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Showing posts from May, 2020

स्वाद राजस्थान के: मोठ की बड़ी(मंगोड़ी) की सब्जी

भारत के गांव आत्मनिर्भर ही थे । यहां राजस्थान में भी ऐसा ही सूरते हाल था।यहां किसान अनाज के साथ दलहन और तिलहन भी उगाते थे । ककड़ी ,तरबूज, टिन्डा जैसी सब्जियां भी उगाते थे ।गर्मियों के दिनों में यह सब्जियों नहीं होती थी तो दलहन (जैसे मोठ, मूंग ,चौला)से पापड़, बड़ी(मंगोड़ी) बनाकर स्टॉक करके रख लेते थे और इनकी सब्जी बनाते थे। यूं तो गर्मी में प्राय: बड़ी(मंगोड़ी), पापड़ ,खेलरा ,फोफलिया आदि की सब्जी बनाते थे ।लेकिन मोठ की बड़ी की सब्जी और साथ में रायता बरसात होने पर जरूर बनते थी। शायद मोठ की बड़ी का चटपटा स्वाद और रायते की मिठास बरसात के मौसम के माकूल होती है। कल चूंकी यहां कुछ बरसात हुई और बादल घिरे हुए हैं। मौसम खुशगवार है, तो मां के द्वारा ऐसे मौसम में बड़ी की सब्जी बनाना और खिलाना सहसा ही याद आ गया और इसलिए आज मोठ की बड़ी की सब्जी और रायते के साथ लंच किया। सामग्री एक आदमी के लिए मोठ की बड़ी आधा कप खाद्य तेल एक बड़ा चम्मच एक प्याज मध्यम साइज का लाल मिर्च पाउडर एक छोटा चम्मच हल्दी पाउडर आधा छोटा चम्मच धनिया पाउडर आधा छोटा चम्मच नमक पाउडर आधा छोटा चम्मच हींग चुटकी भर लहसुन चार क

हरी सांगरी का खाटा/ कढी

पिछली बार मैंने हरी सांगरी की सब्जी की रेसिपी लिखी थी। हरी सांगरी का अब मौसम जा रहा है और सांगरी अब खोके में परिवर्तित होने लगी है । खोखा सूखने पर मीठा स्वाद लिए हल्के भूरे रंग का हो जाता है जिसको बच्चे बड़े सभी राजस्थान में ड्राई फ्रूट की तरह है खाते हैं। आज मेरे पास हरी सांगरी की लगभग 50 ग्राम मात्रा ही बची हुई थी। जिसको मैंने आज सांगरी का खाटा/सांगरी की कढी बनाने में प्रयोग की है। चूंकि शनिवार का दिन फुर्सत का दिन था और इसलिए इत्मीनान से इसको बनाया और तबियत से इसको राजस्थानी बाजोट पर रखकर और जमीन पर आसन पर बैठकर घी मिलाकर और मिस्सी रोटी चूर कर खाया है। आप भी मेरे इसे पढ़कर मेरे स्वाद का रसास्वादन कीजिए। यूं तो खाने के मामले में खाने वाले की सेहत, खाने वाले का क्षेत्र ,उसकी खाते समय की मन:स्थिति आदि का भोजन के स्वाद पर बहुत प्रभाव पड़ता है। फिर भी कुछ चीजें सामान्य रूप से क्षेत्र विशेष में विशेष रुप से प्रचलित और पसंद की जाती हैं। इसी कड़ी में मैं आज हरी सांगरी का खाटा/कढी बनाने की विधि पेश कर रहा हूं। हो सकता है यह शहरी समुदाय में कम लोकप्रिय हो लेकिन मजदूर व किसान समुदाय जोकि ख

Lockdown Days

Peak of lockdown And peak of heat Made our movements And activities very weak Self- dependence seems a long lasting trait Posting a selfie is very difficult with Self decor moustache And self done hairset

21 Months of Young Boys Club-84

Congratulations young boys club-AT4. It has been of 21 month of age today. In this long period many elections took place. Some state governments changed ... Some big events took place like howdy modi and namaste Trump... One memorable reck84 get together... But nothing changed us much than this covid-19 virus.. Whatever happens in our life leaves its some permanent marks on our behaviour and we recall in our thought whatever bad happened to us earlier as it gives us courage to deal the menace we are facing at present. It is like a therapy "poison kills poison". One thing is certain in our tough times we miss our near and dears the most... And it is from where we find antidote to our despairs and get refreshed and get courage for a new day.. or new change... In line of this I have been regularly calling on to some friends and got always a new courage and energy after talking to them. During last 8 weeks of lockdown I have called on to Vishu...and realized as homely feelin

नेक सलाह

प्रिय यह मास्क खोल न देना हाथ सैनिटाइज करना भी भूल न जाना कोरोना से लड़ने का यह चक्र सुदर्शन फूलों से भी प्यारा है इसका दर्शन इसकी चौकस सुरक्षा में कोई निज लापरवाही बरत न लेना प्रिय यह मास्क खोल न देना हाथ सैनिटाइज करना भी भूल न जाना मास्क की गांठों को व्यवस्थित करना सरल है पर एंटीबॉडी प्राप्त करना बड़ा कठिन है बीच भीड़ में कहीं जाकर लापरवाही से इसे हटा न देना प्रिय यह मास्क खोल न देना हाथ सैनिटाइज करना भी भूल न जाना मिल सकते हैं चेहरे अनेक कुछ चिकने, कुछ काफी नेक कुछ खांसेंगे, कुछ देंगे छींक नए-नए दृश्य पाकर भी वीर तू मास्क को भूल न जाना प्रिय यह मास्क खोल न देना हाथ सैनिटाइज करना भी भूल न जाना

जीवन: एक अवास्तविक‌ खुशी

अद्भुत है जीवन का खेल नित नई सीख और नए अनुच्छेद कहीं लाचारी और गरीबी की अमरबेल कहीं नफरत, दु:ख और घोर अवसाद अनंत जिजीविषा और असीमित लालसा जिस पर ना कभी पड़े नकेल जीवन का यह गूढ़ रहस्य अब तक ना कोई पाया बेध ममता और प्यार कहलाता है अनमोल फिर भी वहीं से पनपती है दु:खों की सेज जिसने समय रहते समझा ये खेल उसने ही जीता जीवन का युद्ध जैसे प्रभु यीशु या  गौतम बुद्ध।

ज्येष्ठ महीना और हरी सांगरी की सब्जी

आज ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा है। ज्येष्ठ महीना रेगिस्तान में सबसे शुष्क और गर्म होता है ,फिर भी इस माह में खेजड़ी( शमी) वृक्ष पूर्णतया हरा और फलों (जिन्हें सांगरी कहते हैं )से लदा हुआ होता है। खेजड़ी रेगिस्तान के लोगों के जीवन का आधार और विपरीत परिस्थितियों में भी सहज रहने की प्रेरणा देती है। खेजड़ी के पत्ते( लूंग) पशुओं का उत्तम चारा, इसके फल (सांगरी) से कढी, अचार और सब्जी बनते हैं। इसकी लकड़ियां इंधन का उत्तम स्रोत व हवन में समीधा के काम आती हैं। इसकी जड़ से फर्नीचर ,और हल बनाया जाता है। किसी जमाने में खेजड़ी की सांगरी व लकड़ी रेगिस्तान के किसानों के लिए नकदी पाने का आधार होता था। गर्मी के दिनों में सुबह 6:00 बजे सांगरी लाने जाते थे ,दोपहर12:00 बजे तक वापस लौटते थे, फिर सांगरी की सब्जी और दही व मिसी रोटी खाकर सांय 6:00 बजे तक सांगरी की चुंटाई करते थे। बच्चों का योगदान सांगरी चुंटाई में विशेष उल्लेखनीय होता था। छोटे-छोटे हाथ चटचट सांगरी चुंटते थे। संयोग से आज ज्येष्ठ के पहले ही दिन मेरे घर के सामने लगे खेजड़ी के पेड़ से सांगरी प्राप्त कर सांगरी की सब्जी के साथ लंच करने का अवसर प्राप्त