आज फिर पुराना एल्बम खोला ,
ग्रामीण मकान, मेड़ी,नेड़ी सब सामने आये,
कुछ साथी रविन्द्र,रामकुमार और बजरंग से ख्यालों में आये,
भाटिया साहब कंघी करते यों ही जवां से मुस्काये।
उनकी भेंट दिवाल घड़ीअब पूरी हुई,
पर समय आज भी मन ही मन मुस्काये।
समय ने यादों के दरवाजे खोले,
अब ना दर्पण, ना आरसी बोलें,
अब बस सिर्फ यादें ही यादें बोलें।
वो आगे इंजन वाली गज्जूजी की गाड़ी
तब की चंचला, चपला,
आज हेरिटेज हुई,
मकान जहां हमने बंधन बांधा,
आज है चोगुना पर लगता आधा।
अर्जुन दादाजी द्वारा कन्यादान,
कितना पवित्र,कितना महान।
एक शमां और गहरा तूफान,
लगता था अंधेरे का अपमान।
खूब निभाया उसने मेल,
गृहस्थ जीवन हो या हो खेल।
खूब संवारा , खूब संजोया,
जो कोई सानिध्य मे आया।
दो-ढाई दशक की यादें ,अब लगती शोले,
ऐ मेरे मन अब कुछ उस जैसा हो ले।
दिन महिने बर्ष मेरे ख्याल टटोलें,
अब बस सिर्फ यादें ही यादें बोलें।
वक्त जब इम्तिहान लेता है,
मिट्टी के खिलौने बिखेर देता है।
तो भी पुरुषार्थ कहां मिटता है,
संस्कार की शक्ल में जिंदा रहता है।
बस इतना जरूर है फिर कभी खिलौने ना बोलें,
बस फिर सिर्फ यादें ही यादें बोलें।
अगस्त 84 एडमिशन ,रैगिंग हुई भरपूर, अभिमन्यु भवन तीर्थ था ,आस्था थी भरपूर। खिचाई तो बहाना था ,नई दोस्ती का तराना था, कुछ पहेलियों के बाद ,खोका एक ठिकाना था । भट्टू ,रंगा ,पिंटू ,निझावन ,मलिक ,राठी , सांगवान और शौकीन इतने रोज पके थे, रॉकी ,छिकारा ,राठी ,लूम्बा भी अक्सर मौजूद होतेथे । मेस में जिस दिन फ्रूट क्रीम होती थी, उस दिन हमें इनविटेशन पक्की थी। वह डोंगा भर - भर फ्रूट क्रीम मंगवाना, फिर ठूंस ठूंस के खिलाना बहुत कुछ अनजाना था, अब लगता है वह हकीकत थी या कोई फसाना था ।। उधर होस्टल 4 के वीरेश भावरा, मिश्रा, आनंद मोहन सरीखे दोस्त भी बहुमूल्य थे , इनकी राय हमारे लिए डूंगर से ऊंचे अजूबे थे। दो-तीन महीने बाद हमने अपना होश संभाला, महेश ,प्रदीप ,विनोद और कानोडिया का संग पाला । फर्स्ट सेमेस्टर में स्मिथी शॉप मे डिटेंशन आला ।। हमें वो दिन याद हैं जब नाहल, नवनीत,विशु शॉप वालों से ही जॉब करवाने मे माहिर थे , तभी से हमें लगा ये दोस्ती के बहुत काबिल थे । थर्ड सेम में आकाश दीवान की ड्राइंग खूब भायी थी, इसीलिए ला ला कर के खूब टोपो पायी थी। परीक्षा की बारी आई तो
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