चारों मिलकर चोसर रची खेली तुरत - फुरत चार साल के अंतराल में पायो सब अकूत आठ और चोदह में भूकंप आए सब हो गए भयभीत फिर भी हमने खूब निभाई इस दुनिया की रीत चाहे हो जॉब चाहे हो मित्र या हो परिवार की प्रीत बरस अठारवां ले डूबा सारे रंगों की लीक अब आपकी झोंपड़ी, मेरी झोंपड़ी बातें करें, बस यही बची तरकीब ऐसा ही होना था तो क्यों ललचाया नगरां जयपुर आप पहुंचे सुरपुर अब हम किससे पूछें और जीने का हुनर।।