रेगिस्तान की पावन धरा पर चुनावी रेलमपेल,
कोई दिखावे झूठे सपने ,कोई बोले राफेल।
मीडिया भी उधर चले, जिधर दिखे तेल,
जनता भी खूब समझे यह मदारी का खेल।
रेगिस्तान की पावन धरा पर चुनावी रेलमपेल।।
बड़ा मुद्दा है बेरोजगारी,
उस पर महंगाई और सुरक्षा,
इनका पूरा होना है बड़ी परीक्षा।
मुद्दों से भागने का ढूंढा एक सलीका,
घसीटो गांधी -नेहरू को यह है आसान तरीका।
सत्ता के दावेदारों समझो जनता है बेहाल,
ऐसे बोल- बोल के सता पाओगे तो ना होगे निहाल।
अभी भी वक्त है कर लो मुद्दों से मेल,
रेगिस्तान की पावन धरा पर चुनावी रेलमपेल।।
व्यक्तिगत आक्षेपों से जनता आई आजीज,
लोकतंत्र में हर मुद्दे पर चर्चा हो सटीक।
असहिष्णुता को मिले ना कोई भाव,
चारों तरफ हो बस सद्भाव का चाव।
जनता तरक्की करे तुम्हें मिले सम्मान,
वरना सबका अब हो जायेगा अवसान।
मिलेगा कुछ नहीं बस,
पांच साल बाद फिर वही चुनावी रेलमपेल।।
अगस्त 84 एडमिशन ,रैगिंग हुई भरपूर, अभिमन्यु भवन तीर्थ था ,आस्था थी भरपूर। खिचाई तो बहाना था ,नई दोस्ती का तराना था, कुछ पहेलियों के बाद ,खोका एक ठिकाना था । भट्टू ,रंगा ,पिंटू ,निझावन ,मलिक ,राठी , सांगवान और शौकीन इतने रोज पके थे, रॉकी ,छिकारा ,राठी ,लूम्बा भी अक्सर मौजूद होतेथे । मेस में जिस दिन फ्रूट क्रीम होती थी, उस दिन हमें इनविटेशन पक्की थी। वह डोंगा भर - भर फ्रूट क्रीम मंगवाना, फिर ठूंस ठूंस के खिलाना बहुत कुछ अनजाना था, अब लगता है वह हकीकत थी या कोई फसाना था ।। उधर होस्टल 4 के वीरेश भावरा, मिश्रा, आनंद मोहन सरीखे दोस्त भी बहुमूल्य थे , इनकी राय हमारे लिए डूंगर से ऊंचे अजूबे थे। दो-तीन महीने बाद हमने अपना होश संभाला, महेश ,प्रदीप ,विनोद और कानोडिया का संग पाला । फर्स्ट सेमेस्टर में स्मिथी शॉप मे डिटेंशन आला ।। हमें वो दिन याद हैं जब नाहल, नवनीत,विशु शॉप वालों से ही जॉब करवाने मे माहिर थे , तभी से हमें लगा ये दोस्ती के बहुत काबिल थे । थर्ड सेम में आकाश दीवान की ड्राइंग खूब भायी थी, इसीलिए ला ला कर के खूब टोपो पायी थी। परीक्षा की बारी आई तो
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