उतार आए हैं सिर से
सारे ही बोझ
बैठे हैं सीमा पर चाहे
पुलिस आये या फौज।
कभी मौसम ने लूटा
कभी महामारी
हम सहते रहे
सारी दुश्वारी
दु:खों की कतार
हमने देखी है रोज।
अस्तित्व कुछ होता है
यह हमें ना मालूम
सभी हमें छलते हैं
हमें पहचान की ना तालीम
धरती से ही जुड़े हैं
बस यही एक मौज।
हमें किसी से अपेक्षा नहीं
फिर भी यह कैसी जबरदस्ती
कृषि सुधार का टोकरा
लेकर आ गया राज रूपी हस्ति
सांसे हो गई महंगी गर्दन है सस्ती
अब तो भूल चुके हैं
करना अपनी ही खोज।
अगस्त 84 एडमिशन ,रैगिंग हुई भरपूर, अभिमन्यु भवन तीर्थ था ,आस्था थी भरपूर। खिचाई तो बहाना था ,नई दोस्ती का तराना था, कुछ पहेलियों के बाद ,खोका एक ठिकाना था । भट्टू ,रंगा ,पिंटू ,निझावन ,मलिक ,राठी , सांगवान और शौकीन इतने रोज पके थे, रॉकी ,छिकारा ,राठी ,लूम्बा भी अक्सर मौजूद होतेथे । मेस में जिस दिन फ्रूट क्रीम होती थी, उस दिन हमें इनविटेशन पक्की थी। वह डोंगा भर - भर फ्रूट क्रीम मंगवाना, फिर ठूंस ठूंस के खिलाना बहुत कुछ अनजाना था, अब लगता है वह हकीकत थी या कोई फसाना था ।। उधर होस्टल 4 के वीरेश भावरा, मिश्रा, आनंद मोहन सरीखे दोस्त भी बहुमूल्य थे , इनकी राय हमारे लिए डूंगर से ऊंचे अजूबे थे। दो-तीन महीने बाद हमने अपना होश संभाला, महेश ,प्रदीप ,विनोद और कानोडिया का संग पाला । फर्स्ट सेमेस्टर में स्मिथी शॉप मे डिटेंशन आला ।। हमें वो दिन याद हैं जब नाहल, नवनीत,विशु शॉप वालों से ही जॉब करवाने मे माहिर थे , तभी से हमें लगा ये दोस्ती के बहुत काबिल थे । थर्ड सेम में आकाश दीवान की ड्राइंग खूब भ...
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