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Showing posts from October, 2019

पतझड़ में रीयूनियन

आओ दोस्तों कुरुक्षेत्र बनाएं कुछ कोलाज ख्याल नये-पुरानों का कुछ यों हो हमारी मुलाकात देख हरे हो जाएं पतझड़ के पात। तारीख है तीस नवंबर भूल जाएं इस दिन सब आडंबर लोटें फिर से पुरानी यादों में उन्हीं पुरानी कोरिडोरों में और खुले थिएटर के ख्यालों में फिर से खो जायें सिंघानिया के सुरों में और अश्विन बांगा के साजों में दोस्तों की महफिल हो और सुरीली हो जाए समां‌ पलों में नाचने लगें फिर से सपने युद्धि और विशू के पैमानों में नवनीत और के पी भी शायद ढल जाएं इन्हीं रंगों में आऔ दोस्तों कुरुक्षेत्र बनाएं कुछ कोलाज ख्याल नए पुरानों का कुछ यों हो हमारी मुलाकात देखे हरे हो जाएं पतझड़ के पात। कुछ चर्चा हो चार्ली की मुंबई की कुछ अनिल नेगी के अल्हड़ की कुछ कपिल कनोडिया के साहस की कुछ अनिल बग्गा के हौंसले की कुछ तुषार , जगोटा के डॉलर की कुछ मनीष के स्वभाव यूनीपोलर की कुछ भुवनेश की शायरी और हेल्पिंग नेचर की कुछ संगीता की दरियादिली की कुछ ज्योति की ज्ञान ज्योति की तो कुछ सुप्रिया के माधुर्य की आओ दोस्तों कुरुक्षेत्र बनाएं कुछ कोलाज ख्याल नए पुरानों का कुछ यों हो हमारी मुलाकात

यार अनोखा, दिल का चोखा

अनिल नेगी नमकीन मैगी बड़ा कर्म योगी दिखाए और्गी(orgy) निकाले तेल हाई कृष्ण कन्हाई मिलो इससे तो लगे सगा भाई पिये वाइन खाए वेज-नॉनवेजवा देखो इह है रामनगर वाला बच्चुआ कभी दिखाइए सन्नी कभी दिखाइए मुन्नी लगा दे आग इसकी लगे ना अठन्नी कभी दिखाए योग कभी दिखाए भोग सब जगह हैं इसके चहेते लोग फोटो खींचे बागां फिर भी जाए क्लबां ऐसी शख्सियत पाना है दुर्लभ शुक्रिया भगवान का यह हमें प्राप्त है सहज सुलभ जन्मदिन इसका लगे कोई बड़ा त्यौहार अनिल है हमारा बहुमूल्य उपहार। जन्मदिन की बधाई अनिल

कूलर के बहाने

आज मैंने वक्त का इशारा समझा और कूलर साफ किया कूलर के भी हत्थे मेरे हाथ में आए दर्द उसने भी अपना साझा किया बोला चलता हूं इसलिए कि डर है मेरी जगह कोई ऐ .सी. ना ले ले वरना शरीर मेरा जर्जर है तू अपनी भी टोह ले ले बड़बड़ करता हूं ताकि तू ना भूले तेरे बच्चे तो हैं हम हैं बिल्कुल अकेले पानी का नमक पी-पीकर हो गए शरीर में दुनिया भर के छेद हो सका तो करूंगा फिर सेवा वरना होगा मेरा यह आखिरी खेद देख रहा हूं तू भी मेरी तरह डरता है चलने से इसीलिए तो कतराता है दोस्तों की महफिल में जाने से कुछ दोस्त अभी भी ना वाकिफ होंगे उम्र की हकीकत से पर तुम घुल मिल लेना समय रहते समय को कहां मतलब है तुम्हारी अकीदत से।

एक सुरूर

बस वह , वह है कोई रिश्ता नहीं है कोई किस्सा नहीं‌ है उसकी शोखियां ही शोखियां हैं वह ऐसी कि अपने ही सुरूर में मस्त उसकी रेशम सी जुल्फों से हो गए हम पस्त गुलाब की पंखुड़ियों से औंष्ठ चीते की धारियों सा आंचल मचा दे मन में हलचल आंखों की गहराई जिसकी पार ना कोई पाई कोई डुबकी लगाये उनमें या डूब जाए उनमें वह मुड़कर देखने वाली नहीं बयां करना शिष्टाचार के खिलाफ फासला इतना कि पार पाने का खासा खौफ ठिकाना भी उसका ऐसा शहर जहां हर आदमी कंधे पर सलीब उठाए गुजारता है हर पहर फिर भी वह,‌वह‌ है।

रतनगढ:मेरे बचपन का शहर

ओ मेरे बचपन के शहर तू रहा मेरा जवानी का घर तेरी सर्पिली स्टेशन रोड जो अभी बता देगी कितना मैं जीवन में चला पैदल और कितना था मेरा बाल स्वावलंबन इस रोड़ पर आगे कितना सुंदर रामचंद्र गनेड़ीवाला मंदिर जिसकी संगमरमर की जड़ाई मेरे बाल मन को सदा ही भायी इसका‌ प्यारा पादप उद्यान देता पर्यावरण का विशेष भान हवाओं फिर से दो एक ऐसा झोंका जिससे मिल जाये एक महक का मौका। चोपड़ आकृति पर बसा यह शहर जिसके हर छोर पर सैलानी स्थल उत्तर में विशाल रामचंद्र पार्क जिससे सटी हनुमान व्यामशाला कभी होता था यहां अखाड़ा निराला पश्चिम में हनुमान पार्क जिसमें तरणताल विशाल दक्षिण में मंदिर गनेड़ीवाला संगमरमर जड़ाई की अद्भुत कला पूर्व में मेहंदीपुर बालाजी जिसके महंत हैं लालजी मध्य में सफेद घंटाघर सेठ हरदेव दास जालान वाला जिसमें गोल वाचनालय निराला ऐसा मेरा शहर है बचपन वाला। बिजली का यह बड़ा ठिकाना 33kv से 400kv तक का ग्रिड हर किसी के लिए ना‌ अंजाना टावर ज्यादा‌ आबादी कम रोशनी की प्यारी चमाचम बिजली के हर ऑफिस में गलाई थी मैंने अपनी जवानी खोई खोई सी परेशान किसी भी फाइल पर आज भी लिखावट मे

Law & Justice

Natural law of Justice Cause invites decision Law of politics Decision invites cause Law of happy married life Avoid decision, fulfill cause Law of religion No cause, no decision Everything is a false perception Law of poetry Go through every cause & every decision Present into words as a fiction