पतझड़ में फूल खिलते नहीं
प्रौढ़ावस्था में दिल दोबारा मिलते नहीं।
ना सपनों का अंबार होता है
ना जवानी का ताव होता है
बस बुझी - बुझी आंखें होती हैं
लरजते होंठ
और आने वाली कमजोरी का भान होता है
ऐसे में कोई कैसे साथ हो सकता है
यह तो कुछ यूं ही हालात बयां करते - करते
दिल ख्वाबों का बगीचा देखता है
पर सच यही है पतझड़ में फूल खिलते नहीं
प्रौढ़ावस्था में दिल दोबारा मिलते नहीं।
जुड़ाव का समय गुजर चुका है
अब तो दांत,बाल,नाखून झड़ रहे हैं
ना चाहते हुए भी कुछ आदतें बिगड़ रही हैं
शरीर रूपी भूमि में रसायन भरने की तैयारी है
ऐसे में कहां अकार्बनिक खेती की बारी है
दोस्त भी अब बाग नहीं सैर की बात करते हैं
ऐसे में कौन फूलों वाली पास आती है
सच यही है पतझड़ में फूल खिलते नहीं
प्रौढ़ावस्था में दिल दोबारा मिलते नहीं।
बस इल्तजा इतनी है सैर में
मिल जाए कोई अमृता
तो हो जाए दो - चार कविता
और सफर बन जाए आसान
अंतर्मन में मचे ना घमासान
बनाऊं चाय उसके लिए
रोटी का कहां है अब गुमान
इस रोजी-रोटी के खेल में
कभी - कभी ख्वाब हो जाते हैं जवां
पर सच यही है पतझड़ में फूल खिलते नहीं
प्रौढ़ावस्था में दिल दोबारा मिलते नहीं।
अगस्त 84 एडमिशन ,रैगिंग हुई भरपूर, अभिमन्यु भवन तीर्थ था ,आस्था थी भरपूर। खिचाई तो बहाना था ,नई दोस्ती का तराना था, कुछ पहेलियों के बाद ,खोका एक ठिकाना था । भट्टू ,रंगा ,पिंटू ,निझावन ,मलिक ,राठी , सांगवान और शौकीन इतने रोज पके थे, रॉकी ,छिकारा ,राठी ,लूम्बा भी अक्सर मौजूद होतेथे । मेस में जिस दिन फ्रूट क्रीम होती थी, उस दिन हमें इनविटेशन पक्की थी। वह डोंगा भर - भर फ्रूट क्रीम मंगवाना, फिर ठूंस ठूंस के खिलाना बहुत कुछ अनजाना था, अब लगता है वह हकीकत थी या कोई फसाना था ।। उधर होस्टल 4 के वीरेश भावरा, मिश्रा, आनंद मोहन सरीखे दोस्त भी बहुमूल्य थे , इनकी राय हमारे लिए डूंगर से ऊंचे अजूबे थे। दो-तीन महीने बाद हमने अपना होश संभाला, महेश ,प्रदीप ,विनोद और कानोडिया का संग पाला । फर्स्ट सेमेस्टर में स्मिथी शॉप मे डिटेंशन आला ।। हमें वो दिन याद हैं जब नाहल, नवनीत,विशु शॉप वालों से ही जॉब करवाने मे माहिर थे , तभी से हमें लगा ये दोस्ती के बहुत काबिल थे । थर्ड सेम में आकाश दीवान की ड्राइंग खूब भ...
Very touching but fact of life
ReplyDeleteReality of life
ReplyDelete