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Showing posts from September, 2020

बेटियों के लिए मुफीद नहीं

दिल्ली हो या हाथरस दो हजार बारह हो या फिर दो हजार बीस बेटियों के लिए मुफीद नहीं अब यह अपना देश। तोड़ना पीड़िता की रीढ की हड्डी का हाथरस में भरता है आक्रोश नस नस में और साबित करता है रीढ विहीन हो‌‌ गया है अब यह अपना देश । कानून चाहे कुछ भी करे संस्कारों की भी है दरकार संस्कारों की ही कमी धरती है दनुज का भेष 'लानत है' का मतलब अब कोई समझाता नहीं माता, पिता‌‌ और गुरु वाला‌ अब‌ डर नहीं इसलिए‌ ना शर्म बची है शेष बेटियों के लिए मुफीद नहीं अब यह अपना‌ देश।

ठंडी बयार

जब सहता है जीवन रिश्तों की धूप बेटी आती तब बनकर ठंडी बयार घिर जाये जीवन कभी किसी व्याधि से हर कोई देखे निराशा, शंका आदि से धैर्य और मुस्कान से तब भी काम लेती बेटी रूपी ठंडी बयार जमाना हर मोड़ पर ढहाता है कहर सा मुश्किलें खड़ी हैं मुंह बाये डायन सुरसा लेकर नाम भगवान का तब भी हिम्मत देती बेटी रुपी‌ ठंडी बयार कहता है हर रिश्ता बारंबार आपके जीवन में भी आएगी बहार पर मैं कहता हूं वो बेटी का उल्लास ही है मेरे जीवन की ठंडी बयार

शनिवार की संध्या

सजी है चौपड़ आस लगाए कई धुरंधर अभी ना आए चीयर्स का समय निकला जाई शनिवार की संध्या गदरायी प्याले छलकें छल- छल छल- छल जिसमें लहरें निर्मल- निर्मल देख- देख आंखें हरसाई शनिवार की संध्या गदरायी एसी की ठंड भी अगन लगाए क्रिकेट ,सीरियल रास ना आए आ जाओ अब जूम हताई शनिवार की संध्या गदरायी ये नहीं आए ,वो नहीं आए काश कयामत ही आ जाए ओ मेरे भाई तेरी दुहाई शनिवार की संध्या गदरायी

दोस्ती का जायका

दोस्त भी आजकल दारू की तरह हो गए चांदनी में हसीन सपने बेचते धूप में बोली से खजाने भरते जो वक्त ना समझे उसके हिस्से में "माफी" आए सुनकर इसको कोई क्यों चकराए।।

जिंदगी की समस्याएं

ये जिंदगी की समस्याएं जीवन की गति का आधार हैं सोच का बुनियादी आहार हैं अवसर ढूंढने का नवाचार हैं ना इनसे कभी घबराना                ये हैं हमारी आवश्यकताएं                ये जिंदगी की समस्याएं माना ये ना सोने देती फिर भी नए-नए सपने दिखाती या सीधे ही गंतव्य पहुंचाती नहीं तो फिर मंजिल ही बदल देती किसी निष्कर्ष पर जरूर पहुंचाती                 ये हैं हमारी अभ्यास पुस्तिकाएं ‌                ये जिंदगी की समस्याएं

अभियंता

एक अभियंता होता है ऐसा सृजनशील     मानव जो पृथ्वी के खजाने से खनिज लेकर बना सकता है देव और दानव।।

हिंदी : संस्कृति का आलोक

हिंदी करती संस्कृति को आलोकित लिखो, पढ़ो और हो जाओ रोमांचित अंतरा-अंतरा बसे मिठास समास-समास शब्द विलोप छंद- छंद है श्रुति मूलक अलंकार -अलंकार सौंदर्यपरक जानो भेद करो विश्व व्यापित लिखो,पढ़ो और हो जाओ रोमांचित मुहावरा-मुहावरा गुणों की खान रस - रस बोले व्यक्तित्व महान श्लोक - श्लोक स्वास्थ्य यह है संपूर्ण जीवन पथ्य लेकर खुराक करो जीवन आनंदित लिखो, पढ़ो और हो जाओ रोमांचित जिसने किया इसमें काम उसका बना अलग मुकाम बच्चन,नीरज या प्रेमचंद नाम ये काल को दे गए पैगाम हिंद है हिंदी का मुल्क बोलो हिंदी होकर दत्तचित पढ़ो, लिखो और हो जाओ रोमांचित

स्वरांजलि( पंचम पुण्यतिथि)

कुछ तारीखें नहीं बदलती हैं वो जिंदगी भर ठहर जाती हैं      क्योंकि      मंजिल के बिना      रास्ते नहीं होते      हमदम के बिना      कैलेंडर नहीं बदलते कुछ लोग स्मृति से नहीं जाते हैं वो अदृश्य होकर ज्यादा सिखाते हैं      क्योंकि      अब वे एहसास      नहीं दिलाते      बल्कि घट में      ही वास करते अब बारह सितंबर कभी नहीं बदलता है यह हर पल सामने ही रहता है      क्योंकि      अब फूलों में ना      सुगंध महसूस होती      रंगों में ना      उमंग दिखाई देती ऐसे जीवन में भी तुम्हारी यादें मुस्काना नहीं भूलने देती हैं और तुम्हारे आदर्शों की ज्योति जीने की राह दिखाती हैं।

Literacy is light

I know the world because I know my dignity and rights through the window of knowledge Which opens up only by reading ... Reading is thinking Writing is speaking with ink Both of them take me to my home which are books.. Without knowledge everybody hooks Therefore give a gift of literacy to someone for improving one's world looks.

My Teacher

Everyone of us might have had a good guidance and help from our teachers as per our goodwill and requirements . Mine may not be a unique one but for me this help was the milenstone in conveting a "Mohaniya into Mohan Nath". Today's teachers day takes me back to the June 1979 when I had completed my 8th class and trying to appear in the " Rural talent search examination" for getting a scholarship. At that time in our state 3 students from each tehsil were being selected for a scholarship of Rs.1000/- per annum through the "Rural Talent Search Examination". I was the topper of my class and a needy student .My school headmaster Sh. RG Khandelwal filled my form for appearing in the examination before the summer vacations and he told me to come to his home and appear in the examination when the scheduled date once declared. Finally the day approached and I went to Churu in the morning by bus which was the only conveyance once in the 24 hours at 9:00 Am fr

एक सत्य

जन्म मिलता है किस्मत से किसी को झोंपड़ी, किसी को महल तो किसी को खुला आसमां जाने का ठिकाना एक है जिसमें लुप्त हो जाता है सारा जहां जीओ इसी सत्य की‌ नींव पर अन्त अलग- अलग‌ है कहां।।