रिश्ते में...
ना काले गोरे का भान हो
बस सही भावों का उत्थान हो
नकारात्मकता का पतन हो
हृदय की बात सुनी जाए
कोई राज बीच ना रह जाए
उम्र की ना कोई चर्चा हो
जमाने की रुसवाई पर ना खफा हों
बस आंखों में विश्वास हो
चेहरा ही सब बता जाए
कोई राज बीच ना रह जाए
चांद ,तारे मिले ना मिलें
फूलों से सेज खिले ना खिले
फुर्सत के क्षण मिले ना मिलें
आंखों में आशा मिल जाए
कोई राज बीच ना रह जाए
अपनो के आंगन सदा घूमें
स्नेह हमेशा आंचल चूमे
देश - दुनिया में घूमे ना घूमें
ख्वाबों की दुनियां ना मुरझाए
कोई राज बीच ना रह जाए
अगस्त 84 एडमिशन ,रैगिंग हुई भरपूर, अभिमन्यु भवन तीर्थ था ,आस्था थी भरपूर। खिचाई तो बहाना था ,नई दोस्ती का तराना था, कुछ पहेलियों के बाद ,खोका एक ठिकाना था । भट्टू ,रंगा ,पिंटू ,निझावन ,मलिक ,राठी , सांगवान और शौकीन इतने रोज पके थे, रॉकी ,छिकारा ,राठी ,लूम्बा भी अक्सर मौजूद होतेथे । मेस में जिस दिन फ्रूट क्रीम होती थी, उस दिन हमें इनविटेशन पक्की थी। वह डोंगा भर - भर फ्रूट क्रीम मंगवाना, फिर ठूंस ठूंस के खिलाना बहुत कुछ अनजाना था, अब लगता है वह हकीकत थी या कोई फसाना था ।। उधर होस्टल 4 के वीरेश भावरा, मिश्रा, आनंद मोहन सरीखे दोस्त भी बहुमूल्य थे , इनकी राय हमारे लिए डूंगर से ऊंचे अजूबे थे। दो-तीन महीने बाद हमने अपना होश संभाला, महेश ,प्रदीप ,विनोद और कानोडिया का संग पाला । फर्स्ट सेमेस्टर में स्मिथी शॉप मे डिटेंशन आला ।। हमें वो दिन याद हैं जब नाहल, नवनीत,विशु शॉप वालों से ही जॉब करवाने मे माहिर थे , तभी से हमें लगा ये दोस्ती के बहुत काबिल थे । थर्ड सेम में आकाश दीवान की ड्राइंग खूब भायी थी, इसीलिए ला ला कर के खूब टोपो पायी थी। परीक्षा की बारी आई तो
Comments
Post a Comment