कुछ तारीखें नहीं बदलती हैं
वो जिंदगी भर ठहर जाती हैं
क्योंकि
मंजिल के बिना
रास्ते नहीं होते
हमदम के बिना
कैलेंडर नहीं बदलते
कुछ लोग स्मृति से नहीं जाते हैं
वो अदृश्य होकर ज्यादा सिखाते हैं
क्योंकि
अब वे एहसास
नहीं दिलाते
बल्कि घट में
ही वास करते
अब बारह सितंबर कभी नहीं बदलता है
यह हर पल सामने ही रहता है
क्योंकि
अब फूलों में ना
सुगंध महसूस होती
रंगों में ना
उमंग दिखाई देती
ऐसे जीवन में भी तुम्हारी यादें मुस्काना नहीं भूलने देती हैं
और तुम्हारे आदर्शों की ज्योति जीने की राह दिखाती हैं।
अगस्त 84 एडमिशन ,रैगिंग हुई भरपूर, अभिमन्यु भवन तीर्थ था ,आस्था थी भरपूर। खिचाई तो बहाना था ,नई दोस्ती का तराना था, कुछ पहेलियों के बाद ,खोका एक ठिकाना था । भट्टू ,रंगा ,पिंटू ,निझावन ,मलिक ,राठी , सांगवान और शौकीन इतने रोज पके थे, रॉकी ,छिकारा ,राठी ,लूम्बा भी अक्सर मौजूद होतेथे । मेस में जिस दिन फ्रूट क्रीम होती थी, उस दिन हमें इनविटेशन पक्की थी। वह डोंगा भर - भर फ्रूट क्रीम मंगवाना, फिर ठूंस ठूंस के खिलाना बहुत कुछ अनजाना था, अब लगता है वह हकीकत थी या कोई फसाना था ।। उधर होस्टल 4 के वीरेश भावरा, मिश्रा, आनंद मोहन सरीखे दोस्त भी बहुमूल्य थे , इनकी राय हमारे लिए डूंगर से ऊंचे अजूबे थे। दो-तीन महीने बाद हमने अपना होश संभाला, महेश ,प्रदीप ,विनोद और कानोडिया का संग पाला । फर्स्ट सेमेस्टर में स्मिथी शॉप मे डिटेंशन आला ।। हमें वो दिन याद हैं जब नाहल, नवनीत,विशु शॉप वालों से ही जॉब करवाने मे माहिर थे , तभी से हमें लगा ये दोस्ती के बहुत काबिल थे । थर्ड सेम में आकाश दीवान की ड्राइंग खूब भ...
Well written for a heartfelt remembrance. नमन.
ReplyDeleteReally so heart touching
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