अगरिया का नमक उत्पादन
बड़ा निष्ठुर है यह रण का आंगन
चाहे हो पानी बांधना
या हो नमक बुहारना
यह काम खूबसूरती से
करती हैं गुजरात की ललना
बदले में पाती हैं
मर कर भी त्रासद भरी दुर्घटना
धड़ तो जल जाती है
पर पड़े पैरों को गाड़ना
कब आयेगा इनका
मजदूर दिवस सुहाना
अब चाय बागानों की सुनो कहानी
जो फिल्मों में दिखे रूहानी
वहां महिलाएं पत्तियां तोड़ती हैं
पर पत्तियां इन की अंगुलियां फोड़ती हैं
आठ घंटे के खड़े काम से
थककर चूर हो जाती हैं
नींद के लिए सुलाई
इनकी संगिनी हो जाती है
काश !इनकी व्यथा सुनने
कोई मजदूर दिवस आ जाये
और कोई राहत इनको दे जाये
नंदूरबार के मिर्ची उद्योग में
दिखती हैं रंग-बिरंगी जनानीयां
इनकी भी कुछ इतर नहीं हैं कहानियां
ना जलन की परवाह
ना मिर्ची की धांस
बस एलर्जी बन जाती है
उम्रभर इनके लिए एक फांस
काश! कोई मजदूर दिवस
इनके लिए भी ले जाए
कोई राहत की आस।
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