अब मैं उन हवाओं का सौदागर हूं
जो बीते मौसम साथ लाती हैं
घर ,खेत, बाग-बगीचे तो क्या अब
बाजारों की रौनकें भी रास नहीं आती हैं
तुझसे बिछड़ कर ही यह जाना
नजदीकियां कितना दुख पहुंचाती हैं
दिन की रोशनी अब तेरा अक्स नहीं
रातें भी डायन बन कर बहुत डराती हैं
भूल गए दुनिया वाले तेरी जो बातें
Comments
Post a Comment