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Showing posts from November, 2019

चलो मिल लेते हैं

चलो मिल लेते हैं एक बार फिर जब तक हैं हम थोड़े उपयोगी कल हो जाएंगे गंध हीन पारिजात धू ल झरे आंचल में भरने की फिर कोई भूल करे ना करे यह मनोरम रात फिर ना होगी। हमने अपने उद्यम से अपना चमन गुलाबों से संवारा है सारे सपनों को उस पर वारा है अब हैं सहायक की भूमिका में ना जाने कब हो जाएं अन उपयोगी खाए थे जिसने वक्त के बड़े थपेड़ों को मोड़ा था जिसने विपरीत बहती धाराओं को भंवर में फंसती दिखती है आज वही डोंगी चलो मिल लेते हैं एक बार फिर जब तक हैं थोड़े उपयोगी।

मेरा कॉलेज जीवन

जीवन की आपाधापी में चाहे कितना दूर चला जाऊं पांच बरस की अवधि पर ज़ी टी में 'रेक' जरूर आऊं थाई ,चाइनीजऔर कॉन्टिनेंटल चाहे कितनी भी बार खाऊं स्वाद रेक के राजमा - चावल का कभी ना मैं भुला पाऊं दुनियां में घूम - घूम कर मैं चाहे कितना ही इतराऊं घूम 'रेक 'की कॉरिडोर सुकून मातृ आंचल सा पाऊं उड़न खटोले चढ़कर मैं चाहे दुनियां घूमूं और इतराऊं किरमिच रोड के ट्रैक्टर से लटक उस यात्रा का सुख कहां से पाऊं गंगा,यमुना ,सरस्वती का चाहे संगम देख कर आऊं ब्रह्मसरोवर की संध्या की रंगत कहां से पाऊं 400 ,220 या 132 केवी के चाहे कितने भी ब्रेकर लगाऊं विशू ,शेखू और नवनीत संग इंडक्शन मोटर के प्रयोग कहां से लाऊं यूं तो मेरा पुनर्जन्म में विश्वास नहीं फिर भी यदि पुनर्जन्म पाऊं रेकर ही हों मेरे सहपाठी और 'रेक' ही कॉलेज पाऊं।

थोड़ा अतीत में झांक लेते हैं

चलो थोड़ा अतीत में झांक लेते हैं क्वार्टर अगस्त 18 से नवंबर 17 की थोड़ी थाह लेते हैं दिल बागी का शेर सिरमोर एक बार फिर पढ़ लेते हैं "मोहब्बत की अजीब बेबसी देखी उसने तस्वीर तो जलाई मगर राख नहीं फेंकी" रुखसत हुए ग्रुप से आलोक, खरीट और भंडारी को इस शेर से साध लेते हैं भुवनेश की भेजी कविता "मिलते जुलते रहा करो" से भी कोई उपाय खोज लेते हैं विशू की भेजी रागिनी "बता मेरे यार सुदामा रे भाई घणे दिना में आया" से दोस्ती की सीख लेते हैं चलो थोड़ा अतीत में झांक लेते हैं। राकेश अगी का शेयर(share) "लखनवी कैसे बनता है" आज भी मेरे पेट में उतरा पड़ा है टुंडे के कबाब की दावतें देता है पूर्णिमांत और अमानता कैलेंडर का भुवनेश व जगोटा का मंथन उनके अद्भुत पठन-पाठन का भान कराता है सुयोग सेठ का वीडियो क्लिप "राज पलकां में बंद कर राखूं ली" ग्रुप की जवानी की कहानी कहता है पर अभी तो बात अधूरी है अभी तो साध अपूरी है 30 नवंबर की दूरी है तब नया सुरूर होगा हवा से चिराग रोशन होंगे ऐसा अपना मिलन होगा फिलहाल चलो थोड़ा अतीत में झांक लेते ह

गुदगुदाना

यूं तो गुदगुदाना होता है कोमल अंगों या भावनाओं का सहलाना मित्रों के खेमे में जब बात हो तब मुश्किल होता है इस शब्द को समझाना फिर भी एक कोशिश है पसंद आए तो बतलाना।          जब भौंरों का गुंजन हो          कलियां लगे चटकने          देख - देख कर इस लीला को          जब मन लगे भटकने          रोम - रोम फटने लगे          हवा लगे जब चुभने          समझो किसी ख्वाब ने          गुदगुदाया है। जब औलाद ने कहीं मान बढ़ाया हो नेह सीने से निकल आंखों में छलछलाया हो पापा होने का मतलब असल में पाया हो समझो रिश्ते ने गुदगुदाया है।          जब कभी बारिश की          तेज झड़ी लगी हो          और उसमें भीगे हों          ऊपर से भूख लगी हो          घर आने पर पत्नी ने         पकोड़े खाने को परोसें हों         समझो भूख ने गुदगुदाया है। कांपती हुई देह‌ हो बदन पर कपड़े कम हों अलाव कहीं जला हो उस पर टूट पड़े हों समझो अग्नि ने गुदगुदाया है।          जब जाड़े की रात हो          प्यार अपना साथ हो          थोड़ा जोश जुनून हो          डांस का एक दौर हो          अंदर थोड़ा शोर हो