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Showing posts from March, 2020

फिरते हालात

अभी तक बुद्धि फिरते देखी अब हालात बदलते देख रहे हैं कभी बेटा बुढ़ापे की लाठी कहा जाता था परिवार उस पर इतराता था जब जिम्मेदारियां नहीं निभाता था तब बुद्धि फिरा कहा जाता था। एक वायरस ऐसा आया सारे रिश्तों को साफ कर गया यदि हो जाए कोई प्रभावित सब भागें हो आतंकित जिम्मेदारी अब बन गई भागना सिर्फ डॉक्टर को पड़े संभालना देखो यह मानवता की विडंबना इसे कहते हैं हालात फिरना। कहीं बच्चे अकेले रहकर भूख से दम तोड़ गए कहीं बुजुर्गों को मिले नहीं वेंटिलेटर और दब गया मौत का एक्सीलेटर जो सिखाया था जग ने उसका रहा नहीं कोई मोल अब जो सिर्फ हालात सिखाएं वही है अनमोल चीज बहुत हैं दुनिया में लेकिन उपयोग कर नहीं सकते बन गया आदमी घर का कैदी जैसे हो कोई इसने लंका भेदी हालात बन गया है ड्रैकुला सारे रिश्तों का बना दिया कर्बला।

Oh My Mom, Guide Me Home

A person Angel on earth Lactates us on birth Teaches us a truth that Life's graph is not smooth Brings us to youth Never talks of her own health And shortage of wealth Never expects anything Even in worst of her times Gives blessings to us In rhymes and Onward difficult times Can't see our tears Even in her last times Our soul is connected to mom To such an extent that in Every difficult moment Our soul calls "Oh my Mom" Once again guide me home

जब मास्क नहीं लगाते हो

जब मास्क नहीं लगाते हो             फिर क्यों आते हो? ना हाथ मिलाना, ना गलबहियां करना बस आंखें मिला लेना जल्दी-जल्दी अभी फिजां है कुछ बदली-बदली सांसें अभी सांसत में हैं क्यों सांसो पर जुर्म करते हो? जब मास्क नहीं लगाते हो              फिर क्यों आते हो? साबुन छोड़कर कहीं ना चलूं मैं सैनिटाइजर के अलावा कुछ नाम लूं मैं भीड़ में है कोरोना का खतरा क्यों तुम नादान बनते हो? जब मास्क नहीं लगाते हो             फिर क्यों आते हो?

अब उल्टा लटकने लगा आदमी

कभी जंगल काटता कभी ग्लेशियर काटता अब जानवरों तक पहुंच गया आदमी खतरे में पड़ गया पर्यावरण ऋतुओं का बिगड़ गया आभरण क्यों नहीं सोचा जो होगा पर्यावरण के साथ वही तो पाएगा यह पर्यावरण की उपज आदमी सताया जब चिंपांजी पाया एड्स सूअर से ले लिया स्वाइन फ्लू चमगादड़ तक पहुंचते-पहुंचते खुद ही उल्टा लटक गया आदमी संक्रमित होने लगा सारा जग बचने के लिए अलग-थलग अब पड़ने लगा आदमी

एक प्रतिध्वनि

तुम आए थे यूपी से कुरुक्षेत्र भू पर जैसे वर्षा के अंदर सावन संगीत ,मस्ती ,उल्लास रेक में बिखरे होता था ओपन एयर थिएटर मनभावन अंगों की थिरकन ने आंखों को लूटा संगीत कंठ का था हर दिशा में छूटा छू दिया था जिसे तुमने क्षणभर स्वरों से वो कान आज भी हैं प्रतिध्वनित स्वर लहरों से।