अभी तक बुद्धि फिरते देखी अब हालात बदलते देख रहे हैं कभी बेटा बुढ़ापे की लाठी कहा जाता था परिवार उस पर इतराता था जब जिम्मेदारियां नहीं निभाता था तब बुद्धि फिरा कहा जाता था। एक वायरस ऐसा आया सारे रिश्तों को साफ कर गया यदि हो जाए कोई प्रभावित सब भागें हो आतंकित जिम्मेदारी अब बन गई भागना सिर्फ डॉक्टर को पड़े संभालना देखो यह मानवता की विडंबना इसे कहते हैं हालात फिरना। कहीं बच्चे अकेले रहकर भूख से दम तोड़ गए कहीं बुजुर्गों को मिले नहीं वेंटिलेटर और दब गया मौत का एक्सीलेटर जो सिखाया था जग ने उसका रहा नहीं कोई मोल अब जो सिर्फ हालात सिखाएं वही है अनमोल चीज बहुत हैं दुनिया में लेकिन उपयोग कर नहीं सकते बन गया आदमी घर का कैदी जैसे हो कोई इसने लंका भेदी हालात बन गया है ड्रैकुला सारे रिश्तों का बना दिया कर्बला।