दीर्घ वृत्ताकार तेरा मुखड़ा
जिस पर सूर्य जैसी बिंदी
आंखें मय के प्याले जैसी
उड़ा दे सबकी निंदी
झूमर तेरे शंकवाकार
जो कर दें दिल बेकरार
गर्दन तेरी सुराही दार
जिसमें मैचिंग वाली माला
साड़ी पहने लाल पर
दुर्गा लगती है ये बाला
होंठ तेरे पंखुड़ी जैसे
नाक है सुआदार
चूड़ियों से भरे हाथ तेरे
बिखेरे इंद्रधनुषी रंग
घुंघराले बाल तेरे
अद्भुत लहराने का ढंग
चश्मे में से जब तू देखें
चेहरा लगे ईमानदार
पूजा वाली थाली संग
लगती नारी हिंदुस्तानी
जिधर से भी तू गुजरे
उधर मौसम हो जाए तूफानी
देख तुझको जी ललचाये
जैसे तू हो रसगुल्ला शानदार
इतना सब सोच समझ कर
लिखने का चल दिया अपना दांव
मैं दूर देश का सीधा साधा
बड़ा दूर ही मेरा गांव
गलती हो तो माफ करना
यही जहन मे आया सरकार।
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