साल दो हजार उन्नीस शुरू हुआ विशू के संग खत्म हुआ परिवार संग तपते हुए अलाव व्यक्त करते हुए भावनाओं के सैलाब बीच-बीच में इस वर्ष ने हालत कर दी तंग जब जब छीनी इसने उमंग 22 मार्च, 17 जून, 18 दिसंबर दिवस थे सितमगर छोड़ गए कर छलनी जिगर मेरा विषमगर सताईस जुलाई को उदासी छाई अजीज एस के शर्मा की अब ना भरपाई जीवन भूल-भुलैया है अदृश्य केवट की नैया है समझना दुरुह है स्वीकारना बुद्धिमानी है भावुक होना बेमानी है खड़े रहा डटकर इसलिए दोस्त रहे सटकर जनवरी नारायण बारेठ के नाम दिसंबर आशु लाल चौधरी के धाम नवंबर रैकेर्स की धूम बन गए दो हजार उन्नीस की लूम जो रहे साथ सदा उन का तहे दिल से शुक्रिया जिन्होंने पेश की परेशानियां उनका भी तहे दिल से शुक्रिया उन्होंने ही बनाई नई नई कहानियां जिन से ही कोई निकलेंगी नई राहों की तैयारियां नया साल मुबारक हो उन्नीस को छोड़ दो पीछे बीस ना रहे इक्कीस से नीचे