अभी तक बुद्धि फिरते देखी
अब हालात बदलते देख रहे हैं
कभी बेटा बुढ़ापे की लाठी कहा जाता था
परिवार उस पर इतराता था
जब जिम्मेदारियां नहीं निभाता था
तब बुद्धि फिरा कहा जाता था।
एक वायरस ऐसा आया
सारे रिश्तों को साफ कर गया
यदि हो जाए कोई प्रभावित
सब भागें हो आतंकित
जिम्मेदारी अब बन गई भागना
सिर्फ डॉक्टर को पड़े संभालना
देखो यह मानवता की विडंबना
इसे कहते हैं हालात फिरना।
कहीं बच्चे अकेले रहकर
भूख से दम तोड़ गए
कहीं बुजुर्गों को मिले नहीं वेंटिलेटर
और दब गया मौत का एक्सीलेटर
जो सिखाया था जग ने उसका रहा नहीं कोई मोल
अब जो सिर्फ हालात सिखाएं वही है अनमोल
चीज बहुत हैं दुनिया में
लेकिन उपयोग कर नहीं सकते
बन गया आदमी घर का कैदी
जैसे हो कोई इसने लंका भेदी
हालात बन गया है ड्रैकुला
सारे रिश्तों का बना दिया कर्बला।
अगस्त 84 एडमिशन ,रैगिंग हुई भरपूर, अभिमन्यु भवन तीर्थ था ,आस्था थी भरपूर। खिचाई तो बहाना था ,नई दोस्ती का तराना था, कुछ पहेलियों के बाद ,खोका एक ठिकाना था । भट्टू ,रंगा ,पिंटू ,निझावन ,मलिक ,राठी , सांगवान और शौकीन इतने रोज पके थे, रॉकी ,छिकारा ,राठी ,लूम्बा भी अक्सर मौजूद होतेथे । मेस में जिस दिन फ्रूट क्रीम होती थी, उस दिन हमें इनविटेशन पक्की थी। वह डोंगा भर - भर फ्रूट क्रीम मंगवाना, फिर ठूंस ठूंस के खिलाना बहुत कुछ अनजाना था, अब लगता है वह हकीकत थी या कोई फसाना था ।। उधर होस्टल 4 के वीरेश भावरा, मिश्रा, आनंद मोहन सरीखे दोस्त भी बहुमूल्य थे , इनकी राय हमारे लिए डूंगर से ऊंचे अजूबे थे। दो-तीन महीने बाद हमने अपना होश संभाला, महेश ,प्रदीप ,विनोद और कानोडिया का संग पाला । फर्स्ट सेमेस्टर में स्मिथी शॉप मे डिटेंशन आला ।। हमें वो दिन याद हैं जब नाहल, नवनीत,विशु शॉप वालों से ही जॉब करवाने मे माहिर थे , तभी से हमें लगा ये दोस्ती के बहुत काबिल थे । थर्ड सेम में आकाश दीवान की ड्राइंग खूब भायी थी, इसीलिए ला ला कर के खूब टोपो पायी थी। परीक्षा की बारी आई तो
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