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शीत लहर का कहर

चूरू तो ठंडा भया चाले ठण्डी बाय खाओ बाजर की रोटियां लहसुन चटनी लगाय। जल्दी सिमटो बिस्तरां दिन में ही सब निपटाय जाना‌ अगर खुले में हाथ-पैर बार-२ तपाय। उगत में कोई दम नहीं छिपते डगमगाय चले है ' डांफर' निर्दयी कलेजे चुभ- चुभ जाय राखो दिन दस संभाल के ये हाड़ फिर सरसाय।।

नौकरी की तीसवीं वर्षगांठ

 अपेक्षित पद बढा, ना कद बढा सुकून बस इतना है, ना कोई मर्ज बढा दो हमदम छिन गये, दो नये मिल गये ऐ वक्त ना तेरा अब तक कोई कर्ज चढा तलाश रोटी की तब भी थी, आज भी है ये सिलसिला अब तक नहीं सिरे चढ़ा गमो का सिलसिला ना हो यदि शामिल किसने है यहां जिंदगी को ठीक से पढ़ा ला रख नया कोई सवाल आज पुराने सवालों का अब वो रूतबा‌‌ कहां।।

The opsis feeling

The opsis feeling

What I write doesn't give me the opsis feeling Also get published in books too doesn't do that But why I think like this  gives me the opsis feeling.

आश्विन की बारिश

ये आश्विन‌ की बारिस जैसे सोतेला‌ वारिस गड़ गड़ाये ज्यादा लाभ पहुचाये आधा बस इतना जरूर है सावधान करे ज्यादा।।

श्री भीमनाथजी सिद्ध‌ एक संस्था थे

श्री भीम नाथ सिद्ध एक कलम और बात के ही‌ धनी नहीं थे बल्कि एक संस्था थे ।आपका जन्म ग्राम बादड़िया तहसील सरदारशहर में हुआ। आपकी स्नातक तक की शिक्षा सरदारशहर कस्बे में ही हुई। उसके बाद आपने एलएलबी श्री डूंगर महाविद्यालय बीकानेर से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। एलएलबी के बाद आपने चूरू जिला मुख्यालय पर 1972 में वकाल के पेशे को अपनाया और लगभग 49 वर्ष इस पेशे में रहे और 2020 से लगातार बार एसोसिएशन सरदारशहर के अध्यक्ष पद पर आसीन थे।वकालत को‌‌ आपने सिर्फ पेशा ही नहीं सामाजिक दायित्व के तौर पर‌‌ लिया और हर समाज ,हर वर्ग के कार्य को पूरी निष्ठा से किया और जन-जन के हृदय में जगह बनाई। आप एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे, जो वकालत के साथ-साथ राजनीति में भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमेशा सक्रिय रहे। आप 1985 से 1990 तक मालसर ग्राम पंचायत के सरपंच और पंचायत समिति सरदारशहर के उपप्रधान रहे और इसके माध्यम से जन सामान्य की हर संभव मदद की।आप क्षेत्र के बड़े राजनीतिज्ञों के हमेशा से विश्वास पात्रों में रहे। चाहे वह पूर्व विधायक श्री हजारीमल जी सारण( जो उनके राजनीतिक गुरु भी थे) हों, या फ...

हिंदी है माथे की बिंदी

राजभाषा है हिंदी राजकाज इसमें होता है कम राष्ट्रभाषा है हिंदी पूरे राष्ट्र में‌ बोली यह जाती नहीं सांस्कृतिक सूत्र है हिंदी  पर आर्थिक आधारित हो गई संस्कृति पूरे देश‌‌ में‌ फिर भी जीवित है हिंदी क्योंकि हमारी आत्मा है यह एक दिन का उत्सव‌ नहीं है हिंदी हिंदुस्तान की प्रतीक है यह पढ लो कितने ही शास्त्र पर विश्व बंधुत्व केवल पढाती है हिंदी हिमालय सी‌ ऊंची तो गंगा सी‌ मधुर और रेगिस्तान ‌जैसी सहनशील है हिंदी लिखते होंगे अंग्रेजी बोलते ‌होंगे आंचलिक फिर भी हिंदुस्तान के माथे की‌ बिंदी है हिंदी।।