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मरवण का खिताब

कला छूती हृदय को विज्ञान मस्तिष्क के नाम जब हो हृदय बैठना कला साधे काम।।  सिद्ध गायकी करते आये कर अग्नि प्रणाम धर्म का ध्वज लिए घूमे चौखण्ड धाम।।  जीवत समाधियां लेकर रखा धर्म का मान फिर भी छुपे रहे जैसे पहेली गुमनाम।।  कोमल सिद्ध ने जब जीता मरवण का खिताब राजस्थानी संस्कृति  का दुनिया में बढ़ा रूवाब ना धर्म ध्वज ,ना चौखण्ड फेरी फिर भी दुनिया पहुंची आवाज।।