साहित्य के बाजारीकरण से दूर व्यर्थ भीड़-भाड़ रहित विशुद्ध साहित्य चर्चा सहित कल जयपुर में एक साहित्य मेला देखा नाम समानांतर साहित्य उत्सव पूरा भारतीय साहित्य का पोषक भीष्म साहनी, रांगेय राघव,रजिया, कन्हैया लाल सेठिया का उपासक खाना खजाना और किताबखाना देख अंतर्मन हर्षित हुआ ये साहित्य संगम देख। एक बजे भीष्म साहनी मंच पर एक ऐसा संवाद सुना जिसका इस दौर में कभी भी अनुमान न था राजनीति भी ठग विद्या है ऐसा कभी भान न था परतें दर परतें खोलीं राजनीति के कारनामों की किसानों, वंचितों, दलितों पर राजनीति के आघातों की शिक्षण और खेल संस्थानों के राजनीतिक अपहरणों की धन्य अन्तर्मन हुआ ऐसा पर्दाफाश सुना । मूर्धन्य पत्रकार नारायण बारेठ ने चर्चा का ऐसा संयोजन किया नेहरू से नरेंद्र युग तक पूरा खाका खींच दिया कार्टूनिस्ट शंकर से लेकर गौरी लंकेश तक का निराला सफर बता दिया इशारों ही इशारों में प्रजातंत्र के चौथे पिलर को चौथा किलर बता दिया हम भी संयोजक से इतना कुछ प्रभावित हुए एक चित्र हमने भी उनके संग उतरा लिया खुशी की सीमाएं न थी ऐसी अद्भुत शैली थी।