 6-लाल मिर्च पाउडर एक छोटा चम्मच 7-हल्दी पाउडर आधा छोटा चम्मच 8-नमक एक छोटा चम्मच बनाने की विधि एक कड़ाही में एक बड़ा चम्मच मूंगफली का तेल लें और मध्यम आंच पर गर्म होने के लिए रखें ।अब इसमें हल्दी पाउडर, लहसुन पेस्ट और जीरा डालें। जीरा आने पर आंच को धीमा कर दें और बारीक कटे टमाटर इसमें डालकर एक मिनट तक चलाते हुए गर्म

खुशबू से

खुशबू का काम है महकाना लोगों का काम है महकना ऐ खुशबू रोज उस राह से गुजरना जिधर रहती है तेरी तृष्णा तेरा नुकसान कुछ ना होना नामुमकिन है खुशबू को पकड़ना पर राह का निश्चित है महकना।। - मोहन सरदारशहरी

नई भोर

फिर एक कैलेंडर और बदला काफिला पुराना नई                आशाओं संग फिर निकला मन का मोर फिर करे शोर सांसो की सरगम हुई भावविभोर सर्दी की मस्ती भूली हर गिला                ढूंढ रही कोई चितचोर रंगीला फिजाओं में नई ताजगी आई किरणें देख - देख मुस्काई पंछी करें फिर नए कलरव                जब नई भोर का सूर्य निकला।। नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ 💐💐🌹🌹🙏