यह हमारी मिट्टी की देह
व्यर्थ है इससे स्नेह है।
कभी सुख का प्रकाश इसमें
कभी दुख का तिमिर छाया
प्राणों की वीणा से सजता
यह घर किसी का बसाया।
करुणा हमें शीतल करती
मोह विवेक हर लेता
प्यार जीवन में है वह सोता
जब यौवन अंगड़ाई भरता।
पीड़ाओं की आंधी से
जीवन में उठते राग बिछोह
यह हमारी मिट्टी की देह
व्यर्थ है इससे स्नेह।
स्वार्थ की वल्लरियां
अनायास आंखों पर चढ़कर
सोचने नहीं देती
कभी अपनो से आगे बढ़कर
बालपन उषा समान
जिसकी किरणें ऊर्जावान
श्रमित जरा संध्या समान
लेकर आती तिमिर का भान
कोमल पुष्प सी कठोर कुलिश सी
सत्य का है कहां अवगाह
यह हमारी मिट्टी की देह
व्यर्थ है इससे स्नेह ।
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