कितना प्यारा, कितना न्यारा
देहाती जीवन हमारा था।
शीतल जल था घड़े वाला
दूध पीते थे कढावणी का
रोटी सिकती चूल्हे पर
रखी जाती थी ठाटलिए में
सुखाई जाती थी छींके में
खाई जाती थी चाव से
दही प्याज के साथ से
तब दमकते चेहरे थे
ना कोई गम के घेरे थे
ऐसा जीवन निराला था
कितना प्यारा, कितना न्यारा
देहाती जीवन हमारा था।
रात रोशन दीपक करते
जिसमें खुशबू थी तिल तेल की
चूल्हा जलता लकड़ी ,छाणो से
जो सजते थे छाणेड़ी में
चूल्हे बैठ चर्चा करते
सब रिश्ते आनंदित होते
क्रोध से अनभिज्ञ थे
सिर्फ चौपालों के मेले थे
चौपड़ पासा, कुश्ती ,दड़ा
और माल्ला खेल निराला था
कितना प्यारा, कितना न्यारा
देहाती जीवन हमारा था।
खीर खाकर जुकाम उतारते
पाव घी खिचड़ी में खाते
पीपल छाल फोड़ों पर लगाते
नीम पानी से जख्म धोते
तब बहुत जल्द स्वस्थ होते
ऊंटों पर बारात जाती
तब चर्चा देर तक होती
बुजुर्ग तब माला जपते
हंसते-हंसते देह छोड़ते
यह करिश्मा अब जब देखा
तब जीवन सार समझ में आया
ऐसा जीवन निराला था
कितना प्यारा ,कितना न्यारा
देहाती जीवन हमारा था।
अगस्त 84 एडमिशन ,रैगिंग हुई भरपूर, अभिमन्यु भवन तीर्थ था ,आस्था थी भरपूर। खिचाई तो बहाना था ,नई दोस्ती का तराना था, कुछ पहेलियों के बाद ,खोका एक ठिकाना था । भट्टू ,रंगा ,पिंटू ,निझावन ,मलिक ,राठी , सांगवान और शौकीन इतने रोज पके थे, रॉकी ,छिकारा ,राठी ,लूम्बा भी अक्सर मौजूद होतेथे । मेस में जिस दिन फ्रूट क्रीम होती थी, उस दिन हमें इनविटेशन पक्की थी। वह डोंगा भर - भर फ्रूट क्रीम मंगवाना, फिर ठूंस ठूंस के खिलाना बहुत कुछ अनजाना था, अब लगता है वह हकीकत थी या कोई फसाना था ।। उधर होस्टल 4 के वीरेश भावरा, मिश्रा, आनंद मोहन सरीखे दोस्त भी बहुमूल्य थे , इनकी राय हमारे लिए डूंगर से ऊंचे अजूबे थे। दो-तीन महीने बाद हमने अपना होश संभाला, महेश ,प्रदीप ,विनोद और कानोडिया का संग पाला । फर्स्ट सेमेस्टर में स्मिथी शॉप मे डिटेंशन आला ।। हमें वो दिन याद हैं जब नाहल, नवनीत,विशु शॉप वालों से ही जॉब करवाने मे माहिर थे , तभी से हमें लगा ये दोस्ती के बहुत काबिल थे । थर्ड सेम में आकाश दीवान की ड्राइंग खूब भायी थी, इसीलिए ला ला कर के खूब टोपो पायी थी। परीक्षा की बारी आई तो
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