आ मेरे धोरे गर्मी में
खाटा- राबड़ी खूब पिलाऊं
गहरी नींद का आनंद कराऊं
लंच में हरी सांगरी का साग
फिर फोगला का रायता खिलाऊं
बाजरा का रोट चखाऊं
सांय मोठ बाजरा खीच खिलाऊं।
आ मेरे धोरे बरसात में
भूरी-भूरी रेत में चित्र बनवाऊं
सोंधी मिट्टी की खुशबू दिलाऊं
गुड़वानी का चूरमा खिलाऊं
कैर-सांगरी और फोफलिया
साग का अद्भुत जायका दिलाऊं
हल में जुते ऊंट दिखाऊं।
आ मेरे धोरे शिशिर में
काकड़,बेर,मतीरे का कातिसरा कराऊं
बाजरे के सीटे(बाली) चबवाऊं।
आ मेरे ध़ोरे सर्दी में
भैंस दूध का दही खिलाऊं
काचर, फली की सब्जी खिलाऊं
दाल बाटी चूरमा को भोग लगवाऊं
त्योहार- मेलों की सैर कराऊं
विवाहों के रिवाज दिखाऊं
घूमर डांस में ठुमके लगवाऊं।
आ मेरे धोरे बसंत में
होली के बहाने मद में झूमाऊं
गणगौर मेले की सैर कराऊं
खीर -ढोकला खूब खिलाऊं
कृष्ण मृग अभयारण्य दिखाऊं।
अगस्त 84 एडमिशन ,रैगिंग हुई भरपूर, अभिमन्यु भवन तीर्थ था ,आस्था थी भरपूर। खिचाई तो बहाना था ,नई दोस्ती का तराना था, कुछ पहेलियों के बाद ,खोका एक ठिकाना था । भट्टू ,रंगा ,पिंटू ,निझावन ,मलिक ,राठी , सांगवान और शौकीन इतने रोज पके थे, रॉकी ,छिकारा ,राठी ,लूम्बा भी अक्सर मौजूद होतेथे । मेस में जिस दिन फ्रूट क्रीम होती थी, उस दिन हमें इनविटेशन पक्की थी। वह डोंगा भर - भर फ्रूट क्रीम मंगवाना, फिर ठूंस ठूंस के खिलाना बहुत कुछ अनजाना था, अब लगता है वह हकीकत थी या कोई फसाना था ।। उधर होस्टल 4 के वीरेश भावरा, मिश्रा, आनंद मोहन सरीखे दोस्त भी बहुमूल्य थे , इनकी राय हमारे लिए डूंगर से ऊंचे अजूबे थे। दो-तीन महीने बाद हमने अपना होश संभाला, महेश ,प्रदीप ,विनोद और कानोडिया का संग पाला । फर्स्ट सेमेस्टर में स्मिथी शॉप मे डिटेंशन आला ।। हमें वो दिन याद हैं जब नाहल, नवनीत,विशु शॉप वालों से ही जॉब करवाने मे माहिर थे , तभी से हमें लगा ये दोस्ती के बहुत काबिल थे । थर्ड सेम में आकाश दीवान की ड्राइंग खूब भायी थी, इसीलिए ला ला कर के खूब टोपो पायी थी। परीक्षा की बारी आई तो
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