मौन है मानव
मन में खौफ लिए
अजीब सा
मानव के अस्तित्व को
घोर खतरा बनकर
कोरोना लील रहा
अजगर सा
गलियां लगती हैं जैसे
कोई तंत्र हो अय्यारी का
जिस पर पहरा हो
आदमखोर सियार का
खामोशियां तप रही है बनकर
बुखार सा
गायब है बसंत की तरुणाई
ना त्योहार ना कोई ब्याह-सगाई
रंग बिरंगी बसंत की छटा भी
लगती है एक बेगानी शादी में अब्दुल्लाह
दीवाना सा
घरों में कैद ये बच्चे
सिर्फ खेल रहे ताश और कंचे
कब खुलेगा इनका स्कूल
रंग बिरंगी मछलियों का
तालाब सा
अगस्त 84 एडमिशन ,रैगिंग हुई भरपूर, अभिमन्यु भवन तीर्थ था ,आस्था थी भरपूर। खिचाई तो बहाना था ,नई दोस्ती का तराना था, कुछ पहेलियों के बाद ,खोका एक ठिकाना था । भट्टू ,रंगा ,पिंटू ,निझावन ,मलिक ,राठी , सांगवान और शौकीन इतने रोज पके थे, रॉकी ,छिकारा ,राठी ,लूम्बा भी अक्सर मौजूद होतेथे । मेस में जिस दिन फ्रूट क्रीम होती थी, उस दिन हमें इनविटेशन पक्की थी। वह डोंगा भर - भर फ्रूट क्रीम मंगवाना, फिर ठूंस ठूंस के खिलाना बहुत कुछ अनजाना था, अब लगता है वह हकीकत थी या कोई फसाना था ।। उधर होस्टल 4 के वीरेश भावरा, मिश्रा, आनंद मोहन सरीखे दोस्त भी बहुमूल्य थे , इनकी राय हमारे लिए डूंगर से ऊंचे अजूबे थे। दो-तीन महीने बाद हमने अपना होश संभाला, महेश ,प्रदीप ,विनोद और कानोडिया का संग पाला । फर्स्ट सेमेस्टर में स्मिथी शॉप मे डिटेंशन आला ।। हमें वो दिन याद हैं जब नाहल, नवनीत,विशु शॉप वालों से ही जॉब करवाने मे माहिर थे , तभी से हमें लगा ये दोस्ती के बहुत काबिल थे । थर्ड सेम में आकाश दीवान की ड्राइंग खूब भायी थी, इसीलिए ला ला कर के खूब टोपो पायी थी। परीक्षा की बारी आई तो
Very live description of present scenario.
ReplyDeleteThank you unknown for reading and dropping up a comment.
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