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Showing posts from 2020

कर्म प्रकाशिनी गीता

रोज साझा करते हैं बातें भौतिकता वाली चलो आज एक दिन करें बातें कर्मों के सार वाली।      जब - जब मिलते हैं      और जो - जो मिलते हैं      बातें सिर्फ करते हैं       'मैं' हूं वाली गीता के प्रकाश में चलो आज जलाएं इस 'मैं' की होली।      हमारे शरीर के साथ-साथ     हम सब कुछ तैयार पहले से ही पाते हैं      लेकिन यह बात हम      समझ कब पाते हैं? गीता के प्रकाश में चलो आज ढूंढते हैं इस रहस्य की खोली।       ऐसे लुट रही है जिंदगी      और हम अनजान बनकर बैठे हैं      सच तो यह है कि हम व्यर्थ      इच्छाओं की गठरी लेकर ऐंठे हैं। आओ गीता के ज्ञान से इन इच्छाओं की गठरी को कीलें।

बोर्डर(सीमा)

बोर्डर कहता मुझ पर कभी‌ ठहरना मत वरना होगा विप्लव घर के बॉर्डर नजरें जो ठहरे तब पड़ोसियों में उपद्रव। देश के बोर्डर सेना टिके तब मानवता घुटने टेके राजधानी बॉर्डर किसान डटे तब अर्थशास्त्र कोने में सिमटे साड़ी बॉर्डर नजरें टिके तो समझो पांचो पांडव बिके सदा करो बॉर्डर का सम्मान इसमें है सबका कल्याण।।

किसान आंदोलन

सरकारें आती हैं सब्सिडी, लोन, बिजली से भरमाती हैं कर्ज के परिणामों से अनभिज्ञ!      किसान हंसता है      कुछ नकली हंसी      कुछ राहत की मदहोशी यह देख सरकार पैंतरा बदलती है अनाज को खुले बाजार की सुपुर्दगी का निश्चय करती है      किसान रोता है      अपना आपा खोने पर      मजबूर होता है!

बचपन की यादें

        मेरा बचपन सीधा था         बीता गोरे धोरों में। सूरज उगते खेत पहुंचते घर आते थे तारों में खेतों में मोर-पपीहे बोलते पशु चरते थे कतारों में      घरवालों से खूब डरता      बात समझता था उनकी इशारों में। शाम को खाने में हमेशा खिचड़ी दही रोटी का कलेवा था दोपहर में सांगरी की कढ्ढी संग बाजरी की रोटी का चलेवा‌ था      सर्दी जुकाम में चाय पीता      यही आदत थी चलन में। स्कूल चलती थी छप्पर में ना झंझट था गणवेश का पानी लाना, रोटी बनाना शामिल था गुरु सेवा में बारहखड़ी और पहाड़े बोलना मिलता था बस मेवा में      गुरुजी के डंडे का खौफ      अक्सर सताता था नींदों में। प्राथमिक बाद दूसरे गांव गया पैदल पढ़ने मीलों दूर घरवालों से पढ़ने के लिए करता रहता मैं जी हुजूर      इक्कीस रूपये सालाना फीस की खातिर      कई दिन व्यर्थ होते थे हल चलाने में। मैं बैठता था पढ़ने घरवाले ताना देते थे काम चोरी का कभी-कभी तो छीना- झपटी में वो रख देते थे कनपटी में      मां के साथ और आशीर्वाद से      सदा अव्वल रहा पढ़ाई में। मां सरस्वती की कृपा थी काम चलता रहा वजीफे में दोस्तों और शुभचिंतक

किसानों की व्यथा

उतार आए हैं सिर से सारे ही बोझ बैठे हैं सीमा पर चाहे पुलिस आये या फौज।        कभी मौसम ने लूटा        कभी महामारी        हम सहते रहे         सारी दुश्वारी दु:खों की कतार हमने देखी है रोज।        अस्तित्व कुछ होता है        यह हमें ना मालूम       ‌ सभी हमें छलते हैं       हमें पहचान की ना तालीम धरती से ही जुड़े हैं बस यही एक मौज।        हमें किसी से अपेक्षा नहीं        फिर भी यह कैसी जबरदस्ती        कृषि सुधार का टोकरा        लेकर आ गया राज रूपी हस्ति        सांसे हो गई महंगी गर्दन है सस्ती अब तो भूल चुके हैं करना अपनी ही खोज।

दिसंबर की धूप

दिसंबर की धूप लगती दुल्हन का रूप        रहती कोहरे के        घुंघट में सिमटी सी       निकलती लंच के समय         शरमाती सी सरकती ऐसे जैसे मेहंदी वाले पांव सरूप        देती है बस एक       अबोली झलक        जाना हो जैसे       उसे पीहर तलक कर जाती है हवाले ठंड के जो रहती सीने में कसक स्वरूप।।

उसूल

मेरी खुशी यारों की अमानत है मेरी जिंदगी उनकी दुआओं से सलामत है। मैंने जिंदगी के फर्ज निभाए हैं फिल्मी तर्ज अब इस ऊंघते से समय में नहीं है कोई मर्ज ठहाके लगाने में अब नहीं है कोई हर्ज। मेरी बातों में अब नहीं है कोई रंज मेरी चालों में नहीं है शतरंज मैं तो टिमटिमाता दीपक हूं ख्यालों का जिसको इंतजार रहता यार मतवालों का। मैंने अपनी जिंदगी पर समझा नहीं अपना हक इसलिए जो करना है करता हूं बे-शक जीता हूं आज को ना करता चिंता नाहक।।

My Haryana Visit

I had been to haryana wef 03-11-2020 to 12-11-2020 for some official work at Sonipat ( Bhuvnesh ka shahar). In the journey I had an opportunity to met with Sh. Vijay Mohan Jain in his office at Rohtak . He is working as commissioner , GST there. He made me feel very homely and given a warm welcome with jalebi and samosa and created a RECK intimacy on 3rd Nov. The hotel accommodation at Cozet, Sonipat was good and the owner was a businessman -cum- politician . He finally became a good friend of mine. He was an Ex- Chairman of Sonipat Zila Prishad ,Mr. Raj Singh Dahiya. The special thing I have seen during this visit in haryana is "Tau Devilal Parks " in each city. I had a regular morning jogging at the "Swatantra Sangram Memorial Park " on Bhalgarh road from 5:30 hrs to 6:15 hrs . One big industry of Atlas cycle of Sonipat is now the tale of past. This was a big employer here. In spare times from work I visited Murthal's Sukhdev Dhaba and Garam Dharam Dhaba.

दिवाली संदेश

जिसने भूत को छोड़कर वर्तमान में जीना सीखा है, वह यह नहीं देखता कि पीछे छूटा क्या है? रूह उसकी कभी टूटती नहीं, जिसका खुदा खैरख्वाह है दीपक का काम‌ है प्रकाश देना भले ही खुद का पैंदा स्याह है मेरे दुर्गुणों का हिसाब न रखना उनका फल मुझे ही मिलना है मेरे सद्गुणों को ही याद रखना यही मेलजोल की एक राह है।।

चौरासी के गबरू

जूम मीट में आ गए हैं चौरासी के गबरू।।        सांसे हैं महकी सी        फिजां है बहकी सी उछल कूद मचा रहे हैं जज्बातों के पखेरू।।        स्वप्न सी इस संध्या में        धूम मचाए वारुणी        ज्यों ज्यों हलक उतरती जाए        बनती जाए रागिनी। सहज ही संगीत पनप रहे हैं बिन पायल बिन घुंघरु।। जूम मीट में आ गए हैं चौरासी के गबरू।।

वर्तमान

चला जाता है अतीत यादों में फिर भी बना है रहता भविष्य का नहीं है पता फिर भी यह जीने नहीं देता वर्तमान है जीवन का भाग्य विधाता इसका उपयोग करना नहीं आता बिना दृढ़ निश्चय के संबल इसको बना नहीं पाता जीवन की इस भूलभुलैया में इतनी सी बात मैं समझ नहीं पाता।

आज के रावण

मशीनी रिश्ते, संस्कार छूटते शिक्षा दिखती बेरोजगारी बांटते सोशल मीडिया समय खाते और नफरत उगलते प्रेस लगती बिक कर छपते खेती दिखती लुप्त होते डांस खाते 'थैक' पर गोते खेलों को अब सट्टे लीलते खाने को रसायन मिलते खबरों में पढ़ने को 'रेप ' के समाचार मिलते कपड़े आजकल छोटे ही सिलते फूल अब ज्यादा कृत्रिम ही मिलते जिम्मेदार दिखते झांसा ही देते इस कोलाहल में यदि राम होते ना धनुष ना बाण उठा पाते देख देख सिर्फ माथा पीटते।

कूकरी

आज दिवस भला उगा नवरात्र का आगाज घर में ब्याई कूकरी लाई पिल्ला पांच घर गूंजा किलकारी से मैं रहा हूं‌ पुस्तक बांच अब दिन जरूर फिरेंगे यह बात है बिल्कुल सांच।।

सहस्र सलाम डॉ कलाम

धरती पर रह कर जिसने भेजा चांद तारों को मिसाइलों का सलाम ऊंचे से ऊंचे पद, प्रतिष्ठा को पाकर भी जिसने हर आम और खास के हृदय में समान रूप से बनाया मुकाम जाति, धर्म और वर्ण व्यवस्था इनसे हमेशा ऊपर रखा भारत का मान ऐसे कलाम को जन्मदिन का सहस्र सलाम एक बार फिर से भारत भू पर जन्म लेकर इसको गौरवान्वित करने का आह्वान।।

मेरी‌ हामी

सहता है जीवन उम्र भर ,बे-खबरी की खामी कब ली जायेगी,मेरे बारे में फैसलों में, मेरी हामी मोड़ दिया जब चाहा, मेरा जीवन हर मोड़ पर हर तरफ संदेह के घेरे अनचाहे मिले मन को तरसाती रही लेकिन यह इच्छा मेरे बारे में फैसलों में कभी तो ली जाएगी मेरी हामी जीवन की हर राह पर मिली है बेबसी जान कर भी मैं कुछ ना कर सकी बस इस आशा में कटती रही उम्र मेरी शायद उम्र के अगले पड़ाव में ली जाएगी मेरे बारे में फैसलों में मेरी हामी कहती गई उम्र की ढलती हुई अवस्थाऐं बाप और पति ना सही, बेटा तो लेगा तेरी सलाहें लेकिन अब तक नहीं आया ऐसा दिन जिसमें मेरे बारे में फैसलों में ली हो मेरी हामी कट ही रही है उम्र मेरी जैसे अब तक कटी लेकिन अब वक्त आ गया है मैं काट दूं यह बेबसी की बेड़ियां हमेशा के लिए मुझे अब स्वयं ही दूर करनी है यह तंत्र की खामी तब ही मिलेगी मेरे बारे में फैसलों को मेरी हामी Today is International day of girl child. Let us support their right in decision making about their lives. The theme is "My Voice, O ur equal future"

लुइस ग्लुक

लुइस ग्लुक ! लुइस ग्लुक ! कवियों के दिलों में तुने आज जगा दी नई कुहुक आशा है कविता में आपके नोबल से कवियों की सोच को अब मिलेगा नया रुख दुनिया होगी काव्य में और ज्यादा मशरूफ कवि होंगे कविताओं के भावों में नवीनता से जागरूक

Politics

May I smoke during prayer ? Answer is ' No' This is morality May I pray during smoking ? Answer is ' Yes' This is politics Knowing the difference between the two decides our life's quality

तोंद

यह तोंद ही है जो चेहरे से पहले नजर आती है खुराक का मिजाज बयां कर देती है एक बार अगर आ गई तोंद सौंदर्य को देती है रोंद समय रहते संभालो तोंद वरना बीमारियां लगा लेंगी सेंध

बेटियों के लिए मुफीद नहीं

दिल्ली हो या हाथरस दो हजार बारह हो या फिर दो हजार बीस बेटियों के लिए मुफीद नहीं अब यह अपना देश। तोड़ना पीड़िता की रीढ की हड्डी का हाथरस में भरता है आक्रोश नस नस में और साबित करता है रीढ विहीन हो‌‌ गया है अब यह अपना देश । कानून चाहे कुछ भी करे संस्कारों की भी है दरकार संस्कारों की ही कमी धरती है दनुज का भेष 'लानत है' का मतलब अब कोई समझाता नहीं माता, पिता‌‌ और गुरु वाला‌ अब‌ डर नहीं इसलिए‌ ना शर्म बची है शेष बेटियों के लिए मुफीद नहीं अब यह अपना‌ देश।

ठंडी बयार

जब सहता है जीवन रिश्तों की धूप बेटी आती तब बनकर ठंडी बयार घिर जाये जीवन कभी किसी व्याधि से हर कोई देखे निराशा, शंका आदि से धैर्य और मुस्कान से तब भी काम लेती बेटी रूपी ठंडी बयार जमाना हर मोड़ पर ढहाता है कहर सा मुश्किलें खड़ी हैं मुंह बाये डायन सुरसा लेकर नाम भगवान का तब भी हिम्मत देती बेटी रुपी‌ ठंडी बयार कहता है हर रिश्ता बारंबार आपके जीवन में भी आएगी बहार पर मैं कहता हूं वो बेटी का उल्लास ही है मेरे जीवन की ठंडी बयार

शनिवार की संध्या

सजी है चौपड़ आस लगाए कई धुरंधर अभी ना आए चीयर्स का समय निकला जाई शनिवार की संध्या गदरायी प्याले छलकें छल- छल छल- छल जिसमें लहरें निर्मल- निर्मल देख- देख आंखें हरसाई शनिवार की संध्या गदरायी एसी की ठंड भी अगन लगाए क्रिकेट ,सीरियल रास ना आए आ जाओ अब जूम हताई शनिवार की संध्या गदरायी ये नहीं आए ,वो नहीं आए काश कयामत ही आ जाए ओ मेरे भाई तेरी दुहाई शनिवार की संध्या गदरायी

दोस्ती का जायका

दोस्त भी आजकल दारू की तरह हो गए चांदनी में हसीन सपने बेचते धूप में बोली से खजाने भरते जो वक्त ना समझे उसके हिस्से में "माफी" आए सुनकर इसको कोई क्यों चकराए।।

जिंदगी की समस्याएं

ये जिंदगी की समस्याएं जीवन की गति का आधार हैं सोच का बुनियादी आहार हैं अवसर ढूंढने का नवाचार हैं ना इनसे कभी घबराना                ये हैं हमारी आवश्यकताएं                ये जिंदगी की समस्याएं माना ये ना सोने देती फिर भी नए-नए सपने दिखाती या सीधे ही गंतव्य पहुंचाती नहीं तो फिर मंजिल ही बदल देती किसी निष्कर्ष पर जरूर पहुंचाती                 ये हैं हमारी अभ्यास पुस्तिकाएं ‌                ये जिंदगी की समस्याएं

अभियंता

एक अभियंता होता है ऐसा सृजनशील     मानव जो पृथ्वी के खजाने से खनिज लेकर बना सकता है देव और दानव।।

हिंदी : संस्कृति का आलोक

हिंदी करती संस्कृति को आलोकित लिखो, पढ़ो और हो जाओ रोमांचित अंतरा-अंतरा बसे मिठास समास-समास शब्द विलोप छंद- छंद है श्रुति मूलक अलंकार -अलंकार सौंदर्यपरक जानो भेद करो विश्व व्यापित लिखो,पढ़ो और हो जाओ रोमांचित मुहावरा-मुहावरा गुणों की खान रस - रस बोले व्यक्तित्व महान श्लोक - श्लोक स्वास्थ्य यह है संपूर्ण जीवन पथ्य लेकर खुराक करो जीवन आनंदित लिखो, पढ़ो और हो जाओ रोमांचित जिसने किया इसमें काम उसका बना अलग मुकाम बच्चन,नीरज या प्रेमचंद नाम ये काल को दे गए पैगाम हिंद है हिंदी का मुल्क बोलो हिंदी होकर दत्तचित पढ़ो, लिखो और हो जाओ रोमांचित

स्वरांजलि( पंचम पुण्यतिथि)

कुछ तारीखें नहीं बदलती हैं वो जिंदगी भर ठहर जाती हैं      क्योंकि      मंजिल के बिना      रास्ते नहीं होते      हमदम के बिना      कैलेंडर नहीं बदलते कुछ लोग स्मृति से नहीं जाते हैं वो अदृश्य होकर ज्यादा सिखाते हैं      क्योंकि      अब वे एहसास      नहीं दिलाते      बल्कि घट में      ही वास करते अब बारह सितंबर कभी नहीं बदलता है यह हर पल सामने ही रहता है      क्योंकि      अब फूलों में ना      सुगंध महसूस होती      रंगों में ना      उमंग दिखाई देती ऐसे जीवन में भी तुम्हारी यादें मुस्काना नहीं भूलने देती हैं और तुम्हारे आदर्शों की ज्योति जीने की राह दिखाती हैं।

Literacy is light

I know the world because I know my dignity and rights through the window of knowledge Which opens up only by reading ... Reading is thinking Writing is speaking with ink Both of them take me to my home which are books.. Without knowledge everybody hooks Therefore give a gift of literacy to someone for improving one's world looks.

My Teacher

Everyone of us might have had a good guidance and help from our teachers as per our goodwill and requirements . Mine may not be a unique one but for me this help was the milenstone in conveting a "Mohaniya into Mohan Nath". Today's teachers day takes me back to the June 1979 when I had completed my 8th class and trying to appear in the " Rural talent search examination" for getting a scholarship. At that time in our state 3 students from each tehsil were being selected for a scholarship of Rs.1000/- per annum through the "Rural Talent Search Examination". I was the topper of my class and a needy student .My school headmaster Sh. RG Khandelwal filled my form for appearing in the examination before the summer vacations and he told me to come to his home and appear in the examination when the scheduled date once declared. Finally the day approached and I went to Churu in the morning by bus which was the only conveyance once in the 24 hours at 9:00 Am fr

एक सत्य

जन्म मिलता है किस्मत से किसी को झोंपड़ी, किसी को महल तो किसी को खुला आसमां जाने का ठिकाना एक है जिसमें लुप्त हो जाता है सारा जहां जीओ इसी सत्य की‌ नींव पर अन्त अलग- अलग‌ है कहां।।

प्यार

प्यार तो एक सुखद‌‌ अहसास है नजदिकी या‌‌ दूरी‌ का इसमें नहीं कोई पाश है मीरा ने जहर‌‌ पीकर किया था प्रभु प्यार का अहसास तो अमृता ने सिगरेट के टुकड़ों को पीकर कभी किया था साहिर के हाथों को महसूस

दोस्त

हर रिश्ते में कोई न कोई पर्दा है कोई ना कोई अदृश्य किस्सा है ये दोस्त ही हैं जिनको देखकर लगता‌ है वो‌ जिश्म का हिस्सा हैं

मेरी जिंदगी

आज फिर रंगीन हो गई है जिंदगी आज फिर छलकता जाम हो गई है जिंदगी खुशियों के गीत सुनते सुनाते हुए आज फिर तलबदार है तुम्हारी यह मेरी जिंदगी मैंने इतना बुलंद किया है तुम्हारी संगत में कि अब मेरी गुलाम है यह मेरी जिंदगी तुम्हारे हर एक अल्फाज से सजाया गया शाख-ए-गुलाब है यह मेरी जिंदगी जब-जब झोंके तुम्हारे कह- कहों के आते हैं लचक खा - खाकर नायाब होती है मेरी जिंदगी

बरसात और झरने

बरसात के दिनों में बादल छाए रहते हैं पेड़ पौधे खूबसूरती में नहाए रहते हैं भावनाओं के हुजूम अंदर उड़ते रहते हैं यदि ना हो कोई हुजूम थामने वाला आंखों से झरने अक्सर झरते देखे जाते हैं।

Goga Navami & Deru dance

गोगो राणो आयो ए‌ कांकड़ में चिमक्या आल गिंवांल प्यारा म्हारा गोगाजी One folk festival which is very close to my heart and which brings me every year my childhood memories of making sand model is "Goga Navami". On Goga Navami the " Goga "from wet sand is made and worshipped. Another feature of this festival is that the worship items are very natural i.e. kheer , churma and coconut. The " Deru dance" is also performed on this festival in the afternoon at every temple ( popularly called goga medi in local language) of Gogaji . Today it is " Goga" of shukla paksha in our area but due to corona no Deru dance and Akhada is being done and hence this Goga is going to be mute one this year. May Gogaji maharaj help bring soon the covid vaccine and happiness at the every person's face

शुभकामना संदेश

अब तारीफों का वक्त नहीं एहसासों को पढ़ना अच्छा है मिले कहीं पुराने दोस्त चेहरे की रंगत पढ़ना अच्छा है बिन पूछे ही सब जान लें इतना तजुर्बा रखना अच्छा है लफ्जों का कोई बोझ नहीं पर हल्के लफ्जों से भारी कुछ नहीं ना आए कभी हल्के लफ्जों का भार यह दुआ सौ दुआओं से अच्छी है।

एक चटोरे की अभिलाषा

एक पाककला का जादूगर और परोसगारी का बाजीगर      रोज सुबह खोले पिटारा      देख ललचाए जी हमारा      कोविड का समय है      हम महसूस करें बेसहारा हिया हमारा टूट रहा अब बन जाओ तुम रफ्फूगर      कभी शादियों की दावतें      कभी पार्टियों की जाम खोरी      कभी बेलन जैसे हथियार की      मन गुदगुदाती मसखरी इतने बड़े-बड़े मसले पर नहीं है मेरे पास असले अब बन जाओ तुम शौरगर      कभी राजस्थान की दाल बाटी      कभी गुजरात के ढोकले      कभी पंजाब के छोले भटूरे      कभी बंगलुरु के डोसे देखने के अब तक बहुत हो गए शोसे कभी तो बन‌जाओ उदर पूरगर देंगे हम दुआएं बनकर पसरगर।

खूबसूरती

किसी शायर का ख्वाब हो तुम उसकी कलम का राज हो तुम लफ्ज‌ जो होंठों तक आते आते रुक गए उन लफ्जों का अहसास हो तुम

"यंग बोयज" : एक पनोरमा

This group was created exactly 2 years ago on 18 aug.2018 with the name of "Reck Rational 84" and after some months its name was changed by Vishu as "Rational Reck 84" . But last year in Nov. its name was changed to " Young Boys Club एटी4" by an open survey within the group and only one titlur name was received from Atul Pant and adopted mutatis mutandis and I think it is the best befitting name looking to our activities . The group is going good since last two years baring some squirmishes during 2019 general elections in May 2019 on one or two occasions. The basic aim of this group is maximum recreation through sharing of personal experiences, achievents, family achievements, songs, poems, shayaris, pics and small vedios etc. but with zero political discussion. I am happy to say that during last two years this motto of group had been fully followed by the honourable members baring stray incidents of foul play by one or two and then going in hiding for

भूल ना जाऊं खुद को कहीं

तेरी सुन्दरता‌ लगता है गहनो की मोहताज‌ नहीं आंखों को देख तेरी‌ ना‌ आये ऐसा‌ दुनियां का कोई ख्वाब नहीं देख तेरा लिबास ना‌ डोले ऐसा मजबूत मेरा इमान नहीं अगर मिली किसी दिन यों ही भूल ना जाऊं खुद को कहीं होंठ तेरे गुलाब जैसे मेरे सीने में दफन सुंदर अरमानों जैसे लगे देख तेरी जुल्फें ऐसे कोई जलजला मेरे दिल में आयेगा जैसे अगर कहीं डूबने लग जाऊं‌ इस जलजले में पुकार लेना एक बार नाम मेरा तेरे होंठो से तैर लूंगा मैं भी जलजलें में तिनकों के जैसे तिनकों  की इस संगत में भूल ना जाऊं खुद को कहीं

परियों का प्यार

जमीन पर दो परियां मिली मिलकर दोनों खूब खिली सौंदर्य की दुनिया को एक नई मिसाल मिली। जब दोनों की आत्मा मिली सौंदर्य को एक महक मिली दोनों का देख‌ अपार स्नेह बाकी दुनिया लागे जा ली।।

जादू

लोग पूछते हैं जादू क्या होता है शायद उन्होंने कभी देखा नहीं तुझे खुली आंखों से वो देखते सपने रातों को नींद फिर ना सूझे

जूम मीटिंग पर अल्फाज

कोविड की विपदा में हम हैं सही मिलन पर      आज तक हमने ना      पाया ऐसा अवसर अद्भुत      पहली बार मिलकर यहां      मन हो रहा गदगद दृष्टि केंद्रित हो गई है आप के ललाटों पर       कुछ आज आए हैं       बाकी अगली बार       उम्र भर यूं ही हम       जोड़े रखेंगे तार बढ़ गया है खून पाव भर मिलकर आज जूम पर

मेरी मुश्किल

मैंने लिखी शायरी उसने कहा कुछ खास नहीं वह है ही इतनी सुंदर कि मेरे पास अल्फाज नहीं और वो इतनी मासूम कि समझे मेरे जज्बात नहीं।।

स्वयं को भूल रहे हैं

          हम स्वयं को भूल रहे हैं।      रोजगार के लिए      दर-दर भटक रहे हैं      रोजगार है कि खुद ही      बेरोजगार हो रहे हैं हम अनजानी सी अंधी दौड़ लगा रहे हैं।      हमारी आवश्यकताएं      बकासुर बन गई हैं      चींटी की तरह      पंख लगाकर उड़ रही हैं आशाओं के मार्ग पर अंधेरे सो रहे हैं।      पीछे गांव में ना जोत बची      ना वह संदली भोर है      शहरों की भीड़ भाड़ में      पैर रखने को ना ठौर है इस छोर से उस छोर बस लाचारी ढो रहे हैं

"सत्कार" के वाशिंदे

चूरु कभी चूरु ही नहीं था यह मेरे लिए एक तीर्थ स्थल था जहां "सत्कार" एक आवास था वहां सद्गुणों का वास था भूख के समय भोजन-पानी रात्रि को प्रवास होता था ज्ञान की बातें, हास्य व्यंग्य और माखन मिश्री खास था चिंताओं का पिटारा लेकर जाता मैं उदास - उदास था गुरु, गार्जियन व अनुज भ्राताओं का स्नेह पाकर मिलता नया उजास था सारी मुश्किलें भेद कर पहन लेता नया लिबास था छोटी- छोटी सी खुशियों के बड़े-बड़े पंख लगते थे स्कूटर की खरीद पर भी कार के सपने होते थे जब सारे सपने साकार हुए गुरुजी भी शहर से पार हुए वक्त ने ऐसा खेल दिखाया सपने भी नौ दो ग्यारह हुए।