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ये मिट्टी

मिट्टी मां से भी बढ़कर है क्योंकि मां मिट्टी से बनी‌ है।।  - Mohan Sardarshahari

यंग बोयज

यंग बोयज के चार साल बेमिसाल बेमिसाल।  कभी क्रिकेट का उबाल कभी ग्लेमर का धमाल कभी संगीत की सुर लहरी कभी यादों की टीस गहरी      हर अंदाज रहा कमाल      चार साल बेमिसाल  कभी बातें पैग पटियालवी फिर अंदाजे बयां लखनवी गजलों का फिर सिलसिला सुनकर जब दिल खिला        दिल की बातें चली रेक की चाल        चार साल बेमिसाल  कभी सैर - सपाटों की बातें उस पर खाने की सोगातें मिलकर जहां भी बैठें हों रेक की बातों के खिले गुलदस्ते        रंगो ओ सुंगध छूटा रेक के नाल         फिर भी चार साल बेमिसाल  जब जब राजनीति ने दस्तक दी यंग बोयज दुविधा में दिखी राजनीति द्विधारी तलवार इससे यंग बोयज को लेना उबार      खाना हो तो गुड़ खाओ बाकी सब बेकार माल      यंग बोयज है एक चोपाल       जिसके चार साल बेमिसाल।।

आजादी के पिचहतर

स्वतंत्रता के पिचहतर वर्ष हमने मनाये अनेकों हर्ष शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रतिरक्षा और बुनियादी ढांचा हुआ उत्कर्ष लड़कियों को अवसर मिला तो सम्मान देश का फहुंचाया अर्श करें प्रतिज्ञा इस पिचहतर बची रूढ़ियां और आडम्बर शतक होने पर ला देंगे फर्श।।

खुशियों की बीमा

आज फिर थोड़ा इतरा लेता हूं यह इतराने का दिन है जिस दिन बेटी पैदा होती‌ है उस दिन से  जीवन‌ में  खुशियों की "बीमा‌" हो जाती है।।

‌ प्रताप जयंती

वीरों का जब-जब बखान होगा महाराणा का सिरमौर नाम होगा पवित्र धरती का जब जिक्र होगा हल्दी घाटी का मन में चित्र होगा स्वामी भक्ति का चित्रांकन होगा  तो चेतक का गर्व से स्मरण होगा राजस्थान की शान की बात होगी तब - तब हल्दी घाटी, चेतक और  महाराणा प्रताप के नाम की हर राजस्थानी की आंखों में चमक होगी।। जय मेवाड़, जय राजस्थान

प्रसारण

जिसकी  खाई  बाजरी उसकी ठीक बजाई हाजरी।।

सोनल

तुम रौनक इस जहां की मैं सुना एक सड़क सा तु इसके किनारे रुक जाए हर दृश्य में रंग भर जाए घटाओं की जरूरत कहां जब तेरी जुल्फें लहराए तुझको देखूं एकटक मैं बन बिजली का खंबा क्रीम सूट , उन्मुक्त बांहें देख भरता मैं हूं आहें कर महसूस खुश्बू हवा में लगे जमीन पर उतरी  रंभा।।