चलो थोड़ा अतीत में झांक लेते हैं
क्वार्टर अगस्त 18 से नवंबर 17 की
थोड़ी थाह लेते हैं
दिल बागी का शेर सिरमोर
एक बार फिर पढ़ लेते हैं
"मोहब्बत की अजीब बेबसी देखी
उसने तस्वीर तो जलाई मगर राख नहीं फेंकी"
रुखसत हुए ग्रुप से आलोक, खरीट और
भंडारी को इस शेर से साध लेते हैं
भुवनेश की भेजी कविता
"मिलते जुलते रहा करो"
से भी कोई उपाय खोज लेते हैं
विशू की भेजी रागिनी
"बता मेरे यार सुदामा रे
भाई घणे दिना में आया"
से दोस्ती की सीख लेते हैं
चलो थोड़ा अतीत में झांक लेते हैं।
राकेश अगी का शेयर(share)
"लखनवी कैसे बनता है"
आज भी मेरे पेट में उतरा पड़ा है
टुंडे के कबाब की दावतें देता है
पूर्णिमांत और अमानता कैलेंडर का
भुवनेश व जगोटा का मंथन
उनके अद्भुत पठन-पाठन
का भान कराता है
सुयोग सेठ का वीडियो क्लिप
"राज पलकां में बंद कर राखूं ली"
ग्रुप की जवानी की कहानी कहता है
पर अभी तो बात अधूरी है
अभी तो साध अपूरी है
30 नवंबर की दूरी है
तब नया सुरूर होगा
हवा से चिराग रोशन होंगे
ऐसा अपना मिलन होगा
फिलहाल चलो थोड़ा अतीत में झांक लेते है
Excellent....👌👌👍
ReplyDeleteThank you unknown for reading and putting up your lovely comment.
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