कितनी सब्र करूं, मैं कितनी सब्र करूं?
सूरज की तरह उठकर, कितनी बार वापस गिरूं?
रोज उठने पर वही क्रिया,
वही की वही दिनचर्या,
वहीं पहाड़ सा दिनो का बोझ,
किस पर बोझ धरूं?
मैं कितनी सब्र करूं ?
चारों तरफ नीरस सी हंसी,
झूठे अपनापन की फांसी,
रोज बिजली का आना-जाना,
मैं कितनी सब्र करूं?
उत्पात मचाती बेहूदी खबरें,
धीरे- धीरे तपाती खबरें,
भजनी साठी जलोटा की खबरें,
प्रियंका जोनास की खबरें,
खरे और ख़ोटों की खबरें,
मैं किस पर विश्वास करूं?
मैं कितनी सब्र करूं?
रोज सब्जी का थैला हाथ में,
रोज राशन की लाइन में,
रोज रूपए- डालर का झगड़ा,
रोज बीमारी के नाम का लफड़ा,
रोज धर्म के नाम पर फूट,
मैं किस पर विश्वास करूं?
मैं कितनी सब्र करूं?
अगस्त 84 एडमिशन ,रैगिंग हुई भरपूर, अभिमन्यु भवन तीर्थ था ,आस्था थी भरपूर। खिचाई तो बहाना था ,नई दोस्ती का तराना था, कुछ पहेलियों के बाद ,खोका एक ठिकाना था । भट्टू ,रंगा ,पिंटू ,निझावन ,मलिक ,राठी , सांगवान और शौकीन इतने रोज पके थे, रॉकी ,छिकारा ,राठी ,लूम्बा भी अक्सर मौजूद होतेथे । मेस में जिस दिन फ्रूट क्रीम होती थी, उस दिन हमें इनविटेशन पक्की थी। वह डोंगा भर - भर फ्रूट क्रीम मंगवाना, फिर ठूंस ठूंस के खिलाना बहुत कुछ अनजाना था, अब लगता है वह हकीकत थी या कोई फसाना था ।। उधर होस्टल 4 के वीरेश भावरा, मिश्रा, आनंद मोहन सरीखे दोस्त भी बहुमूल्य थे , इनकी राय हमारे लिए डूंगर से ऊंचे अजूबे थे। दो-तीन महीने बाद हमने अपना होश संभाला, महेश ,प्रदीप ,विनोद और कानोडिया का संग पाला । फर्स्ट सेमेस्टर में स्मिथी शॉप मे डिटेंशन आला ।। हमें वो दिन याद हैं जब नाहल, नवनीत,विशु शॉप वालों से ही जॉब करवाने मे माहिर थे , तभी से हमें लगा ये दोस्ती के बहुत काबिल थे । थर्ड सेम में आकाश दीवान की ड्राइंग खूब भायी थी, इसीलिए ला ला कर के खूब टोपो पायी थी। परीक्षा की बारी आई तो
आम आदमी की व्यथा अति उत्तम शब्दों में
ReplyDeleteRight G.But khushiyan bhi khud hi talaashni Hoti hn.Kuan kabhi pyase k paas nhi jaata.
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