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Showing posts from July, 2020

इत्तेफाक

इत्तेफाक महज इत्तेफाक से तो नहीं होते कुछ तो इस जहां से इनके अलग उसूल होते जिन्होंने मोड़े थे बड़ी नजाकत से रास्ते आज एक अजनबी वही चांद लेकर फिर लौटे

Friendship

Friendship with celestial objects is divine but difficult to realise Friendship with nature is like a life line and easy to visualise Friendship amongst human beings is the way of promotion of love and peace necessary for mankind Which paves the way to sail us through highs and lows of life by mutual cooperation, and guidance and needed to survive.

राजस्थानी बारानी टीन्डसी की सब्जी

सावन में निनाण काढां, निनाणां ली‌ नाह टीडन्सिंयां रो साग खावां, वाह रे सांईं‌ वाह। टीन्डसी राजस्थान की एक टीण्डा वर्ग की सब्जी है।उपरोक्त प्रसिद्ध राजस्थानी उक्ति टीन्डसी की सब्जी की लोकप्रियता को रेखांकित करती है। इस मेरु प्रदेश में बारानी खेती में टीन्डसी पहली हरी सब्जी होती थी जो बरसात के महीने भर बाद मिलने लग जाती थी। इसलिए यह राजस्थानी संस्कृति में विशेष स्थान रखती है। सावन मास में टीन्डसी अवश्य ही उपलब्ध होती है।टीन्डसी को काटकर ,बीज निकालकर और धूप में सुखाकर फोफलिया बनाया जाता है जिसकी मीठी सब्जी राजस्थान में विशेष लोकप्रिय है। टीन्डसी के बहुत से मुहावरे प्रचलित है जैसे:- कोई आदमी यदि बेमतलब किसी दूसरे के काम में टांग अड़ाए तो लोग कहते हैं" तुम यहां क्या टीन्डसी लेने आया है।" इसी कड़ी में आज मैंने भी में लंच टीन्डसी की सब्जी बनाई जिसकी रेसिपी नीचे दी गई है। सामग्री (एक आदमी के लिए):- टीन्डसी - एक प्याला प्याज- एक मध्यम साइज खाद्य तेल- एक बड़ा चम्मच लहसुन-५-६ कलियां लाल मिर्च पाउडर आधा छोटा चम्मच धनिया पाउडर चौथाई छोटा चम्मच हल्दी पाउडर चौथाई छोटा चम्मच नम

अरबी की सूखी सब्जी

अरबी की सूखी सब्जी और बूंदी रायता के संग अगर मेसी रोटी मिल जाय फर्ज करो ऊपर से दो नारियल लड्डू भी हों तो कैसे आत्मा तृप्त हो जाय। अरबी गर्मियों में सहज ही उपलब्ध रहती है। अरबी में कार्बोहाइड्रेट, कुछ विटामिन और फोलिक एसिड होते हैं। अरबी भी आलू, शकरकंद की तरह है ट्यूबर रूप में उपलब्ध होती है। इस की सूखी सब्जी अजवाइन के साथ बनाई जाती है जिससे इसे पचाने में सरलता होती है। आज रविवार था इसलिए अरबी की सब्जी बनाई। जिस की रेसिपी निम्न प्रकार है:- सामग्री (एक आदमी के लिए) १-अरबी सवा सौ ग्राम ( 2 इंच लंबे पांच पीस) २-अजवाइन एक छोटा चम्मच ३-लाल मिर्च पाउडर एक छोटा चम्मच ४-हल्दी पाउडर चौथाई छोटा चम्मच ५-धनिया पाउडर चौथाई छोटा चम्मच ६-नमक आधा छोटा चम्मच ७-अमचूर चौथाई छोटा चम्मच ८-मूंगफली का तेल एक बड़ा चम्मच ९-एक प्याज मध्यम साइज बनाने की विधि:- सबसे पहले अरबी को साफ करके उसे दस मिनट तक उबाल कर पकाते हैं। फिर उसको उतार कर इसके छिलके उतारते हैं और गोल- गोल टुकड़ों में काट लेते हैं। प्याज को छीलकर लंबे-लंबे टुकड़ों में काट लेते हैं। अब एक कढ़ाई में तेल लेकर उसे मध्यम आंच पर गर्म करते

भाव में है सुंदरता

हाल दिल का मोबाइल रूपी किताब जितना ही चंचल है शब्दों को खूबसूरत हाथ ने रोक लिया आंखों के जज्बात रोकना मुश्किल है जुल्फों का बिखरा हुआ सौंदर्य और ये गरिमामय आभरण नज़रें हमारी जम गईं लेखनी को रोक पाना अब हुआ मुहाल है।

निंबौरी

रखो दोस्ती का मिजाज नीम की निंबौरी सा जो अधीर,लोभी और लालची परखें दिखे उन्हे हरी भरी लगे उन्हें कड़वी-कड़वी। रखो दोस्ती का मिजाज नीम की निंबौरी सा जो धैर्यवान, सज्जन और गुणवान‌ परखें दिखे उन्हें पीली-पीली लगे उन्हे रसभरी और मीठी-मीठी ।।

मौत

मौत तो सच्चाई है भले बुरे पर पर्दा डालना इसकी सबसे बड़ी अच्छाई है चलते फिरते आ जाए मौत यही जिंदगी की सर्वोत्तम विदाई है। बिना गमों के गुजरे जिंदगी समझो कच्ची न्हाई (भट्टी) है संघर्षों में गुजरे जिंदगी उसको उठा ले जाने में मौत भी बरतती चतुराई है।

आइसक्रीम का असर

लोग कहते हैं जिंदगी आइसक्रीम की तरह है टेस्ट करो तो पिघलती है वेस्ट करो तो भी पिघलती है कौन यहां मनमाफिक जिंदगी जी पाता है यह तो किसी और की पहले से लिखी हुई पटकथा है परंतु आज इस उमसभरी दुपहरी में आइसक्रीम को थोड़ा चखा है इस कोरोना के काल में‌ फिर से मन बचपन में जरूर लौटा है।

साल दो हजार बीस

यह कैसी दो हजार बीस की साल आई अपने संग दुश्वारियां ही दुश्वारियां लाई ड्रैगन देश से फैली एक बीमारी अकस्मात बन गई यह महामारी वायुयानों के पंख थम गए भूतल परिवहन है मारी मारी बच्चों की पढ़ाई छिन गई दुश्वार हो गई दिन गुजारी यह कैसी दो‌ हजार बीस... उद्योग पतियों के उद्योग रुक गये मजदूरों की दिहाड़ी नेताओं की चौधर रुक गई घूम रहे हैं जैसे कबाड़ी किसान हो गए घर तक सीमित कैसे बचेगी अब फुलवारी यह कैसी दो हजार बीस... ममता, स्नेह और साथ निभाना बात लगती है कोई दीवानी दादा, पापा ,मां और बेटी में एक साथ जब कोविड पहचानी पूरा घर जब अस्पताल पहुंचे कैसे बचे खुशियों की क्यारी यह कैसी दो हजार ‌बीस... डर को ऐसे पंख लगे महिलाएं दुर्गा बन गई कहीं स्कूटी पर माता बेटे को ला रही तो कहीं बेटी पिता को अपने गांव ले जा रही कोई किसी की सुने नहीं बात दुनिया आपे से बाहर हो रही डॉक्टरों को देखकर ही थोड़ी लौटे जीने की खुमारी यह कैसी दो हजार बीस की साल आई अपने संग दुश्वारियां ही दुश्वारियां लाई कोढ में खाज का काम कर रहे कहीं टिड्डी और भूकंप ड्रैगन फिर भी सीमा पर लगा रहा है कैंप पर कैं

क्रश बनाये बेबस

समय ही अब वह किताब है जिसमें मेरे संघर्ष का हिसाब है दोस्त और सोच अब तुम्हीं हो जिसके लिए जारी अब करतब है रास्ता अब केवल तुम्हारी ओर है जहां विचार-विमर्श की आशा है बिखरने का अब डर नहीं ना कोई निखरने की अभिलाषा है।

एक सीख रसोई से

जब जब मैं इन्हें बनाता हूं पसीना रीढ की हड्डी के ऊपर चल कर पैरों तक आ जाता है तो कभी नाक से उतर कर मुंह में घुस जाता है। मेरे शरीर की नमक की पूर्ती सहसा ही कर जाता है बिन पानी के ही मैं पवित्र स्नान कर बाहर आता हूं पर इसका मतलब यह भी नहीं कि मैं अपने पसीने से तकदीर सींचता हूं मैं तो बस गर्मी में अपने लिए अपनी चार‌ रोटी बनाता हूं पाठ यह सीखना बाकी है कि महिलायें कैसे इतनी तपने के बाद भी मुस्कुराहट के साथ सबको खाना परोसती हैं ना कभी एहसान जताती हैं?