श्यामला देवी के नाम से
वायस-रीगल -लौज के वैभव से
पर्वत चोटियों की चिकनी ढलान से
स्कीयरों के उत्साह से
जो आमंत्रित करता है उल्लास से
उस शहर से हमारी शान है।
जाखू मंदिर के इतिहास से
ब्रिटिश- गोरखाओं के संग्राम से
जो भरा है अद्भुत अतीत गाथाओं से
जो निहारता है ढाई हजार मीटर की हिमशिखा से
उस शहर से हमारी शान है।।
जो जुड़ा है मीटर गेज से
वह लाइन करती अठखेलियां सुरंगों से
जो अछूता है वैश्वीकरण और वाणिज्यकरण से
जिसमें आकर्षण बरकरार है पुरानी दुनिया का
उसी शहर से हमारी शान है।
जहां की हिमाचली टोपी पहचान है
खच्चर यात्रा जहां मशहूर है
लोगों के चेहरे जहां गुलाबी हैं
व्यवहार में सरलता और निश्छलता है
निराश्रित को आश्रय देना जिस की शान है
हिम के फाहे जिसे सजाते हैं
इस शहर को स्वच्छ, स्वस्थ, शिक्षित बनाना हमारा काम है
क्योंकि इस शहर से हमारी शान है।।
अगस्त 84 एडमिशन ,रैगिंग हुई भरपूर, अभिमन्यु भवन तीर्थ था ,आस्था थी भरपूर। खिचाई तो बहाना था ,नई दोस्ती का तराना था, कुछ पहेलियों के बाद ,खोका एक ठिकाना था । भट्टू ,रंगा ,पिंटू ,निझावन ,मलिक ,राठी , सांगवान और शौकीन इतने रोज पके थे, रॉकी ,छिकारा ,राठी ,लूम्बा भी अक्सर मौजूद होतेथे । मेस में जिस दिन फ्रूट क्रीम होती थी, उस दिन हमें इनविटेशन पक्की थी। वह डोंगा भर - भर फ्रूट क्रीम मंगवाना, फिर ठूंस ठूंस के खिलाना बहुत कुछ अनजाना था, अब लगता है वह हकीकत थी या कोई फसाना था ।। उधर होस्टल 4 के वीरेश भावरा, मिश्रा, आनंद मोहन सरीखे दोस्त भी बहुमूल्य थे , इनकी राय हमारे लिए डूंगर से ऊंचे अजूबे थे। दो-तीन महीने बाद हमने अपना होश संभाला, महेश ,प्रदीप ,विनोद और कानोडिया का संग पाला । फर्स्ट सेमेस्टर में स्मिथी शॉप मे डिटेंशन आला ।। हमें वो दिन याद हैं जब नाहल, नवनीत,विशु शॉप वालों से ही जॉब करवाने मे माहिर थे , तभी से हमें लगा ये दोस्ती के बहुत काबिल थे । थर्ड सेम में आकाश दीवान की ड्राइंग खूब भायी थी, इसीलिए ला ला कर के खूब टोपो पायी थी। परीक्षा की बारी आई तो
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