प्रिय यह मास्क खोल न देना
हाथ सैनिटाइज करना भी भूल न जाना
कोरोना से लड़ने का यह चक्र सुदर्शन
फूलों से भी प्यारा है इसका दर्शन
इसकी चौकस सुरक्षा में
कोई निज लापरवाही बरत न लेना
प्रिय यह मास्क खोल न देना
हाथ सैनिटाइज करना भी भूल न जाना
मास्क की गांठों को व्यवस्थित करना सरल है
पर एंटीबॉडी प्राप्त करना बड़ा कठिन है
बीच भीड़ में कहीं जाकर
लापरवाही से इसे हटा न देना
प्रिय यह मास्क खोल न देना
हाथ सैनिटाइज करना भी भूल न जाना
मिल सकते हैं चेहरे अनेक
कुछ चिकने, कुछ काफी नेक
कुछ खांसेंगे, कुछ देंगे छींक
नए-नए दृश्य पाकर भी
वीर तू मास्क को भूल न जाना
प्रिय यह मास्क खोल न देना
हाथ सैनिटाइज करना भी भूल न जाना
अगस्त 84 एडमिशन ,रैगिंग हुई भरपूर, अभिमन्यु भवन तीर्थ था ,आस्था थी भरपूर। खिचाई तो बहाना था ,नई दोस्ती का तराना था, कुछ पहेलियों के बाद ,खोका एक ठिकाना था । भट्टू ,रंगा ,पिंटू ,निझावन ,मलिक ,राठी , सांगवान और शौकीन इतने रोज पके थे, रॉकी ,छिकारा ,राठी ,लूम्बा भी अक्सर मौजूद होतेथे । मेस में जिस दिन फ्रूट क्रीम होती थी, उस दिन हमें इनविटेशन पक्की थी। वह डोंगा भर - भर फ्रूट क्रीम मंगवाना, फिर ठूंस ठूंस के खिलाना बहुत कुछ अनजाना था, अब लगता है वह हकीकत थी या कोई फसाना था ।। उधर होस्टल 4 के वीरेश भावरा, मिश्रा, आनंद मोहन सरीखे दोस्त भी बहुमूल्य थे , इनकी राय हमारे लिए डूंगर से ऊंचे अजूबे थे। दो-तीन महीने बाद हमने अपना होश संभाला, महेश ,प्रदीप ,विनोद और कानोडिया का संग पाला । फर्स्ट सेमेस्टर में स्मिथी शॉप मे डिटेंशन आला ।। हमें वो दिन याद हैं जब नाहल, नवनीत,विशु शॉप वालों से ही जॉब करवाने मे माहिर थे , तभी से हमें लगा ये दोस्ती के बहुत काबिल थे । थर्ड सेम में आकाश दीवान की ड्राइंग खूब भायी थी, इसीलिए ला ला कर के खूब टोपो पायी थी। परीक्षा की बारी आई तो
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