चलो मिल लेते हैं एक बार फिर जब तक हैं हम थोड़े उपयोगी कल हो जाएंगे गंध हीन पारिजात धू ल झरे आंचल में भरने की फिर कोई भूल करे ना करे यह मनोरम रात फिर ना होगी। हमने अपने उद्यम से अपना चमन गुलाबों से संवारा है सारे सपनों को उस पर वारा है अब हैं सहायक की भूमिका में ना जाने कब हो जाएं अन उपयोगी खाए थे जिसने वक्त के बड़े थपेड़ों को मोड़ा था जिसने विपरीत बहती धाराओं को भंवर में फंसती दिखती है आज वही डोंगी चलो मिल लेते हैं एक बार फिर जब तक हैं थोड़े उपयोगी।