यूपी का था बड़ा समूह ,
जिसमें संजीव चहेता था।
मितभाषी और शालीनता
वाला उसका चरित्र था।
5 साल के साथ में,
शायद बातें कम ही हुई।
पिछले नवंबर यूं लगा,
जैसे अभी साथ थे।
उच्चाहार बायलर ब्लास्ट ने,
उसके हौसले से रूबरू कराया।
खुद की परवाह नहीं करके,
दूसरों के बारे में पूछते पाया।
बिजली ही पहचान थी,
बिजली के लिए जंग लड़ा।
ऐसे ' रेक रत्न ' के बिना,
बैच ८४ सुना पड़ा।
बिजली वाला होने से,
बिजली की नब्ज जानू।
जीरो टोलरेंस सेफ्टी मे,
यही मैं वचन पालूं।
फिर कोई बिजली रत्न,
यूं ना कभी करे गमन।
शायद यही सच्ची श्रद्धांजलि,
उस बिजलीरत्न को रास आए।
साथी बिजली कार्मिकों
और मित्रों का हौसला बढ़ाए।
मोहन आरजे
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