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Showing posts from March, 2021

रंगों का महत्व

रंगों‌‌ पर यह पानी‌ की‌ बोछार फिर भीनी- भीनी सुगन्ध और गलबहियों के हार ज्यों- ज्यों सीने‌ लगे अपनों से त्यों- त्यों स्वच्छ भये मन विकार।।

होली का जाम

होली पर चारों ओर चंग हैं गीतों में जवानी की तरंग है बुढा या जवान हर कोई नवरंग है मौसम में भरी अद्भुत उमंग है            यह तो जाम है जो आज भी अपने ही आयाम है चांद भी पूरा है तारों की चमक में तारिकायें लग रही स्वर्ण घट की सुरा‌ हैं ऐसे में होली तो बस बहाना है यह योवन की कुश्ती नूरा है             यह तो जाम है जो आज भी देता सही पयाम है कई हृदय तंग हैं बाहर उमंग, भीतर एक जंग है जीवन बदरंग है सिर्फ सपनों में ही रंग है            यह तो होली का जाम है जहां आशा कायम है

फोग

बसंत की आभा है न्यारी जहां फलती वनस्पति बिन तोय 'फोग' जैसा मरूधर योगी भी इस मौसम फलित होय।।

संगीत सुनहरे

कविता वक्त का रोचक बखान है कविता हर भाषा की जान है कविता कल्पना की उड़ान है तो कवि हृदय का आख्यान है            कविता कभी हरित क्रांति           तो कभी श्वेत क्रांति है           कभी बूटों की दुखान्तिका          कभी कोरोना से आतंकिता है समय चाहे कैसा भी हो यह उससे आगे रहती है क्योंकि दुनिया की हकीकत कल्पना से ही प्रेरित होती है           कविता में बड़ी भाषाएं सागर हैं           बड़े कवि ज्ञान का पारावार हैं          तो छोटी भाषाएं नदियां हैं         और छोटे कवि उनकी लहरें हैं         जिन के संगीत सुनहरे हैं।।

A new broom sweeps well

This was the subject Manjula sharma madam gave me in a tutorial class which I remember till date. She knew well that the broom will sweep well only when the sweeper is well skilled. Only new broom does not do that and so she used to go to every seat to check the assignments and to understand our tight handness in english( matlab vo jan ne ki koshik karti thi ki ham kitne paani me hain aur sudhar ki kya gunjayas ha). There I remember two professors of English in RECK one Mr KB Singh, who was a perspiring( matlab mere pasine nikalte the samane jane se) personality for me to face . He used to teach the phonetics and talked about the dictionary of "Oxford advanced learners" that never came to my head and I used to stare at him like a goat sees towards falling leaves from a tree in hope of satisfying the hunger but which never fruition. [ ] Another was Prof Manjula sharma who was an inspiring personality to the students who basically belonged to hindi medium and she knew our thi

खीप और खीपोली की सब्जी

खीप‌ और खीपोली की सब्जी खीप - बिना खीप किसड़ो झूंप खीप एक रेगिस्तान में पाया जाने वाला 3- 4 फीट ऊंचा पौधा होता है। आज से 40- 50 साल पहले तक रेगिस्तान के ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक घर में खीप से छाया हुआ‌ झोंपड़ा अवश्य होता था। इस पौधे में मिट्टी को बांधने की क्षमता होती है। रेगिस्तान के ऊंचे से ऊंचे टीले पर खीप जरूर उगी होती थी। खीप से ही रस्सी (जिसे गुंछला कहते थे) बनाकर झोंपड़ों की छावनी की जाती थी। हरी खीप को ऊंट बड़ी चाव से खाता है इसलिए जब खेती का काम नहीं होता था तो ऊंटों को पैरों में बेड़ी लगाकर खीप चरने के लिए छोड़ देते थे और शाम को वापस ले आते थे।वक्त के साथ जैसे झोंपड़े गायब हुए वैसे ही खीप भी गायब होती जा रही है। हमारे खेत में हजारों खीप के पौधे हुआ करते थे लेकिन परसों देखा तो सिर्फ खेत की मेड़ पर ही 4-5 पौधे बचे हैं , वह भी मुरझाए हुए से क्योंकि ट्रैक्टर की जुताई से खीप जड़ सहित निकल जाती है और खत्म होती जा रही है। मार्च के महीने में खीप के पौधे में फलियां लगती हैं जिन्हे खीपोली कहते हैं। खीपोली की सब्जी बहुत ही स्वादिष्ट और‌ वात रोगों व घुटनों में दर्द में लाभकारी ह

शब्दों का जादूगर

शब्दों का जादूगर बोली में सम्मोहन           चेहरा खुश मिजाज सीखने में विद्यार्थी हाजिर जवाबी में महारथी           लेखन में ऊंची परवाज़ राजनीति में मिसाल छवि में विशाल           ‌‌ प्रभावी आवाज वक्त से आगे चाहे तकनीकी या हो ऐसेशरी           वर्ताव में सहज जन्मतिथि नौ मार्च महिना बसंत सा सुरूर इसीलिये नाम थरूर           जिस पर मुझे है गुरूर