सनी और हनी
लगते बड़े फनी
सनी स्वतंत्र है
हनी कार्य से बंधी है
सनी बड़ा सामाजिक
हनी थोड़ी अंतर्मुखी
सनी को प्रिय वाइन
वह भी दोस्तों के संग
सनी को पैर में हुई तकलीफ
अब दोस्तों में जाना हुआ मुहाल
यह देख हनी ने रोज सुबह
सनी के पैर की शुरू की देखभाल
अब सनी सुबह करवाए सिकाई
शाम को पीकर पैर से खूब करे बेवफाई
सुबह वही दर्द की कराह
फिर वही हनी की पनाह
रोज यह ड्रामा चले
दोनों में से कोई ना बोले
सनी को शाम का मादक वातावरण प्यारा
हनी को यह मालूम है कि
शारीरिक तकलीफ से मानसिक तकलीफ ज्यादा
इसलिए हनी रोज करे वही सिकाई
और सहे सनी की करतूत सूरमाई
सच है रिश्ते वहीं जिंदा हैं
जहां तकलीफ एक के दिल की दूजे ने पहचानी है
शरीर का क्या है यह तो मिट्टी आनी जानी है।
अगस्त 84 एडमिशन ,रैगिंग हुई भरपूर, अभिमन्यु भवन तीर्थ था ,आस्था थी भरपूर। खिचाई तो बहाना था ,नई दोस्ती का तराना था, कुछ पहेलियों के बाद ,खोका एक ठिकाना था । भट्टू ,रंगा ,पिंटू ,निझावन ,मलिक ,राठी , सांगवान और शौकीन इतने रोज पके थे, रॉकी ,छिकारा ,राठी ,लूम्बा भी अक्सर मौजूद होतेथे । मेस में जिस दिन फ्रूट क्रीम होती थी, उस दिन हमें इनविटेशन पक्की थी। वह डोंगा भर - भर फ्रूट क्रीम मंगवाना, फिर ठूंस ठूंस के खिलाना बहुत कुछ अनजाना था, अब लगता है वह हकीकत थी या कोई फसाना था ।। उधर होस्टल 4 के वीरेश भावरा, मिश्रा, आनंद मोहन सरीखे दोस्त भी बहुमूल्य थे , इनकी राय हमारे लिए डूंगर से ऊंचे अजूबे थे। दो-तीन महीने बाद हमने अपना होश संभाला, महेश ,प्रदीप ,विनोद और कानोडिया का संग पाला । फर्स्ट सेमेस्टर में स्मिथी शॉप मे डिटेंशन आला ।। हमें वो दिन याद हैं जब नाहल, नवनीत,विशु शॉप वालों से ही जॉब करवाने मे माहिर थे , तभी से हमें लगा ये दोस्ती के बहुत काबिल थे । थर्ड सेम में आकाश दीवान की ड्राइंग खूब भायी थी, इसीलिए ला ला कर के खूब टोपो पायी थी। परीक्षा की बारी आई तो
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