Skip to main content

Posts

Showing posts from May, 2021

समय के संकेत

देर से सोना देर से उठना रात में खटपट करते रहना है इशारा अब समय निकला अपना। स्वाद से ज्यादा पाचन का रोना सुबह दूध छोड़ छाछ का पीना सब्जियों में लौकी को तरजीह देना है इशारा अब समय निकला अपना। बेड(खाट) छोड़ तख्त अपनाना व्यायाम से इतर प्राणायाम को सराहना सिर के बालों का कम होना है इशारा अब समय निकला अपना। बच्चों का मन आपकी बातों में कम लगना चाल में गति से इतर सावधानी का शामिल होना मिलने वाले का तबीयत पर ही जोर देना है इशारा अब समय निकला अपना। दांतो के बीच अब जगह का होना घर में लौंग तेल का स्थाई ठिकाना एक आध दांत का साल में बिछुड़ जाना है इशारा अब समय निकला अपना। प्रकृति से डोर बांधना छोटी छोटी चीजों का मनन करना साथी बिछुड़े‌ अक्सर याद आना अतीत जब लगने लगे सुहाना विरोधियों का भी सहानुभूति जताना है इशारा अब समय निकला अपना। हिसाब किताब जब कोई पूछे अपना पाठ नैतिकता का ही उसको पढ़ाना अपनों के गले यह बात ना उतरना है इशारा अब समय निकला अपना।।

कुत्ते की खुजली,अंधे की लाठी

एक तरफ कुत्ते की खुजली राम ही जाने कितनी गहरी दूसरी तरफ अंधे की‌ लाठी जो चिल्लाये उस पर भारी बहस‌ चले बस मूत्र ‌चिकित्सा और बचे हुए गाएं राग दरबारी हाय‌! राम ये कैसी दुश्वारी।।

धै तेरे की

कभी होती थी सांत्वना थेरेपी सहारा बन के देते थे प्रेरणा थेरेपी अब आई है झापड़ थेरेपी उस पर रोना थेरेपी धै तेरे की।।

यह चाय है

कब पकड़ी यह पता नहीं क्यों पकड़ी यह भी पता नहीं यह चाय है बिना इसके दिन फिर भी जंचता नहीं शुरू में गुड़ की पीते थे पत्ती भी काफी डालते थे बड़ी गिलास में छक-छक कर साथ-साथ बैठकर पीते थे काली डेकची इसकी कोई पकड़ता नहीं यह चाय है बिना इसके दिन फिर भी जंचता नहीं फिर चीनी में बनने लगी पत्ती भी कई प्रकार की आने लगी भगोने में उबलने लगी नाप की ही मिलने लगी साथ बैठने का आनंद कोई जानता नहीं यह चाय है बिना इसके दिन फिर भी जंचता‌ नहीं आगे चलकर गरम पानी ही मिलने लगा पत्ती का पाउच धागे से बंधा अलग रखने लगे चीनी के क्यूब और दूध का पाउडर ट्रे में अलग से सजने लगे अब पास बैठने की जरूरत कोई समझता नहीं यह चाय है बिना इसके दिन फिर भी जंचता नहीं आजकल ग्रीन टी लेने लगे दूध अब रहा ही नहीं चीनी की अब चाह नहीं दूसरा इसको कोई देखे ही नहीं अब स्वाद व मिठास का जिक्र कोई करता नहीं यह चाय है बिना इसके दिन फिर भी जंचता नहीं।।

Our steps & destiny

The story goes to 1978 when I had passed my 8th standard exam and had to decide my optional subject in class 9th. In those days subjects were chosen in class ninth. Being a meritorious student I decided to opt for science with biology as optional and I applied at government Bagla higher secondary school churu and I got the seat and I came back to my village for arranging fee and discussing stay problems at churu with my family members. But the very next day two boys of our village fought with each other and one named Prabhu (name changed) striked with an axe on the head of Ramu( name changed) and there was a huge blood stream coming out from Ramu's head, smearing him totally in blood.A local compounder was called and he cleaned the head with clean pieces of clothes and done some bandage and referred to churu. That flow of blood and the rough first aid by compounder with bare hands shook me to the core in such a way that I decided to change my school and optional subject. Next da

खेला होबे

खेला तो कई बार होबे परंतु एक टांग पर प्लास्टर चढ़े और रणचंडी बन आगे बढ़े ऐसा मंजर पहली बार होबे कई टैगोर के लिबास में डूबे फिर‌ भी चौबे से बन गए दुबे हाय! ऐसी पिटाई फिर ना होबे।।