कब पकड़ी यह पता नहीं
क्यों पकड़ी यह भी पता नहीं
यह चाय है बिना इसके
दिन फिर भी जंचता नहीं
शुरू में गुड़ की पीते थे
पत्ती भी काफी डालते थे
बड़ी गिलास में छक-छक कर
साथ-साथ बैठकर पीते थे
काली डेकची इसकी कोई पकड़ता नहीं
यह चाय है बिना इसके दिन फिर भी जंचता नहीं
फिर चीनी में बनने लगी
पत्ती भी कई प्रकार की आने लगी
भगोने में उबलने लगी
नाप की ही मिलने लगी
साथ बैठने का आनंद कोई जानता नहीं
यह चाय है बिना इसके दिन फिर भी जंचता नहीं
आगे चलकर गरम पानी ही मिलने लगा
पत्ती का पाउच धागे से बंधा अलग रखने लगे
चीनी के क्यूब और दूध का पाउडर
ट्रे में अलग से सजने लगे
अब पास बैठने की जरूरत कोई समझता नहीं
यह चाय है बिना इसके दिन फिर भी जंचता नहीं
आजकल ग्रीन टी लेने लगे
दूध अब रहा ही नहीं
चीनी की अब चाह नहीं
दूसरा इसको कोई देखे ही नहीं
अब स्वाद व मिठास का जिक्र कोई करता नहीं
यह चाय है बिना इसके दिन फिर भी जंचता नहीं।।
Comments
Post a Comment