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Showing posts from September, 2019

८४ का ओजस्वी मूछों वाला

राजेश है बिजली वाला जिसका फोन एक रिंग में उठता है मेरी भी धारणा यही बन गई शायद रिंग में भी मीटर चलता है राजेश कैथल से आता है जो मेरे रास्ते में पड़ता है ज्यादा कुछ बोल नहीं सकता राजेश मूछों वाला बंदा है मर्द की मूछें बैल के सींग प्रभाव जमाते दुगुना चाहे पृथ्वी चाहे प्रताप या हो भील करणा एक बात तय है इनसे सामंजस्य से ही रहना वरना अंडर फ्रीक्वेंसी पर ट्रिप पड़ेगा होना तेरा जन्मदिन विश्वकर्मा वाला इसीलिए तू है अद्भुत प्रतिभा और सृजनशीलता वाला अब बधाई बहुत हुई कर कोई 'रेक' वाला उचाला तू नाचे गाये झूमे तो हमे याद आये मधुशाला या फिर कोई सीन हॉस्टल की छत वाला।।

एक अभियंता

अभियंता का चिंतन ड्राइंग पर आता ड्राइंग से डिजाइन बनाता डिजाइन जब फील्ड पर आती इसमें मानवता की कड़ी जुड़ती यहीं से अभियंता की प्राथमिकताएं शुरू होती। अभियंता एक सच्चा धर्मनिरपेक्ष उसका उद्देश्य मानवता सापेक्ष चाहे हो अमेरिका , चाहे ईरान मापन उसका सब जगह समान यही है उसका धर्म - ईमान। अभियंता का जुनून धरती, आकाश और सागर देखते ही देखते उसने सब जगह बना ली डगर वास्तविकताएं उससे छुप नहीं सकती पल भर यहीं से वह बन जाता एक मशीन भर चेतना में शामिल हो जाती है दक्षता हर खाना ,पीना ,रहना इनसे ना कोई परहेज पहाड़- मैदान, समुद्र बन जाता है उसका घर शाकाहारी , मांसाहारी जो मिल जाए उस पर निर्भर अभियंता है पूरा वैश्विक जहां मिले रुचिकर काम वहीं बन जाता नागरिक

हिन्दी

'ह' से है रंग हरा 'ह' से हैं सब हर्षित 'ह' का ही होता चिंतन 'ह' से ही है ये जीवन आधे' न' से चार ज्ञानेंद्रियां नाक, कान, आंख और रसना ऐसी ही है हमारी रचना 'द' में भाव है देने का 'द' ही प्रतीक है दया का 'द' में समाया हर एक दिवस 'द' ही है दिवस का दीपक जिसकी मात्राएं चांद और सूरज ऐसी प्यारी हिंदी शब्द की सूरत जिसकी सीमाएं हैं सीधी रेखाएं ऐसी हैं हिंदी की उपमाएं।।

4 वर्ष

जब बादल गरजें उमड़ - घुमड़ बरसात में लगता है तुम्हीं हो जब दोस्त मिले और चेहरे खिलें उस मिलाप की उमंग तुम्हीं हो जब किसी बुजुर्ग को सहारा कोई नौजवान दे उस सहारे की प्रेरणा लगता है तुम्हीं हो कोई बच्चा मां के आंचल में सिमटे उस बच्चे का विश्वास तुम्हीं हो रात आए और तारे छायें वो रोशन रैना तुम्हीं हो उषा आए और लाली लाये उस लाली में लगता है तुम्हीं हो कलम लेकर लिखने बैठूं जो शब्द उतरें वह तुम्हीं हो जब तक लिखना जारी है तू कहां मुझसे न्यारी है।।