कुछ लोग कड़वी यादें देकर सीखा जाते हैं तो कुछ मीठास के साथ सीखा जाते हैं। चूंकि मानव स्वभाव मीठास को लालायित रहता है। इसलिए हमें वही बातें याद रहती हैं जो हमें किसी ने प्रेम से सीखायी होती हैं।
लूणकरणसर के बाबूलालजी नौलखा ऐसे ही व्यक्ति हैं जिनसे मैंने विभागों में ठेकेदारों की भूमिका की ए, बी, सी, डी सीखी थी। वह बात, काम और वक्त के पक्के थे। आने वाले और जाने वाले हर आदमी का एक समान आदर करना उनके व्यवहार में शामिल था। N.H.15 पर उनकी दुकान पर हर आदमी को विश्राम मिलता था और सामान आदि रखने की व्यवस्था मौजूद थी। शीतल जल पिलाकर 100 ग्राम गर्म पकोड़े और चाय हर कैडर के लिए उपलब्ध रहती थी। शाम को घंटों कार्य की चर्चा और दिन भर की कोई कठिनाई हो तो उसका समाधान यथा संभव निकाल लिया जाता था। शहरी और देहात दोनों क्षेत्रों की उनके पास कुंडली थी। हर एस्टीमेट के फोर्मेट भी मिल जाते थे। उन दिनों एक फोर्मेट के नीचे तीन कार्बन लगाकर एस्टीमेट बनाने पड़ते थे और गांवों में रुककर एस्टीमेट लाने, लाईन फाल्ट निकालने पड़ते थे इसलिए कनिष्ठ अभियंता को उन्होंने कष्ट अभियंता नाम दे रखा था😀।
Comments
Post a Comment