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Showing posts from 2025

Relaxed life

पहलगाम हादसे से सहमा‌ है देश कहीं सहानुभूति तो कहीं है रोष निकलकर बाहर ढूंढा थोड़ा सूकून अपनी चोपाटी भी थी भीड़ से महरूम।

Moved by IPL fever, Reached SMS Stadium

Yesterday was moved by IPL fever which finally brought me SMS stadium for viewing the IPL match between RR &  LSG from 07:30 PM to 11:15 PM with my son. Feelings expressed here under :- आर आर रॉयल भ्रम भये  एल एस जी लूटा मैच जीता क्रेज क्रिकेट का यही था कल का सच। अच्छी थी व्यवस्था  अच्छा शाम माहौल एक तरफ चीयर लीडर्स  एक तरफ हल्ला बोल। दो-चार फोटो, दो-चार सेल्फी  खरीदो भूगड़ा भी तो लगे जेब हल्की  ज्यों -ज्यों घूमे कैमरा  भीड़ संभाले अपना रोल दाल-बाटी, चूरमा हवा उचारे बोल। एस एम एस स्टेडियम  दमके ज्यों दुल्हन नूर मोबाइल की टॉर्च  "ओन"कर-कर के लगा भीड़ देख रही कोई हूर।।

मेरी मारवाड़ी

इस विडियो में दो बातें अद्भुत हैं  एक सत्यवीर सिंहजी की‌ पार्टी की तैयारी  और दूसरी मेरी मारवाड़ी जो सिर चढ़कर बोली‌ है।👏 Courtesy Er Mandip Link of celebration vedio os below  https://youtu.be/MBDWMenmSvA?si=sSfsgCRhl60JtIMlhttps://youtu.be/MBDWMenmSvA?si=sSfsgCRhl60JtIMl

A Memory

If you have anything to gift Return me those childhood days Spent with you in innocent age The rest of the world  Now I know in all the ways.  - An extract from my book Rainbow: Colors of Poetry

Rainbow:Colors of Poetry

से एप्पल,एप्पल ए  माने सेव आर से रेनबो,रेनबो माने इन्द्रधनुष प से पोथिया, ब से बुद्धराम Yes ,This is how this journey in July 1975 started when I went to my middle school at Nakarasar . I neither knew about "A" nor about "apple" . In those times English subject was used to join in course in 6th class . The book was called "Angrezi" ki kitab. I & my other classmates were around 11 to 14 years old when we entered in Six class and that was the age when no pity by a teacher was shown in  sparing us from "Budhram". Budhram was a typical Rohida lath for beating the boys who could not mug up the spellings of a particular unit given from Pthiya ( a pocket book )as homework . Our aim at that time was only save us from Budhram( cane). I remember the scenes even today of  my english teacher beating us in his white kurta- payajama  like goats( once my father came school and heard the sound of beating  from out  side the classroom & he came to door...

ठाटलिया रेंक पच्चीस

रेंक (Rank) मेरी किताब की आज हुई पच्चीस देख गुजार साहब की किताब के साथ, खुशी हुई इक्कीस

महात्मा ज्योतिबा फूले

मेरी चर्चित पुस्तक "ठाटलिया: कविताओं का पिटारा" के उद्धरण - जैसे अंधेरे में रहते  अनपढ़ के उद्गार  अक्षर के प्रकाश से  खोल देते नये द्वार। https://amzn.in/d/3YprPGi     ऐसे ही महिलाओं, शोषितों और दलितों के लिए अक्षर के प्रकाश से विकास के नये-नये द्वार खोलने वाले महात्मा ज्योतिबा फूले‌‌ को उनकी जयंती पर कोटि -कोटि नमन।

एक नई पहल

बहुत -बहुत बधाई बिमल ठाकुर और कनेक्टिंग लाईव को। यह एक बहुत ही शानदार पहल है। मेरी चर्चित पुस्तक "ठाटलिया" की कविता  "महिलाएं"  के उद्धरण  से इस पहल का स्वागत करना चाहूंगा :- बदला वक्त  बन रही सशक्त  बेड़ियां हैं मुक्त। स्वच्छ फिजाओं में  स्वेच्छा से हों फैसले तो दिशा‌ बदले।। जरूर दिशा बदलेगी और उस में आपका यह कदम सराहनीय है बिमल ठाकुर जिसकी बहुत -बहुत बधाई 💐💐 Link of the book is as under- https://amzn.in/d/7xry0Zt

भावों का मोल

A memory one year ago बड़ों की आशीष से कोई रहे ना अछूता भावों में जो रंग है  भावों से ही बरसता।। मेरी चर्चित पुस्तक "ठाटलिया: कविताओं का पिटारा" से उद्धृत . Amazon link of book is given below https://amzn.in/d/bIZCklS

तेरे सपनो सो नहीं पात

भेजने वाली शमा पाने वाला परवाना आज नींद नहीं आयेगी जागी आंखों सपने आना। परवाना गुलाब लाया शमा को अर्पण किया लौ कुछ ऐसे सजल हुई मानो ग़ज़ल ने दिल छुआ। अनजाना सा यह रिश्ता  फिर भी तू लगे फरिश्ता आकाश मार्ग से कभी तो आ महक जाये मेरा गुलिस्तां। फकत निर्मूल आशा से  कब तक देखूं तेरी बाट दिन कटे दुनिया की माया तेरे सपनों, मैं सो नहीं पात।।

छाणेड़ी

रात रोशन दीपक करते जिसमें खुशबू थी तिल तेल की चूल्हा जलता लकड़ी ,कंडे से जो सजते थे छाणेड़ी में चूल्हे बैठ चर्चा करते सब रिश्ते आनंदित होते सिर्फ चौपालों के मेले थे चौपड़ पासा, कुश्ती ,दड़ा और मल्ल युद्ध निराले थे कितना प्यारा, कितना न्यारा देहाती जीवन था हमारा । - मेरी चर्चित पुस्तक "ठाटलिया : कविताओं का पिटारा" से उद्धृत  For more joy of reading please read my book which is available on amazon.link of which is given below. This is an ebook to read downloading of kindle app from play store prior purchase is necessary. https://amzn.in/d/0S3ssiI

मनोज कुमार

यह कुछ ऐसा ही ‌है  जैसे पतझड़ में अनायास  पत्तों की बरसात  बरसात में भीगकर आती गर्माहट की बात।। - मेरी पुस्तक " ठाटलिया : कविताओं का पिटारा " से उद्धृत  ठीक उसी प्रकार मनोज कुमार का नाम  और भारत की तस्वीर साथ-साथ जुड़े रहेंगे।      विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🙏

ठाटलिया

https://amzn.in/d/5vXHqNQ This is my book. Available on Amazon. Please read & share your valuable reviews. This is nice book of poems of many genres in one cover 

Camera

Sometimes camera becomes Too small to catch up all. # Retirement function of Er SV Singh from the post of SE (T&C) Ratangarh on 31.03.2025.

कवि के‌ हाथ

फिलीस्तीनी और यूक्रेनी पिस रहे हैं युद्ध की चक्की रूसी और इजराइली भी होंगे दु:खी यह बात है पक्की मानवता को रख सर्वोपरि कूटनीति से बने कोई काम कूटनीति है समझ निराली यह नहीं है व्यवहार मवाली शान्ति में छिपी खुशहाली शान्ति है जीवन की लाली कविता में लिख भेजी है मैंने अपने मन की बात ज्यादा लिखी व्यथा कहलाए इतना ही कविता दिवस पर लिखना एक कवि के हाथ।।

हमारा टोटका

सुनीता विलियम्स और बुच मोर आज पहुंच गये अपनी ठौर देख नजारा चमत्कार सा आज नींद उड़ गई सबकी भौर ज्यों ही सुनीता नीचे आई शेयर मार्केट में भी जान आई हमारे अपने हैं टोटके अब होगी डूबत भरपाई।।

Holi Haikus

Roads appear lying coloured gardens And without any vehicle on them For today it Holi happens Some people are hidden in homes Scared of being painted  But painters may appear from within homes Cheeks are red & hairs dead On entering ones own street  Dogs bark and look afraid

बाहर आये दुविधा

श्याम वर्ण सांवरा गौर वर्ण राधा होली का त्योहार  हरे सबकी बाधा।। रंगों के बहाने सही  बाहर आये दुविधा  साखों पे आये हैं पल्लव देख खिल रही वसुधा। बड़ों की आशीष से  कोई रहे ना अछूता भावों में जो रंग है  भावों से ही बरसता । भावों का रंग जो छूटा दुबारा‌ नहीं चढ़ता भावों के बिना किसी  का कुनबा नहीं बढ़ता।। हैप्पी होली।।

खोफ इतना भी ना हो

खोफ इतना भी ना हो सच्चाई ना कह सकें। जंगल में भी भागने का मौका मिलता है इन्सानों की बंदिशें कितनी तंग हैं साथ रहते- रहते भी लोग असंग हैं। अब यह व्यापार हो गया है मैं बोलूं , वही तू बोले तेरे पीछे नहीं तो पड़े मेरे मलंग हैं। खाने की बात पर मच रहा हुड़दंग है कोशिश नहीं कर सकते जानने की खुद हुड़दंगी कितने बदरंग हैं। लिखने वाले भी अब तो बच रहे सीधी सपाट से शायद वो भी कहीं ना कहीं पंचरंग हैं। किताबें भी अब हैं फैंसी किंडल पर पढ़ें तो ज्ञानी हैं नहीं तो तुझमें कहां उमंग है। पहनावा बदनाम हो गया जैसे त्यौहार होली, लार खुद के टपके बदनाम हो रही भंग‌ है। रिश्तों की क्या बात करें साथ बैठना छुटा, मोबाइल का है संग देखते ही देखते रिश्तों को लगी जंग‌ है। टिटनेस इसका फैलेगा जिसका नहीं इंजेक्शन बातों में अब नहीं लगता किसी का मन इसीलिए मिडिया ने घड़ा शब्द कंजेशन है। खोफ इतना भी ना हो सच्चाई ना कह सकें सोचना तो पड़ता है ताकि दुविधा में भी जी सकें।।

महिला दिवस

कवि का भाव सौंदर्य की मिसाल  करूणामय। ममत्व मूर्त  संघर्ष की सूरत सुलहमय। मिले तो धीर बिगड़े शमशीर तेज तासीर। घर की धूरी  हर जगह पूरी रखे सबूरी।  झुके यम भी  जब बने सावित्री निभाये मैत्री। बाहर जीत अपनों से हारती नारी भारती। बदला वक्त  बन रही सशक्त  बेड़ी हैं मुक्त। स्वच्छ फिजा में  स्वेच्छा से हों फैसले  दिशा बदले। # अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 

दाल-बाटी चूरमा

भानीपुरा में खाता था जिनके हाथ की बनी दाल-बाटी चूरमा लगता था जी रहा हूं जयपुर में कल मिले जब जयपुर में लगा चमक है गुलाबी शहर की फिजाओं में दाल-बाटी चूरमा तो छूट गया गांवों में।।

कवि का कारवां

यह कुछ ऐसा ही ‌है  जैसे घी तोलते  घी पी लेते हैं हाथ साथ रहते - रहते बन जाती है बात।  जैसे पतझड़ में अनयास  पतों की बरसात बरसात में भीगकर आती गर्माहट की बात।  जैसे अंधेरे में रहते अनपढ़ के उद्गार अक्षर के प्रकाश से  खोल देते नये द्वार।। हां यह कुछ ऐसा ही ‌है  जैसे पढ़ते - पढ़ते कोई किताब याद आती लेखक की बात बात से ही निकलती बात पूछ बैठते खुद से ही औकात।  यह कुछ ऐसा ही ‌है  जब पढ़ते हैं हम कोई तहरीर  खुद को भी देखते हैं उस जहां  करने लगते हैं खुद से बातें  शायद यही है कवि का कारवां।।

Actions

Our action is reciprocated By an nonspeaking child By a book we read By a stone we worship By everything of this world Be true to our actions  

जो कोशिश करता मंजिल पाता

KBC के श्रोताओं में से जिसे नाम से जानते बासठ प्रतिशत  मेरा फोटो उसके साथ वाह! कितनी गजब है बात। चोबीस में थोड़ी हुई मुलाकात  पच्चीस के शुरू में छा गया तात कुछ लोग रूपये की करते बात असली सोना तो है औकात। सदा सरल और सादगी को हमेशा रखता अपने साथ ब्यूरोक्रेसी से ज्यादा गणित पर आज भी आजमाता हाथ। शेर-ओ-शायरी और गजल टूट पड़े जो मिले पजल(Puzzle) रहता मिलकर सबके साथ  नखरे वालों से तंग है हाथ।।

कमसिन

यह तेरा दिल,यह मेरा दिल यह दिल बहुत हसीन है उम्र के तराजू मत तोलना प्यार हमेशा कमसिन है।

हाइकु रिटायर्ड के लिए

हे स्वर्ण केशी लम्बे सफ़र पर शुरू है पेशी।  भजले राम सरकारी दफ्तर से  निपटा काम।  सेवा पेंशन सम्मान से मिलता अच्छा राशन।  आये धुंधल  उससे पहले ही  देख काबिल।  जीवन तेरा जो औरों ने सराहा घर में हारा।

एक परी आए

रात में श्वेत सुंदर एक परी आए मुझको आकाश की सैर कराए। चांद तारों को छूकर बताए कहानी इनकी मुझको बताए। मनुज का अगला घर दिखाए खाने-पीने का सामान बताए। फुर्सत के पलों के श्रृंगार दिखाए इन पलों का हिसाब ना लगाए। गाना गाकर वापस छोड़ कर जाए फूलों सा मेरा मन महकाए काश!काश! यह जल्द हो जाए।।

Retirement Diary

First view from my room balcony on First floor of my house. A mixture of Enjoying & Missing  मैं बाद में घर पहुंचा पहले घर पहुंचा मेरा  पेंशन पेमेंट आदेश  देखकर‌ दिल खुश हुआ दिल ने दी आशिष। ब्रेकर लगाने की तरह RVPN तेरी तत्पर सेवा धूप, छांव , बरसात की ड्यूटी का यों मिला है मेवा। घर मेरा लगता है  जैसे बगीचे में है बसा ब्रेकर लगने की तोप सलामी  और ट्रांसफॉर्मर के हमिंग को मन आज बहुत तरसा।।      🙏🙏🙏🙏

सुबह भ्रमण

फरवरी आ गई है और अब सुबह का टहलने जाना आसान बनने लगा है। हालासर नियुक्ति के दिनों में बुकलसर रोड पर घूमने जाना अपने आप में एक औषधि थी क्योंकि इन दिनों खेतों में सड़क के दोनों ओर  सरसों के पीले फूल और उन पर गुनगुनाते भौंरे और सिंचाई के फव्वारों की रिमझिम किसी थेरेपी जैसा ऊर्जावान बना देता था  और यह हर रोज होता था। उस सड़क पर भेड़ों के ऐवड़ में गधे पर लदी पानी की छागल(लोटड़ी), प्राकृतिक खाद से भरी बैलगाड़ी और ऊंट गाड़ी  और ट्रैक्टर पर जोर से बजते तेजाजी के गीत अपने आप ही भ्रमण की लय और गति को बढा देते थे। हिरणों के झुंड का सरपट दौड़ लगाते हुए सड़क पार करना स्वत: ही जोगिंग के लिए प्रेरित करता था, तात्पर्य यह है कि प्रकृति स्वयं प्रेरणा थी। श्रवण हुड्डा जी अक्सर ही खींचकर अपने खेत की मेड़ पर ले‌ जाकर खेत की फसल को दिखाते थे ।वापस आकर एक गिलास असली गुनगुने दूध का सेवन इस भ्रमण को पूरा करता था। प्रकृति की देन मनुष्य को प्रकृति ही पुष्ट करती है। प्रकृति सूर्योदय से पहले जाग जाती है और प्रकृति के समीप रहने वाले को यह अवसर स्वाभाविक ही मिलता है । शहरों में जहां भी पेड़ पौधे हैं ...

सच्चे प्यार सवेरा

हीरा‌ सा दिल देखकर निकले इश्क मेरा उम्र ढलती शाम है  सच्चे प्यार सवेरा।।

एक अपोस्ट्रोफी

मैंने चूम ली वह तस्वीर जो थी कप एक कॉफी  मुझे ' चुम्बन दिवस ' पर  वह तस्वीर लगी एक ट्रॉफी सामने वह नहीं ना कभी होगी  नज़रों में बसी उसकी तस्वीर  मेरे वाक्यों को बना रही उसका जैसे बना लेती है एक 'अपोस्ट्रोफी'।

' हग डे '

मधुमास की हरियाली  और फूलों की महक मुझको भूली है वह याद कर रहा नाहक। अपना‌-अपना‌ नसीब किसी को मिले दर्द ओ बेदर्दी के सबब और किसी को 'हग'। भावनाओं को उजागर करना देख मकाम तीर निशाने ना लगे  तो बड़े बुरे हैं अंज़ाम।।

भौंरा

आंखों ने जब दावत दी  होठों से दिल जा टकराया लाली गालों की फूलों सी महक-ए- बदन ने भौंरा बनाया।।

On sixtieth Birthday DTD. 18.01.2025

Today on completion of six decades of my life many relatives & friends have wished me. I am grateful to all of them and thank them all. Today I legally got the status of senior citizen.Looking back it comes in mind a long journey of life  across desert, rivers, mountains & sky. It gives me pleasure when on  a single thought thousands of people of different qualities and walks come into  my mind thereby giving me the feeling of an encyclopedia of many experiences.   Though in long journey of life I also came across many files corrupted with viruses. Now the challenge is to save my life's software from  harmful files and manage smooth running of my hardware. Still I am feeling as a student of Room No. 359 of Dronacharya Bhawan.🙏

अध्यात्म और व्यवसाय

अध्यात्म को दिल में रख कर व्यवसाय को बनाये श्रेयकर ऐसा कुछ सूत्र चाहिए तो मिलो   दिनेश से बाहें फैलाकर ।।     ‌     महाकुंभ का समय है और चारों ओर वातावरण अध्यात्ममय  है। कहीं IIT बाबा अभयसिंह के चर्चे तो कहीं अघोरी चंचल नाथ के। दोनों ही हरियाणा से  ताल्लुक रखते हैं ,इसलिए मेरी दिलचस्पी उधर ज्यादा हुई। इस बार तो यूं लगता है हरियाणा खेलों के बाद कुंभ में भी सब पर भारी पड़ रहा है। खैर  आज इसी विषय पर विचार आया। क्यों ना ऐसे व्यक्तित्व का शुक्रिया अदा किया जाए ,जिससे जीवन में कुछ सुकून, कुछ सुधार करने को मिला और जो  अध्यात्म और व्यवसाय में सामंजस्य की मिसाल है। ऐसा व्यक्तित्व है श्री दिनेश शर्मा इंजीनियर सुपरवाइजर का। जिसके साथ मुझे लगभग 4 साल कार्य करने का सौभाग्य मिला। वह  सरलता, अध्यात्म और त्याग की प्रतिमूर्ति  है ।वायरिंग, ब्रेकर , आइसोलेटर , सीटी , डीसी  सिस्टम रिपेयरिंग और इलेक्ट्रॉनिक आइटम बनाने में उसे महारत हासिल है। काम के प्रति जिम्मेदारी, समय की पाबंदी उसके नैसर्गिक गुण हैं।वह राधास्वामी...

RSEB और कष्ट अभियंता

कुछ लोग कड़वी यादें देकर सीखा जाते हैं तो कुछ मीठास के साथ सीखा जाते हैं। चूंकि मानव स्वभाव मीठास को लालायित रहता है। इसलिए हमें वही बातें याद‌ रहती हैं जो हमें किसी ने प्रेम से सीखायी होती हैं।       लूणकरणसर के बाबूलालजी नौलखा ऐसे ही व्यक्ति हैं जिनसे मैंने विभागों में ठेकेदारों की भूमिका की ए, बी, सी, डी सीखी थी। वह बात, काम और वक्त के पक्के थे। आने वाले और जाने वाले हर आदमी का एक समान आदर करना उनके व्यवहार में शामिल था। N.H.15 पर उनकी दुकान पर हर आदमी को विश्राम मिलता था और सामान आदि रखने की व्यवस्था मौजूद थी। शीतल जल पिलाकर 100 ग्राम गर्म पकोड़े और चाय हर कैडर के लिए उपलब्ध रहती थी। शाम को घंटों कार्य की चर्चा और दिन भर की कोई कठिनाई हो तो उसका समाधान यथा संभव निकाल लिया जाता था। शहरी और देहात दोनों क्षेत्रों की उनके पास कुंडली थी। हर एस्टीमेट के फोर्मेट भी मिल जाते थे। उन दिनों एक फोर्मेट के नीचे तीन कार्बन लगाकर एस्टीमेट बनाने पड़ते थे और गांवों में रुककर एस्टीमेट लाने, लाईन फाल्ट निकालने पड़ते थे इसलिए कनिष्ठ अभियंता को उन्होंने कष्ट अभियंता नाम दे रखा था😀। ...