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Showing posts from January, 2019

समानांतर साहित्य उत्सव

साहित्य के बाजारीकरण से दूर व्यर्थ भीड़-भाड़ रहित विशुद्ध साहित्य चर्चा सहित कल जयपुर में एक साहित्य मेला देखा नाम समानांतर साहित्य उत्सव पूरा भारतीय साहित्य का पोषक भीष्म साहनी, रांगेय राघव,रजिया, कन्हैया लाल सेठिया का उपासक खाना खजाना और किताबखाना देख अंतर्मन हर्षित हुआ ये साहित्य संगम देख। एक बजे भीष्म साहनी मंच पर एक ऐसा संवाद सुना जिसका इस दौर में कभी भी अनुमान न था राजनीति भी ठग विद्या है ऐसा कभी भान न था परतें दर परतें खोलीं राजनीति के कारनामों की किसानों, वंचितों, दलितों पर राजनीति के आघातों की शिक्षण और खेल संस्थानों के राजनीतिक अपहरणों की धन्य अन्तर्मन हुआ ऐसा पर्दाफाश सुना । मूर्धन्य पत्रकार नारायण बारेठ ने चर्चा का ऐसा संयोजन किया नेहरू से नरेंद्र युग तक पूरा खाका खींच दिया कार्टूनिस्ट शंकर से लेकर गौरी लंकेश तक का निराला सफर बता दिया इशारों ही इशारों में प्रजातंत्र के चौथे पिलर को चौथा किलर बता दिया हम भी संयोजक से इतना कुछ प्रभावित हुए एक चित्र हमने भी उनके संग उतरा लिया खुशी की सीमाएं न थी ऐसी अद्भुत शैली थी।

आ मेरे धोरे

आ मेरे धोरे गर्मी में खाटा- राबड़ी खूब पिलाऊं गहरी नींद का आनंद कराऊं लंच में हरी सांगरी का साग फिर फोगला का रायता‌‌ खिलाऊं बाजरा का रोट चखाऊं सांय मोठ बाजरा खीच खिलाऊं। आ मेरे धोरे बरसात में भूरी-भूरी रेत में चित्र बनवाऊं सोंधी मिट्टी की खुशबू दिलाऊं गुड़वानी का चूरमा खिलाऊं कैर-सांगरी और फोफलिया साग का अद्भुत जायका दिलाऊं हल में जुते ऊंट दिखाऊं। आ मेरे धोरे शिशिर में काकड़,बेर,मतीरे का कातिसरा कराऊं बाजरे के सीटे(बाली) चबवाऊं। आ‌ मेरे ध़ोरे सर्दी में भैंस दूध का दही खिलाऊं काचर, फली की सब्जी खिलाऊं दाल बाटी चूरमा को भोग लगवाऊं त्योहार- मेलों‌ की सैर कराऊं विवाहों के रिवाज दिखाऊं घूमर डांस में‌ ठुमके लगवाऊं। आ मेरे धोरे बसंत में होली के बहाने मद में झूमाऊं गणगौर मेले की सैर कराऊं खीर -ढोकला खूब खिलाऊं कृष्ण मृग अभयारण्य दिखाऊं।

पतझड़

पतझड़ में फूल खिलते नहीं प्रौढ़ावस्था में दिल दोबारा मिलते नहीं। ना सपनों का अंबार होता है ना जवानी का ताव होता है बस बुझी - बुझी आंखें होती हैं लरजते होंठ और आने वाली कमजोरी का भान होता है ऐसे में कोई कैसे साथ हो सकता है यह तो कुछ यूं ही हालात बयां करते - करते दिल ख्वाबों का बगीचा देखता है पर सच यही है पतझड़ में फूल खिलते नहीं प्रौढ़ावस्था में दिल दोबारा मिलते नहीं। जुड़ाव का समय गुजर चुका है अब तो दांत,बाल,नाखून झड़ रहे हैं ना चाहते हुए भी कुछ आदतें बिगड़ रही हैं शरीर रूपी भूमि में रसायन भरने की तैयारी है ऐसे में कहां अकार्बनिक खेती की बारी है दोस्त भी अब बाग नहीं सैर की बात करते हैं ऐसे में कौन फूलों वाली पास आती है सच यही है पतझड़ में फूल खिलते नहीं प्रौढ़ावस्था में दिल दोबारा मिलते नहीं। बस इल्तजा इतनी है सैर में मिल जाए कोई अमृता तो हो जाए दो - चार कविता और सफर बन जाए आसान अंतर्मन में मचे ना घमासान बनाऊं चाय उसके लिए रोटी का कहां है अब गुमान इस रोजी-रोटी के खेल में कभी - कभी ख्वाब हो जाते हैं जवां पर सच यही है पतझड़ में फूल खिलते नहीं प्रौढ़ावस्था म

World Hindi Day

Today is world Hindi Day. I devote a little thought on this topic with the beautiful Lines of Allama Iqbal "हिंदी हैं हम हिंदुस्तान हमारा" And भारतेंदु हरिश्चंद्र की पंक्ति " निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल"। The World Hindi Day is being celebrated on January 10th marking the anniversary of the first World Hindi conference which was organised on 10th January 1975 and Was chaired by the then PM Smt. Indira Gandhi. The purpose of World Hindi Day is to promote the Hindi on the world Arena. Officially the World Hindi Day Was commenced on 10th January 2006 by the then PM Dr.Manmohan Singh. I am writing some lines about the beauty and nature of the Hindi language on this auspicious occasion. हिंदी में वही लिखा जाता , जो जुबान से बोला जाता। हिंदी में भाव है भारतीयता का जैसे पट्टी- बरते का या साड़ी - पगड़ी का या फिर सब्जी- रोटी का। हिंदी में भाव है खेलों का जैसे होकी-छड़ी का या चील-झपट्टे का या फिर रस्सा-कशी का। हिंदी में भाव है संगीत का जैसे ढोल - ता

Vishu:My new year host 2019.

His face The sight brings a pride to you His hands You wish you can intertwine them with yours His heart It reminds you of a gem His words These brings pleasure, patience and purity to you His mind It fascinates you His soul You can love it for eternity.

Ker-Sangri Sabji

Ker Sangri is a traditional Rajasthani delicacy made from dried berries referred to as Ker and long beans called Sangri.  These Ker and Sangri are basically grown in Marwad region, typically desert area during winters. After which they are dried and stocked to be used for the year throughout. This is actually a homely vegetable and is easy to prepare, so is handy as a tasty alternative for regular green vegetables. It is easy to cook and leaves an enduring taste in your mouth. INGREDIENTS: 1 cup Sangri  ¼ cup Ker 2 tbsp mustard oil 1 tsp cumin seeds seeds 2-3 dried whole red chillies A pinch of asafoetida (hing) 1 tsp turmeric powder 1 ½ tsp Kashmiri red chilli powder 2 tsp coriander powder 1 tsp dried mango powder/ amchur 1 ½ tsp salt/as per taste Finely chopped coriander leaves. METHOD: Soak the Ker and Sangri together for 2-3 hours. 2. When it soaks properly cook it in the pressure cooker by adding water and salt 3. Pressure cook it for 4-5 whistles so that it doesn