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Showing posts from December, 2020

कर्म प्रकाशिनी गीता

रोज साझा करते हैं बातें भौतिकता वाली चलो आज एक दिन करें बातें कर्मों के सार वाली।      जब - जब मिलते हैं      और जो - जो मिलते हैं      बातें सिर्फ करते हैं       'मैं' हूं वाली गीत...

बोर्डर(सीमा)

बोर्डर कहता मुझ पर कभी‌ ठहरना मत वरना होगा विप्लव घर के बॉर्डर नजरें जो ठहरे तब पड़ोसियों में उपद्रव। देश के बोर्डर सेना टिके तब मानवता घुटने टेके राजधानी बॉर्डर किसान ड...

किसान आंदोलन

सरकारें आती हैं सब्सिडी, लोन, बिजली से भरमाती हैं कर्ज के परिणामों से अनभिज्ञ!      किसान हंसता है      कुछ नकली हंसी      कुछ राहत की मदहोशी यह देख सरकार पैंतरा बदलती है अना...

बचपन की यादें

        मेरा बचपन सीधा था         बीता गोरे धोरों में। सूरज उगते खेत पहुंचते घर आते थे तारों में खेतों में मोर-पपीहे बोलते पशु चरते थे कतारों में      घरवालों से खूब डरता    ...

किसानों की व्यथा

उतार आए हैं सिर से सारे ही बोझ बैठे हैं सीमा पर चाहे पुलिस आये या फौज।        कभी मौसम ने लूटा        कभी महामारी        हम सहते रहे         सारी दुश्वारी दु:खों की कतार हमने दे...

दिसंबर की धूप

दिसंबर की धूप लगती दुल्हन का रूप        रहती कोहरे के        घुंघट में सिमटी सी       निकलती लंच के समय         शरमाती सी सरकती ऐसे जैसे मेहंदी वाले पांव सरूप        देती है ब...