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Showing posts from January, 2025

भौंरा

आंखों ने जब दावत दी  होठों से दिल जा टकराया लाली गालों की फूलों सी महक-ए- बदन ने भौंरा बनाया।।

On sixtieth Birthday DTD. 18.01.2025

Today on completion of six decades of my life many relatives & friends have wished me. I am grateful to all of them and thank them all. Today I legally got the status of senior citizen.Looking back it comes in mind a long journey of life  across desert, rivers, mountains & sky. It gives me pleasure when on  a single thought thousands of people of different qualities and walks come into  my mind thereby giving me the feeling of an encyclopedia of many experiences.   Though in long journey of life I also came across many files corrupted with viruses. Now the challenge is to save my life's software from  harmful files and manage smooth running of my hardware. Still I am feeling as a student of Room No. 359 of Dronacharya Bhawan.🙏

अध्यात्म और व्यवसाय

अध्यात्म को दिल में रख कर व्यवसाय को बनाये श्रेयकर ऐसा कुछ सूत्र चाहिए तो मिलो   दिनेश से बाहें फैलाकर ।।     ‌     महाकुंभ का समय है और चारों ओर वातावरण अध्यात्ममय  है। कहीं IIT बाबा अभयसिंह के चर्चे तो कहीं अघोरी चंचल नाथ के। दोनों ही हरियाणा से  ताल्लुक रखते हैं ,इसलिए मेरी दिलचस्पी उधर ज्यादा हुई। इस बार तो यूं लगता है हरियाणा खेलों के बाद कुंभ में भी सब पर भारी पड़ रहा है। खैर  आज इसी विषय पर विचार आया। क्यों ना ऐसे व्यक्तित्व का शुक्रिया अदा किया जाए ,जिससे जीवन में कुछ सुकून, कुछ सुधार करने को मिला और जो  अध्यात्म और व्यवसाय में सामंजस्य की मिसाल है। ऐसा व्यक्तित्व है श्री दिनेश शर्मा इंजीनियर सुपरवाइजर का। जिसके साथ मुझे लगभग 4 साल कार्य करने का सौभाग्य मिला। वह  सरलता, अध्यात्म और त्याग की प्रतिमूर्ति  है ।वायरिंग, ब्रेकर , आइसोलेटर , सीटी , डीसी  सिस्टम रिपेयरिंग और इलेक्ट्रॉनिक आइटम बनाने में उसे महारत हासिल है। काम के प्रति जिम्मेदारी, समय की पाबंदी उसके नैसर्गिक गुण हैं।वह राधास्वामी...

RSEB और कष्ट अभियंता

कुछ लोग कड़वी यादें देकर सीखा जाते हैं तो कुछ मीठास के साथ सीखा जाते हैं। चूंकि मानव स्वभाव मीठास को लालायित रहता है। इसलिए हमें वही बातें याद‌ रहती हैं जो हमें किसी ने प्रेम से सीखायी होती हैं।       लूणकरणसर के बाबूलालजी नौलखा ऐसे ही व्यक्ति हैं जिनसे मैंने विभागों में ठेकेदारों की भूमिका की ए, बी, सी, डी सीखी थी। वह बात, काम और वक्त के पक्के थे। आने वाले और जाने वाले हर आदमी का एक समान आदर करना उनके व्यवहार में शामिल था। N.H.15 पर उनकी दुकान पर हर आदमी को विश्राम मिलता था और सामान आदि रखने की व्यवस्था मौजूद थी। शीतल जल पिलाकर 100 ग्राम गर्म पकोड़े और चाय हर कैडर के लिए उपलब्ध रहती थी। शाम को घंटों कार्य की चर्चा और दिन भर की कोई कठिनाई हो तो उसका समाधान यथा संभव निकाल लिया जाता था। शहरी और देहात दोनों क्षेत्रों की उनके पास कुंडली थी। हर एस्टीमेट के फोर्मेट भी मिल जाते थे। उन दिनों एक फोर्मेट के नीचे तीन कार्बन लगाकर एस्टीमेट बनाने पड़ते थे और गांवों में रुककर एस्टीमेट लाने, लाईन फाल्ट निकालने पड़ते थे इसलिए कनिष्ठ अभियंता को उन्होंने कष्ट अभियंता नाम दे रखा था😀। ...