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Showing posts from March, 2025

कवि के‌ हाथ

फिलीस्तीनी और यूक्रेनी पिस रहे हैं युद्ध की चक्की रूसी और इजराइली भी होंगे दु:खी यह बात है पक्की मानवता को रख सर्वोपरि कूटनीति से बने कोई काम कूटनीति है समझ निराली यह नहीं है व्यवहार मवाली शान्ति में छिपी खुशहाली शान्ति है जीवन की लाली कविता में लिख भेजी है मैंने अपने मन की बात ज्यादा लिखी व्यथा कहलाए इतना ही कविता दिवस पर लिखना एक कवि के हाथ।।

हमारा टोटका

सुनीता विलियम्स और बुच मोर आज पहुंच गये अपनी ठौर देख नजारा चमत्कार सा आज नींद उड़ गई सबकी भौर ज्यों ही सुनीता नीचे आई शेयर मार्केट में भी जान आई हमारे अपने हैं टोटके अब होगी डूबत भरपाई।।

Holi Haikus

Roads appear lying coloured gardens And without any vehicle on them For today it Holi happens Some people are hidden in homes Scared of being painted  But painters may appear from within homes Cheeks are red & hairs dead On entering ones own street  Dogs bark and look afraid

बाहर आये दुविधा

श्याम वर्ण सांवरा गौर वर्ण राधा होली का त्योहार  हरे सबकी बाधा।। रंगों के बहाने सही  बाहर आये दुविधा  साखों पे आये हैं पल्लव देख खिल रही वसुधा। बड़ों की आशीष से  कोई रहे ना अछूता भावों में जो रंग है  भावों से ही बरसता । भावों का रंग जो छूटा दुबारा‌ नहीं चढ़ता भावों के बिना किसी  का कुनबा नहीं बढ़ता।। हैप्पी होली।।

खोफ इतना भी ना हो

खोफ इतना भी ना हो सच्चाई ना कह सकें। जंगल में भी भागने का मौका मिलता है इन्सानों की बंदिशें कितनी तंग हैं साथ रहते- रहते भी लोग असंग हैं। अब यह व्यापार हो गया है मैं बोलूं , वही तू बोले तेरे पीछे नहीं तो पड़े मेरे मलंग हैं। खाने की बात पर मच रहा हुड़दंग है कोशिश नहीं कर सकते जानने की खुद हुड़दंगी कितने बदरंग हैं। लिखने वाले भी अब तो बच रहे सीधी सपाट से शायद वो भी कहीं ना कहीं पंचरंग हैं। किताबें भी अब हैं फैंसी किंडल पर पढ़ें तो ज्ञानी हैं नहीं तो तुझमें कहां उमंग है। पहनावा बदनाम हो गया जैसे त्यौहार होली, लार खुद के टपके बदनाम हो रही भंग‌ है। रिश्तों की क्या बात करें साथ बैठना छुटा, मोबाइल का है संग देखते ही देखते रिश्तों को लगी जंग‌ है। टिटनेस इसका फैलेगा जिसका नहीं इंजेक्शन बातों में अब नहीं लगता किसी का मन इसीलिए मिडिया ने घड़ा शब्द कंजेशन है। खोफ इतना भी ना हो सच्चाई ना कह सकें सोचना तो पड़ता है ताकि दुविधा में भी जी सकें।।

महिला दिवस

कवि का भाव सौंदर्य की मिसाल  करूणामय। ममत्व मूर्त  संघर्ष की सूरत सुलहमय। मिले तो धीर बिगड़े शमशीर तेज तासीर। घर की धूरी  हर जगह पूरी रखे सबूरी।  झुके यम भी  जब बने सावित्री निभाये मैत्री। बाहर जीत अपनों से हारती नारी भारती। बदला वक्त  बन रही सशक्त  बेड़ी हैं मुक्त। स्वच्छ फिजा में  स्वेच्छा से हों फैसले  दिशा बदले। # अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 

दाल-बाटी चूरमा

भानीपुरा में खाता था जिनके हाथ की बनी दाल-बाटी चूरमा लगता था जी रहा हूं जयपुर में कल मिले जब जयपुर में लगा चमक है गुलाबी शहर की फिजाओं में दाल-बाटी चूरमा तो छूट गया गांवों में।।