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Showing posts from June, 2018

२९ जून:इक शमां ने‌ समां बांधा

आज फिर पुराना एल्बम खोला , ग्रामीण मकान, मेड़ी,नेड़ी सब सामने आये, कुछ साथी रविन्द्र,रामकुमार और बजरंग से ख्यालों में आये, भाटिया साहब कंघी करते यों ही जवां से मुस्काये। उनक...

किसान समस्यायें : हरित गुत्थी

50% आबादी, अन्नदाता देश की, 18% भागीदारी, अर्थव्यवस्था की। खाना छाछ,प्याज व रोटी, पहनावा सूती कपड़ा व जूती। धंधा खेती , मौसमी जुआ, समझो इसे, खुद के लिए कुआं। छोटी जोत,कमज़ोर सिंचाई, बीज व खाद पर सूदखोर की मनचाही। अगर पहुंच गए खेत, रूठे इंद्रदेव फिर दसों पेस्ट के झंझट उस पर मौसमी झोला रोके फाल गर बच गए वहां तो कटाई में बारिश इतने जरख जबड़ों के बाद बाजार में लागत के आधे दाम यहां समझदारी आये न काम। किस्मत का मारा किसान जब सड़क पर आए, तो वह राजनीति का मोहरा कहलाए। भूखे-प्यासे खूब चिल्लाये, तब सरकारें आयोग बिठाये। भाई इसमें ना राजनीति ,ना नाटक यह सीधी पेट की लड़ाई की खटक। चार बजे सारा परिवार उठे, तब बच्चे और पशुधन भूख से बचें। इनको लागत पर 50% ज्यादा दो, नहीं तो दूसरा काम दो, जिसमें सामाजिक ,स्वास्थ्य सुरक्षा पक्की दो। या फिर कोई हुनर सिखाओ, और इनको रामदेव , रविशंकर बनाओ। जिम्मेदारों इनकी व्याकुलता समझो, कितना दुखद पानी के लिए गोली खाना, कभी कर्जे के कारण फांसी लगाना, और कभी सूखे के कारण पेशाब पीना। जब 2000 किसान रोज तजें खेती , कहां से आएगी तरकारी मीठी। यह द...