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Showing posts from August, 2020

प्यार

प्यार तो एक सुखद‌‌ अहसास है नजदिकी या‌‌ दूरी‌ का इसमें नहीं कोई पाश है मीरा ने जहर‌‌ पीकर किया था प्रभु प्यार का अहसास तो अमृता ने सिगरेट के टुकड़ों को पीकर कभी किया था साहिर के हाथों को महसूस

दोस्त

हर रिश्ते में कोई न कोई पर्दा है कोई ना कोई अदृश्य किस्सा है ये दोस्त ही हैं जिनको देखकर लगता‌ है वो‌ जिश्म का हिस्सा हैं

मेरी जिंदगी

आज फिर रंगीन हो गई है जिंदगी आज फिर छलकता जाम हो गई है जिंदगी खुशियों के गीत सुनते सुनाते हुए आज फिर तलबदार है तुम्हारी यह मेरी जिंदगी मैंने इतना बुलंद किया है तुम्हारी संगत में कि अब मेरी गुलाम है यह मेरी जिंदगी तुम्हारे हर एक अल्फाज से सजाया गया शाख-ए-गुलाब है यह मेरी जिंदगी जब-जब झोंके तुम्हारे कह- कहों के आते हैं लचक खा - खाकर नायाब होती है मेरी जिंदगी

बरसात और झरने

बरसात के दिनों में बादल छाए रहते हैं पेड़ पौधे खूबसूरती में नहाए रहते हैं भावनाओं के हुजूम अंदर उड़ते रहते हैं यदि ना हो कोई हुजूम थामने वाला आंखों से झरने अक्सर झरते देखे जाते हैं।

Goga Navami & Deru dance

गोगो राणो आयो ए‌ कांकड़ में चिमक्या आल गिंवांल प्यारा म्हारा गोगाजी One folk festival which is very close to my heart and which brings me every year my childhood memories of making sand model is "Goga Navami". On Goga Navami the " Goga "from wet sand is made and worshipped. Another feature of this festival is that the worship items are very natural i.e. kheer , churma and coconut. The " Deru dance" is also performed on this festival in the afternoon at every temple ( popularly called goga medi in local language) of Gogaji . Today it is " Goga" of shukla paksha in our area but due to corona no Deru dance and Akhada is being done and hence this Goga is going to be mute one this year. May Gogaji maharaj help bring soon the covid vaccine and happiness at the every person's face

शुभकामना संदेश

अब तारीफों का वक्त नहीं एहसासों को पढ़ना अच्छा है मिले कहीं पुराने दोस्त चेहरे की रंगत पढ़ना अच्छा है बिन पूछे ही सब जान लें इतना तजुर्बा रखना अच्छा है लफ्जों का कोई बोझ नहीं पर हल्के लफ्जों से भारी कुछ नहीं ना आए कभी हल्के लफ्जों का भार यह दुआ सौ दुआओं से अच्छी है।

एक चटोरे की अभिलाषा

एक पाककला का जादूगर और परोसगारी का बाजीगर      रोज सुबह खोले पिटारा      देख ललचाए जी हमारा      कोविड का समय है      हम महसूस करें बेसहारा हिया हमारा टूट रहा अब बन जाओ तुम रफ्फूगर      कभी शादियों की दावतें      कभी पार्टियों की जाम खोरी      कभी बेलन जैसे हथियार की      मन गुदगुदाती मसखरी इतने बड़े-बड़े मसले पर नहीं है मेरे पास असले अब बन जाओ तुम शौरगर      कभी राजस्थान की दाल बाटी      कभी गुजरात के ढोकले      कभी पंजाब के छोले भटूरे      कभी बंगलुरु के डोसे देखने के अब तक बहुत हो गए शोसे कभी तो बन‌जाओ उदर पूरगर देंगे हम दुआएं बनकर पसरगर।

खूबसूरती

किसी शायर का ख्वाब हो तुम उसकी कलम का राज हो तुम लफ्ज‌ जो होंठों तक आते आते रुक गए उन लफ्जों का अहसास हो तुम

"यंग बोयज" : एक पनोरमा

This group was created exactly 2 years ago on 18 aug.2018 with the name of "Reck Rational 84" and after some months its name was changed by Vishu as "Rational Reck 84" . But last year in Nov. its name was changed to " Young Boys Club एटी4" by an open survey within the group and only one titlur name was received from Atul Pant and adopted mutatis mutandis and I think it is the best befitting name looking to our activities . The group is going good since last two years baring some squirmishes during 2019 general elections in May 2019 on one or two occasions. The basic aim of this group is maximum recreation through sharing of personal experiences, achievents, family achievements, songs, poems, shayaris, pics and small vedios etc. but with zero political discussion. I am happy to say that during last two years this motto of group had been fully followed by the honourable members baring stray incidents of foul play by one or two and then going in hiding for

भूल ना जाऊं खुद को कहीं

तेरी सुन्दरता‌ लगता है गहनो की मोहताज‌ नहीं आंखों को देख तेरी‌ ना‌ आये ऐसा‌ दुनियां का कोई ख्वाब नहीं देख तेरा लिबास ना‌ डोले ऐसा मजबूत मेरा इमान नहीं अगर मिली किसी दिन यों ही भूल ना जाऊं खुद को कहीं होंठ तेरे गुलाब जैसे मेरे सीने में दफन सुंदर अरमानों जैसे लगे देख तेरी जुल्फें ऐसे कोई जलजला मेरे दिल में आयेगा जैसे अगर कहीं डूबने लग जाऊं‌ इस जलजले में पुकार लेना एक बार नाम मेरा तेरे होंठो से तैर लूंगा मैं भी जलजलें में तिनकों के जैसे तिनकों  की इस संगत में भूल ना जाऊं खुद को कहीं

परियों का प्यार

जमीन पर दो परियां मिली मिलकर दोनों खूब खिली सौंदर्य की दुनिया को एक नई मिसाल मिली। जब दोनों की आत्मा मिली सौंदर्य को एक महक मिली दोनों का देख‌ अपार स्नेह बाकी दुनिया लागे जा ली।।

जादू

लोग पूछते हैं जादू क्या होता है शायद उन्होंने कभी देखा नहीं तुझे खुली आंखों से वो देखते सपने रातों को नींद फिर ना सूझे

जूम मीटिंग पर अल्फाज

कोविड की विपदा में हम हैं सही मिलन पर      आज तक हमने ना      पाया ऐसा अवसर अद्भुत      पहली बार मिलकर यहां      मन हो रहा गदगद दृष्टि केंद्रित हो गई है आप के ललाटों पर       कुछ आज आए हैं       बाकी अगली बार       उम्र भर यूं ही हम       जोड़े रखेंगे तार बढ़ गया है खून पाव भर मिलकर आज जूम पर

मेरी मुश्किल

मैंने लिखी शायरी उसने कहा कुछ खास नहीं वह है ही इतनी सुंदर कि मेरे पास अल्फाज नहीं और वो इतनी मासूम कि समझे मेरे जज्बात नहीं।।

स्वयं को भूल रहे हैं

          हम स्वयं को भूल रहे हैं।      रोजगार के लिए      दर-दर भटक रहे हैं      रोजगार है कि खुद ही      बेरोजगार हो रहे हैं हम अनजानी सी अंधी दौड़ लगा रहे हैं।      हमारी आवश्यकताएं      बकासुर बन गई हैं      चींटी की तरह      पंख लगाकर उड़ रही हैं आशाओं के मार्ग पर अंधेरे सो रहे हैं।      पीछे गांव में ना जोत बची      ना वह संदली भोर है      शहरों की भीड़ भाड़ में      पैर रखने को ना ठौर है इस छोर से उस छोर बस लाचारी ढो रहे हैं

"सत्कार" के वाशिंदे

चूरु कभी चूरु ही नहीं था यह मेरे लिए एक तीर्थ स्थल था जहां "सत्कार" एक आवास था वहां सद्गुणों का वास था भूख के समय भोजन-पानी रात्रि को प्रवास होता था ज्ञान की बातें, हास्य व्यंग्य और माखन मिश्री खास था चिंताओं का पिटारा लेकर जाता मैं उदास - उदास था गुरु, गार्जियन व अनुज भ्राताओं का स्नेह पाकर मिलता नया उजास था सारी मुश्किलें भेद कर पहन लेता नया लिबास था छोटी- छोटी सी खुशियों के बड़े-बड़े पंख लगते थे स्कूटर की खरीद पर भी कार के सपने होते थे जब सारे सपने साकार हुए गुरुजी भी शहर से पार हुए वक्त ने ऐसा खेल दिखाया सपने भी नौ दो ग्यारह हुए।

मन में है त्योंहार

रक्षाबंधन पर बहना आई लाई हर्ष अपार देख उसे नैनों में फूट पड़ी फुहार मिलना - बिछुड़ना तन से है मन का सेतु है साकार                   तब तक मन में है त्योंहार। माथे पर तिलक लगाया दाएं हाथ पर बांधा धागा मुंह में जब मिठास थमाया तब मेरा अंतस्तल जागा देख तुझे जब बचपन लगाए पुकार                   तब तक मन में है त्योंहार

चाबड़ी (रेगिस्तान की दूब)

चाबड़ी सावन में फिर खिल पड़ी जैसे सूने आंगन में दुल्हन खड़ी आज तक ना तेरा देखा बीज फिर भी तू हाजिर हर तीज धोरों की तू ढकती काया तेरी कोमलता ने सबको लुभाया जितना ज्यादा तुझको उखाड़ा उतना बड़ा तूने बनाया अखाड़ा अद्भुत है तेरे तन पर जंग छिड़ी फिर भी तू खिल खिल पड़ी। रेगिस्तान की तू है दूब तेरी बहादुरी है बड़ी खूब धोरों पर तो तू ही जूझे सहे जीवों के वार अबूझे पशुओं का तू उत्तम चारा आदम का मन तूने संवारा तेरा स्पर्श मन करे उजियारा जीवन है तेरा पूरा उपकारा मर कर भी तू स्कर्बर  बनती बर्तनों का मैल हरती अच्छाई की ऐसी छाप छोड़ी दूजी मिसालें मिले हैं थोड़ी सावन में तू सरस-सरस खड़ी जैसे सूने आंगन दुल्हन खड़ी।