खोफ इतना भी ना हो सच्चाई ना कह सकें। जंगल में भी भागने का मौका मिलता है इन्सानों की बंदिशें कितनी तंग हैं साथ रहते- रहते भी लोग असंग हैं। अब यह व्यापार हो गया है मैं बोलूं , वही तू बोले तेरे पीछे नहीं तो पड़े मेरे मलंग हैं। खाने की बात पर मच रहा हुड़दंग है कोशिश नहीं कर सकते जानने की खुद हुड़दंगी कितने बदरंग हैं। लिखने वाले भी अब तो बच रहे सीधी सपाट से शायद वो भी कहीं ना कहीं पंचरंग हैं। किताबें भी अब हैं फैंसी किंडल पर पढ़ें तो ज्ञानी हैं नहीं तो तुझमें कहां उमंग है। पहनावा बदनाम हो गया जैसे त्यौहार होली, लार खुद के टपके बदनाम हो रही भंग है। रिश्तों की क्या बात करें साथ बैठना छुटा, मोबाइल का है संग देखते ही देखते रिश्तों को लगी जंग है। टिटनेस इसका फैलेगा जिसका नहीं इंजेक्शन बातों में अब नहीं लगता किसी का मन इसीलिए मिडिया ने घड़ा शब्द कंजेशन है। खोफ इतना भी ना हो सच्चाई ना कह सकें सोचना तो पड़ता है ताकि दुविधा में भी जी सकें।।